निर्ग्रन्थ मुनिराज पूजन
(स्थापना)
(वीरछंद)
नग्न दिगम्बर मुनिवर मेरे, चलते - फिरते सिद्ध है।
मूल अठाईस गुण के पालक, आतमज्ञानी प्रसिद्ध है।।
सम्यकज्ञानी मुनिवर की , पूजा का भाव हृदय आया।
मुनिवर की पूजन करने मैं, प्रासुक थाल सजा लाया।।
ॐ ह्रीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: अत्र अवतर अवतर संवौषट्।
ॐ ह्रीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनम्।
ॐ हीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्।
(वीरछंद)
घर परिवार मोह छोड़कर, नग्न दिगम्बर वेश लिया।
जन्म-मरण का अन्त करन को, मुनिव्रत को स्वीकार किया।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ हीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति...
चन्दन से भी अति सुगन्धित पंच महाव्रत धारी है।
नग्न दिगम्बर मुनिवर मेरे सच्चे आतम ध्यानी है।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ हीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति...
अक्षय पद है लक्ष्य आपका, अक्षय आतम ध्याते है।
अक्षय पद ही प्राप्त हमें हो, अक्षत् शुद्ध चढ़ाते है।।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ ह्रीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति...
पंचेंद्रिय विषयों के त्यागी, ब्रह्मचर्य की शोभा है।
पुष्प चढ़ाकर पूजन करके काम भाव को हरना है।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ ह्रीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: काम-बाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति...
नग्न दिगम्बर मुनिवर मेरे, आतमरस के भोगी है।
क्षुधारोग का अन्त करेंगे, ऐसे सच्चे योगी है।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ हीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति...
अज्ञान तिमिर के नाशक मुनिवर, पावन सम्यकज्ञानी है।
निज अज्ञान नष्ट हो मेरा, प्रासुक दीप चढ़ानी है।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ हीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति...
आत्मध्यान में लीन रहे, अठबीस मुलगुण सहज पलें।
ऐसे ज्ञानी मुनिवर के तो, अष्टकर्म भी सहज नशें।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ हीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति...
यदि मोक्ष पाना है तो, मुनिव्रत धारण करना होगा।
मुनिव्रत बिना मोक्ष कहीं भी, तीनकाल में ना होगा।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ हीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति...
रत्नत्रय से शोभित है मुनि, ज्ञान ध्यान तप में है लीन।
पद अनर्घ्य की प्राप्ति हेतु मैं भी हो जाऊं निज में लीन।।
भावलिंग संग द्रव्यलिंग मुनि की पूजन कर हर्षाऊं।
बनूं आपके जैसा मुनिवर यही भाव मन में लाऊं।।
ॐ हीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति...
जयमाला
(दोहा)
विषयकषाय, आरम्भ से
दूर
रहे मुनिराज।
निज आतम में
लीन हो, पावें सुख साम्राज्य।।
(वीरछंद)
पुण्योदय से मनुज गति, वैराग्य भाव जब हो मन में।
नग्न दिगम्बर दीक्षा लेकर, मुनि बन जाते है वन में।।
सर्दी, गर्मी, वर्षा हो या पशु भयंकर वन में हो।
ध्यानलीन रहकर मुनिवर, तत्वों का चिन्तन करते हो।
तीन कषाय अन्त हो जिनके, आतम शुद्धि प्रगटी है।
मुनि के आत्मध्यान के द्वारा, वीतरागता बढ़ती है।
अंतरंग-बहिरंग परिग्रह चौबीस, त्याग दिए मुनिराज।
ज्ञान ध्यान में लीन रहे बस, जग का कोई काम न काज।।
इच्छाओं का कर अभाव मुनि आत्मध्यान रत रहते है।
अट्ठाईस मुलगुण उनके सहज ही पलते रहते है।
हिंसा, झूठ तथा चोरी, और पूर्ण कुशील परिग्रह त्याग।
पंचमहाव्रत धारें मुनिवर, अपना लिया मोक्ष का मार्ग।
ईर्या, भाषा तथा एषणा , कायोत्सर्ग और निक्षेपण।
पंच समिति पलें मुनि तो आतम रस में रहे मगन।।
स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण इन्द्रिय विषयों को त्याग।
लीन रहे आतम में मुनिवर, ले अतीन्द्रिय सुख का स्वाद।।
समता, स्तुति, वंदन तथा प्रतिक्रमण और प्रत्याख्यान।
कायोत्सर्ग सभी आवश्यक मुनि के होते सहज महान।।
नग्न दिगम्बर जिनमुद्रा और भूमि पर ही सोते है।
ठीक समय पर स्वयं ही अपने कैशलोंच कर लेते है।
अस्नान का व्रत है जिनके दंत धवन का त्याग रहे।
विधि पूर्वक खड़े-खड़े बस, एक समय आहार लहे।।
पंचाचार अरु षट् आवश्यक, तीन गुप्ति के पालक जो।
दशधर्मों से शोभित है अरु, द्वादश विधि तप करते जो।।
योग्य जानकर भव्य पुरुष को, मुनि दीक्षा जो देते है।
मुनिसंघ के संचालक वे, आचारज कहलाते है।।
ग्यारह अंग सहित चौदह पूर्वों के जो भी पाठी है।
उपाध्याय मुनिवर कहलाते सच्चे ज्ञानी ध्यानी है।
मुनि संघ में श्रेष्ठ अध्ययन पढ़ते और पढ़ाते है।
वर्तमान में ऐसे मुनिवर उपाध्याय कहलाते है।।
शत्रु-मित्र में समता धारें, लौकिक जन से दूर रहे।
आतम सुख में मस्त रहे वे आतम हित की बात कहे।।
बारह भावन भाते मुनिवर, बाईस परिषह सहते है।
कालचक्र का कोई समय हो, मुनि ऐसे ही होते है।
रत्नत्रय से शोभित मुनिवर, मोक्षमहल में जाते है
ऐसे मुनि के द्वारा ही हम, मोक्षमार्ग को पाते है।
ऐसे सभी मुनिराजों की पूजन कर मैं हर्षाता हूं।
मैं भी जल्दी मुनि बनूंगा, यही भाव मन लाता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री निर्ग्रन्थ मुनिवरेभ्यः नम: अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालामहार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(रोला)
पंच महाव्रत धार, पंच समिति को पाले,
षट्आवश्यक, होते मुनि के सात शेष गुण।
पंचेन्द्रिय विषयों के त्यागी, आतमज्ञानी।
सम्भव ऐसे मुनि को, नितप्रति शीश झुकानी।।
।।पुष्पाजलिं क्षिपामि।।