Saturday, September 11, 2021

उत्तम आर्जवधर्म :-


आर्जव अर्थात् ऋजुता अर्थात् सरलता, वास्तव में सरल स्वभावी आत्मा की सरलता, उसका स्वभाव, वही वास्तव में उत्तम आर्जवधर्म है।

ये सरलता हम सभी में सदैव से शक्कर में मिठास और निम्बू में खटास की भांति कण-कण में व्याप्त है, प्रत्येक जीव में यह सरलता नामक गुण पूर्णरूप से व्याप्त है। किन्तु अपने अनादि की भूल के कारण, अपनी अज्ञानता के कारण हम अपने सरल स्वभाव को पहचान ही नहीं पाते, समझ ही नहीं पाते, बल्कि इसके विपरीत जो परपदार्थ है, जिनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है ऐसे उन परपदार्थों की प्राप्ति की इच्छा के कारण उसे पाने के लिए अनेक तरह के प्रयास करते है, और जो वस्तु पाने की योग्यता ही ना हो, पुण्य भी ना हो, हमारे भाग्य में वो वस्तु ना हो तो भी उसके लिए, उसे पाने के लिए भी अनेक तरह के छल-कपट करते है, मायाचार के परिणाम करते है। 

यही तो नहीं करना है, यही तो गलत है, हम चाहते है कि संसार की हर वस्तु जो मुझे प्रिय है, वो मेरी हो जाए, में हर वस्तु को प्राप्त कर लूं और ऐसे विचार पूर्वक अनेक तरह के षड्यंत्रों को ये जीव करता है और एक वस्तु प्राप्त हो भी जाए तो भी इसकी इच्छा का अंत नहीं होता, वो और पाने की लालसा में और पाप करता जाता है और यदि अनेक प्रयत्न करने पर भी किसी वस्तु कि प्राप्ति ना हो तो भी आकुलता के कारण दुःखी होता है अपने सरल स्वभाव को, अपने सहज स्वभाव को पहचान ही नहीं पाता, और सदैव दुःखी रहता है, इसलिए यदि हमें आर्जवधर्म को समझना है आर्जवधर्म अंतर में प्रगट करना है तो सर्वप्रथम पर वस्तुओं की प्राप्ति की इच्छा छोड़ दो, सहज रूप से जो प्राप्त हो उसमें संतुष्ट रहो, और समय कैसा भी हो, अपनी सरलता को ना भूलो, अपनी सरलता की पहचान करो, उसका निर्णय करो, और अपने सरल स्वभाव का अनुभव करो। और जो व्यक्ति अपने इस अनादि-अनन्त, शाश्वत सरल स्वभाव की पहचान कर लेता है, अनुभव कर लेता है, वही वास्तव में उत्तम आजर्व धर्म का धारी होता है।



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