(दोहा)
हुए हो रहे होएंगे , वीतराग मुनिराज।
नमूं सभी को मैं सदा, मन-वच-काय सम्हाल।।
(वीरछंद)
भरतक्षेत्र के आर्यखंड के, तीर्थंकर चौबीस नमन।
अन्तिम वर्धमान स्वामी के, चरणों में शत-शत वंदन।।
अनुबद्ध तीन केवली नमूं, गौतम, सुधर्म, जम्बूस्वामी।
इनके बाद हुए पांच, श्रुतकेवली द्वादशांग ज्ञानी।।
विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन, भद्रबाहु है नाम।
पांचों श्रुतकेवली मुनिवर के, चरणों में शत-शत प्रणाम।।
इनके बाद हुए ग्यारह, अंग दस पूर्वों के ज्ञानी।
विशाख, प्रौष्ठिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन स्वामी।।
सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजयमुनि, बुद्धिल अरू गंगदेव स्वामी।
धर्मसेन सहित ग्यारह मुनि के चरणों में शिरनामि।।
ग्यारह अंगों के धारी फिर पांच हुए मुनिराज महान।
नक्षत्र मुनि, जयपाल, पांडु, ध्रुवसेन कंस को करूं प्रणाम।।
एक अंग के धारी चारों, मुनिराजों को करूं प्रणाम।
सुभद्र, यशोभद्र, भद्रबाहु, लोहाचार्य है उनके नाम।।
एक अंग के पूर्ण ज्ञानी, फिर नहीं हुए मुनिराज महान।
और अंग के एक देश ज्ञाता मुनि है, तिनके कछु नाम।।
अर्हद्बलि अरु माघनंदि, आचार्य हुए धरसेन महान।
पुष्पदंत और भूतबली ने, षट्खंडागम लिखा महान।।
प्रथमबार लिपिबद्ध हुई, जिनवाणी मां जयवन्त रहे।
परवर्ती आचार्यों द्वारा और शास्त्र लिपिबद्ध हुए।।
जिनचंद्र, कुन्दकुन्द, उमास्वामी, समंतभद्र, शिवकोटि मुनि।
आचार्य शिवायन, पुज्यपाद, अरू वीरसेन, जिनसेन मुनि।।
नेमिचंद्र आचार्य सहित, ये ही पन्द्रह मुनिवर के नाम।
एक देश अंगों के ज्ञाता, इन सबको मैं करूं प्रणाम।।
इनके बाद हुए भावलिंगी, मुनिवर तिनके कछु नाम।
जिनके कारण सतत् चला, जिनवाणी मां का अद्भुत ज्ञान।।
वज्रसूरि, यशोभद्र, योगीन्दु, पात्र स्वामी, ऋषिपुत्र महान।
सिद्धसेन अरु मानतुंग, मुनि प्रभाचंद्र, अकलंक प्रणाम।।
रविषेण, जटाचार्य मुनि, शान्तिषेण जिनसेन महान।
काणभिक्षु, वादिभसिंह मुनि, एलाचार्य को करूं प्रणाम।।
वीरसेन आचार्यदेव जयसेन, विद्यानंदि स्वामी।
अनंतकीर्ति, कुमारनंदि, महावीरसेन जग में नामी।।
जिनसेन स्वामी, दशरथ स्वामी, गुणभद्र स्वामी जग में प्रसिद्ध।
अमृतचंद्र आचार्य हुए जो करें आत्मा को प्रसिद्ध।।
अमितगति अरु अभयनंदि, फिर देवसेन आचार्य महान।
इंद्रनंदि और कनकनंदि सिद्धांत चक्रवर्ती प्रणाम।।
सोमदेव फिर वीरनंदि, सिद्धान्त चक्रवर्ती स्वामी।
जयसेन हुए फिर अमितगति, मानणिक्यनंदि को शिरनामी।।
शुभचंद्र तथा मुनि वादिराज, और रामसेन आचार्य महान।
पद्मनंदि फिर नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव को करूं प्रणाम।।
वसुनंदि हुए फिर ब्रह्मदेव, जयसेन हुए जिनचंद्र महान।
लघुअनंतवीर्य तथा पद्म प्रभमलधारी मुनि को प्रणाम।।
अभिनव धर्म भूषण यति, मुनिवर के गुण हम गाते है।
श्री धराचार्य देव को सादर शीश झुकाते है।।
महावीर स्वामी के बाद हुए, जो वीतराग मुनिराज।
भक्ति-भाव से वंदन सबको कोटि-कोटि मैं करूं प्रणाम।।
तीन हुए कम नौ करोड़, मुनिवर को वंदन करता हूं।
मैं भी बनूं आपके जैसा यही भावना भाता हूं।।
(दोहा)
आगम से जो भी मिले, आचार्यों के नाम।
क्रम-क्रम से ही सब लिखे, सबको भाव प्रणाम।।