Thursday, November 9, 2023

खुश रहना वास्तव में कितना सरल है

वर्तमान में सभी को ये जीवन बड़ा ही कष्टमय लगता है, सभी लोग दुःखी है, सबके दु:खों के अपने-अपने, अलग-अलग कारण है धनवान हो, अथवा निर्धन, नामी, प्रतिष्ठित व्यक्ति हो अथवा इससे रहित कोई बेनाम अप्रतिष्ठित व्यक्ति सभी दुःखी है। 

और हमारे दुःखों मूल कारण है व्यर्थ के सपने, व्यर्थ की इच्छाएं, सबको अपने हिसाब से चलाने की सोच। 

विचार कीजिए कि आज सबके बड़े-बड़े सपने है, अनेकों इच्छाएं है, किसी को डॉक्टर बनना है, किसी को इंजीनियर बनना है, किसी को सी.ए. बनना है, किसी को इंस्पेक्टर बनना है, किसी को कलेक्टर बनना है, किसी को विश्वप्रसिद्ध गायक बनना है, किसी को विश्वप्रसिद्ध नर्तक बनना है, किसी को विश्वप्रसिद्ध तिरनबाज बनना है, किसी को विश्वप्रसिद्ध खिलाड़ी बनना है, किसी को चांद पर जाना है, किसी को मंगल तो किसी को सूरज पर जाना है, जिसको देखो वो अपने आप को बहुत ऊंचाई पर देखना चाहता है वह भी मात्र इसलिए कि दुनियां हमें जाने, लोग हमारी प्रशंसा करें उसके लिए दिन-रात बिना कुछ सोचे गधे की तरह मेहनत करता है और पूरी जिन्दगी मेहनत करने पर भी लक्ष्य का मिलना तो पुण्य के आधीन है और यदि मिल भी गया तो लक्ष्य मिलने भी खुशी ज्यादा देर नहीं टिकती आप उससे पूछो तो अब उसे, उससे भी बड़ा कुछ चाहिए।

अरे भाई पगला गए हो क्या? 

ये करना है, वो करना है, आगे ऐसा करूंगा, वैसा करूंगा, शान्ति से बैठा नहीं जाता थोड़ी देर।

ये कीमती मनुष्यभव ऐसे फालतू के लक्ष्य में समय बर्बाद करने के लिए नहीं मिला है थोड़ा विचार तो कर। 

दुनियां तुझे जाने ये महत्वपूर्ण नहीं है तू अपने आप को जान बस यही सुख का कारण है।

मैं एक उदाहरण देता हूं -

एक तरफ बचपन से जवानी तक अथवा बुढ़ापे तक एक व्यक्ति बहुत मेहनत करता है एक फालतू सा विश्वप्रसिद्ध कोई खिलाड़ी बनने का लक्ष्य कर लेता है अब उसका जीवन पूरा कष्टमय बीतता है खाना-पीना आदि सब उसे अपने खेल के नियमों के अनुसार करना होता है दिन-रात उसके मन में एक भय बना रहता है कि मेरा प्रथम नंबर नहीं आया तो क्या होगा। 

ऐसे लक्ष्य बनाने वाले कितने ही तो डिप्रेशन के शिकार हो जाते है और कितने ही पुरुष अथवा स्त्री हारने पर आत्महत्या आदि गलत कदम उठाते है। और यदि कोई विश्वप्रसिद्ध बन भी गया तो उसकी खुशी ज्यादा समय नहीं टिकती अखबार और न्यूजचैनल के माध्यम से कुछ समय लोग वाह! वाह! करते है, स्टेज पर कुछ सम्मान मिल जाता है और लोग उसे भूल जाते है कल इसी स्थान पर दुसरा होगा और उसी खुशी गायब। उसे अन्दर से प्रसन्नता होती ही नहीं है। क्योंकि वास्तव में ऐसा लक्ष्य बनाने वाला वो दुनियां की नजरो में महान बनने के लिए सब कुछ कर रहा था अपने लिए नहीं।

एक तरफ कोई साधारण सा व्यक्ति उसके घर में 5 सदस्य भी हो तो जितना भी धन हो मुस्कराकर खर्च करता है। 100 रूपए हो तो उसमे भी खुश रहता है 10 रूपए हो उसमें भी खुश रहता है। प्रतिदिन घर से शुद्ध भोजन बनाकर अपने हाथ से भूखे लोगों को भरपेट भोजन कराता है जो आवश्यक कार्य हो बस वही करता है। कोई मेरी प्रशंसा करेगा या नहीं, कोई मुझे सम्मान देगा या नहीं इस लोभ (लालच) से रहित वो हर परिस्थिति में खुश रहता है।

आज जब किसी धनवान की मृत्यु होती है यही समाज जिसकी दृष्टि में महान और धनवान बनने के लिए आप वर्तमान के आनंद को त्यागकर कष्टमय जीवन जीते है यही समाज कहता है कि दे:खो कितना धनवान व्यक्ति था कुछ साथ नहीं जा सका क्या लाभ हुआ दिन-रात गधे की तरह मेहनत करके करोड़ों रुपया जोड़ने का इससे अच्छा है वर्तमान जीवन का आनंद लो, वर्तमान में चाहे जैसी परिस्थिति हो उसकी शिकायत करने के बजाय उसी परिस्थिति में हमें खुश कैसे रहना ये सीख लो अगर आपने ये सीख लिया तो आप दुनियां के सबसे महान व्यक्तित्व होंगें। 

क्योंकि जो जीवन भर कष्ट सहता है मात्र शांतिपूर्ण जीवन जीने की आस में यदि वो समाज की दृष्टि में महान बन सकता है तो सोचो बिना किसी कष्ट के हर परिस्थिति में आप बचपन से ही खुश रहना सीख लो तो आप उससे भी कितने महान हो गए। 

अब आप सोचों कौन ज्यादा सही है?

बचपन से कष्टभरा जीवन जीकर 1 महीने वाहवाही लूटकर खुश रहने वाला अथवा प्रतिसमय स्वयं हर परिस्थिति में खुश रहकर अपनी योग्यता अनुसार आसपास के लोगों को भी खुश रखने वाला? 

वास्तव में ये जीवन हम कितने समय जीने वाले है कोई नहीं जानता कब ये देह साथ छोड़ दे और देह से देहांतर होना पड़े कौन जानता है?

आज जितने भी सफल व्यक्ति है चाहे वो बड़े व्यापारी हो अथवा किसी बड़े आधिकारिक पद पर हो, ऐसे व्यक्तित्व के विषय में यदि आप जानोगे तो समझोगे कि उन्होंने बचपन से अपने दिमाग पर कभी तनाव रखकर जीवन नहीं जिया, मार्कजुकरबर्ग ने कब सोचा होगा कि बड़ा होकर फेसबुक जैसा सॉफ्टवेयर बनाऊंगा, फिर दूसरी व्हाट्सएप जैसी कंपनी खरीदूंगा कभी नहीं वो सहज भाव से अध्ययन करते रहे, अपने आप विचार आते रहे और कार्य हो गया। आपको सोचने की, लक्ष्य बनाने की आवश्यकता ही नहीं है, आपके जीवन में आपकी रुचि के अनुसार सहज ही करियर बनता है। और हम जबरदस्ती वर्तमान में बैठे-बैठे पूरे भविष्य की चिन्ता करके अभी दुःखी रहते है ये पागलपन नहीं तो और क्या है?

यदि हमेशा खुश रहना है तो जीवन को समझो, जीवन का वर्तमान में आनंद लो भविष्य के विषय में सोचो, जीवन में योजना (Planning) नाम की कोई चीज नहीं होती चलते-चलते Adjust करना पड़ता है।

इसलिए आलतु-फालतू के लक्ष्य बनाना, धनादिक सामग्री जोड़ना, नाम और प्रतिष्ठा के लिए अपने जीवन को व्यर्थ गवां देना इससे अच्छा है लक्ष्य बनाना है तो अपने आप को जानने का लक्ष्य बनाओ, अपने स्वभाव को जानो यही मनुष्य जीवन का एकमात्र सबसे उत्कृष्ट और कार्यकारी लक्ष्य है इसी के साथ वर्तमान के पलों को सबके साथ प्रेम से खुशी से जिओ। 

जीवन मुश्किल नहीं लगेगा आप समझ पायेंगे कि खुशी से जीवन जीना कितना सरल है।

Sunday, November 5, 2023

रेस में मत भागो, विचार पूर्वक आगे बढ़ो

 

फिल्म के डायलॉग में भी शिक्षा योग्य बातें होती है -

लोगों तक नेक कार्य पहुंचने चाहिए किसने किया इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। 

~ फिल्म - ध्रुव जगन्नाथ (DJ)

इसलिए हमारे जैनाचार्यों ने जंगल में मोक्षमार्ग के प्ररूपक शास्त्र लिखें जिससे की हम उन्हें पढ़कर मोक्षमार्ग में आगे बढ़ें। किन्तु उन्होंने उसमे अपने विषय में कुछ नहीं लिखा और हम अज्ञानी जीव, आचार्य ने जो शास्त्र में मोक्षमार्ग लिखा है, शुद्धात्मा की प्राप्ति का जो उपाय लिखा है उसे समझने के बजाय कौन सा शास्त्र किसने लिखा, कब लिखा उनके गुरु कौन थे, शिष्य कौन थे, उनकी गृहस्थ अवस्था कैसी थी, उनके माता-पिता, चाचा-मामा आदि रिश्तेदार कौन थे बस इसी में रुचि लेते है। 

यहां तक कि विद्यालय में भी हमें क्या करना चाहिए ये सिखाने के बजाय किसने, कौन से समय में, कौन से स्थान पर क्या झंडे गाड़े थे बस यही सिखाया जाता है। कौन बनेगा करोड़पति जैसे टी.वी. शो में भी इसी की बात होती है। 

तो कोई संस्कार की बात क्यों सीखना चाहेगा और कौन सिखाना चाहेगा?

वर्तमान में अच्छे कामों को याद रखना या अच्छे काम सीखने के बजाय केवल नौकरी, इनाम अथवा प्रसिद्धि पाने के लिए पूर्व में किसने क्या किया बस यही याद रखा जाता है। 

और स्वयं भी कुछ महान कार्य कर सकते है, कुछ अच्छा कर सकते है, समाज में हो रही विसंगतियों में सुधार कर सकतें है । पूरी समाज में नहीं तो अपने परिवार अथवा अपने जीवन में चल रही विसंगतियां तो हम सुधार ही सकते है। धर्म और त्यौहार के नाम पर अथवा समय-समय पर परम्परा के नाम पर सगे रिश्तों में लेन-देन के नाम पर जो मिथ्या परम्पराएं चल रही है उन्हें सुधार सकतें है।  

इतना भी निर्णय नहीं कर पाते समझ नहीं आता क्या संस्कार है और क्या शिक्षाएं है हमारी जब हम किसी बात पर सही और गलत का प्रश्न उठाकर विचार करने लायक भी नहीं हुएं। सभी को विचार करना चाहिए। कि केवल दुनिया में किसने, कब, क्या, किया? ऐसे सामान्य ज्ञान को रटकर ही जीना है या अपने अपने दिमाग से प्रत्येक स्थिति में सही-गलत का विचार करके स्वयं को महापुरुषों की गिनती में खड़ा करना है। 

याद रखिए लोग तो तीर्थंकरों को भी याद नहीं रखते तो हम और आप कौन है इसलिए जो भी करें लोग हमें याद रखें इस भावना से नहीं बल्कि हमारे परिणाम निर्मल रहें, हमारे कर्म अच्छे हो इस भावना से करें। 

क्योंकि मृत्यु के पश्चात् इस भव ने कमाया नाम साथ नहीं जाएगा। बल्कि हमारे कर्म ही हमारे साथ जायेंगे।