Tuesday, October 26, 2021

महावीर निर्वाणोत्सव (दीपावली)



दीपावली का पर्व है महावीर निर्वाण का।

क्या करे इस पर्व पर क्या करे तैयारियां।।

याद करो भगवान को उनके परम उपदेश को।

उनकी तरह ही हम सभी निर्वाण सुख को प्राप्त हो।।

वर्षों पुरानी बात है घटना घटी इस देश में।

अहिंसा की बात आई महावीर संदेश में।।

तीस वर्षों से लगा था, समवशरण महावीर का।

दिव्यध्वनि में खिर रहा उपदेश आतम ध्यान का।।

आत्महित का ज्ञान का अहिंसा और ध्यान का।

तीस वर्षों तक खिरा उपदेश मोक्षमार्ग का।।

धन्य हुई कार्तिक तेरस जब अंतिम उपदेश हुआ।

भव्य जीवों के ह्रदय में नया परिवर्तन हुआ।।

चतुर्दशी को वीर का दर्शन मिला था अन्त में।

भाव निर्मल हो गए निज आत्म दिखा जिन रूप में।।

रूप चौदस कहाई वह कार्तिक चतुर्दशी।

अन्त में महावीर मूरत सभी के ह्रदय बसी।।

अमावस्या कार्तिक वह ब्रह्म मुहूर्त काल था।

वियोग था भगवान का या कहो कि निर्वाण था।।

देवगण आए तथा निर्वाण कल्याणक मना।

वियोग था भगवान का, वैराग्य ह्दय में जना।।

जैसे अंधेरे को मिटाने सूर्य जग में उदित हो।

अज्ञानता के नाश को भी ज्ञानसूर्य उदित हो।।

भगवान के जो मुख्य गणधर, महान गौतमस्वामी थे।

चार सम्यक्ज्ञान धारी वीरपथ पर वो चले।।

शुद्धात्मा के ध्यान में वे क्षपक श्रेणी चढ़ गए।

कर्मघाति नाश कर सर्वज्ञ भगवन बन गए।।

रुके नहीं भगवान का उपदेश हमें सिखा गए।

भगवान के वे शिष्य भी भगवान बनकर आ गए।।

महावीरनिर्वाण तथा गौतमस्वामी का केवलज्ञान।

हुई प्रसिद्ध अमावस कार्तिक, पर्व दीपावली महान।।

दीपक की आवलियां ही तो, दीपावली कहलाती है।

मिट्टी के नहीं ये ज्ञानरूप दीपक की बात सिखाती है।।

महावीर गौतम गणधर, सुधर्मा और जम्बूस्वामी।

क्रम-क्रम से जलता ज्ञानदीप हुई दीपावली सुखदानी।।

रुके ना उपदेश ये भगवान हमको सिखा गए।

धर्म का झंडा लेकर वे, धर्म का पथ दर्शा गए।

सुखी हुए वे स्वयं और हम सबको मार्ग दिखा गए।

केवली, श्रुतकेवली, मुनि दिगम्बर ज्ञानमार्ग दर्शा गए।।

भगवन्तों के उपदेशों को गांव-नगर में फैलाया।

धन्य हुए सब श्रावक जिनआगम जन-जन तक पहुंचाया।।

हम सब का भी फ़र्ज़ यही है कार्तिक मावस दिन आया।

मुझको भी अपना कर्तव्य स्मरण आज फिर से आया।।

जिनवाणी को सभी भव्यजन, सीखें और सिखलाएंगे ।

गांव-गांव में नगर-नगर में ज्ञानदीप जलाएंगे।।

खाने और खिलाने का पर्व ये होता नहीं।

मौज-मस्ती, खरीदारी का भी ये अवसर नहीं।।

ना खुशी का, ना ही गम का पर्व ये वैराग्य का।

वियोग है भगवान का पर मोक्ष भी कल्याण का।।

हम सभी को याद आती, आज उन महावीर की।

गौतमादी मुनि तथा, दिव्यध्वनि जिनवाणी की।।

नहीं रुके उपदेश अब हम भी इसे अपनाएंगे।

स्वयं पढ़ेगे जिनवाणी को, सभी तक पहुंचाएंगे।।

जिनप्रभू के दर्श और प्रक्षाल-पूजन से शुरू।

महावीर विधान कर निर्वाण हम मनाएंगे।

स्वाध्याय मन्दिर में यदि तीनों समय ही होवेगा।

जिनालय फिर समवशरण सा देखो कैसा शोभेगा।।

महावीर गौतम गणधर के जीवन पर चर्चा होगी।

हर आतम परमातम है, ये बात समझनी ही होगी।।

मारिची से महावीर का जीवन जो भी समझेगा।

अज्ञानी से ज्ञानी बन वह दीपावली मनाएगा।।

निबन्ध लेखन प्रतियगिता, नाटक इत्यादि होंगे।

तीन दिन ये दीपावली के उत्तम मंगलमय होंगे।।

छोटे-बड़े नियम, व्रत, उपवास की हो भावना।

अहिंसा का भाव और जिनधर्म की प्रभावना।।

दीपावली का पर्व इस तरह मनाना चाहिए।

हर तरफ ही ज्ञान दीपक जगमगाना चाहिए।।

दीपावली का पर्व इस तरह मनाना चाहिए।

हर तरफ ही ज्ञान दीपक जगमगाना चाहिए।।



जैन आम्नाय में महावीर निर्वाणोत्सव पर्व (दीपावली) :-



वर्तमान में अलग-अलग मत में अलग-अलग तरह से दीपावली और महावीर निर्वाणोत्सव पर्व मनाया जाता है।

कुछ लोग इसे खुशी का पर्व मानते हैं, तो कुछ लोग दुःख का पर्व भी मानते है, लेकिन वास्तव में जैनदर्शन के अनुसार देखा जाए तो महावीर निर्वाणोत्सव न तो खुशी का पर्व है, और ना ही दुःख का पर्व है। ना तो मिठाइयां बांटने का पर्व है, और ना ही आंसू बहाने का पर्व है, वास्तव में तो महावीर निर्वाणोत्सव वैराग्य का पर्व है।

30 वर्षों से मंगलकारी दिव्यध्वनि का रसपान करने वाले जीव जिनके ह्दय में जिनवाणी है, ऐसे जीव महावीरनिर्वाण के समय खुशियां और दुःख नहीं मनाते। बल्कि समताभाव धारण करते है।

यदि हम उस समय का विचार करे तो उस समय बहुत से जीवों ने वैराग्य धारण करके जिन दीक्षा अंगीकार की  और भगवान महावीर के बताए मार्ग पर चल पड़े। कुछ जीवों ने सम्यक्दर्शन किया होगा, अणुव्रत धारण किए होंगे। तो कुछ जीवो ने अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार त्याग और संयम धारण किया होगा।

वास्तव में तो हमें भी इस दिन अपनी नगरी में 4-5 दिन का कार्यक्रम मन्दिर में करना चाहिए। विधान-प्रवचन और पाठशाला चलानी चाहिए। क्यूंकि वह दिव्यदेशना आज भी हमारे पास उपलब्ध हैं, 

यदि हम उस दिव्यध्वनि को समझ पाएं तो आज भी हम अपनी तेरस धन्य कर सकते है। आज भी मन्दिर में भगवान के रूप को देखकर अपना रूप देख पाएं, तो आज भी हम रूप चौदस मना सकते है। और आज भी हम मन्दिर जी में स्वाध्याय के बल से तत्वचिंतन पूर्वक स्वयं का निर्णय करके, भेदविज्ञान का पुरुषार्थ करके महावीर निर्वाणोत्सव मना सकते है।

दीपक जलाकर लाखों का घी-तेल बर्बाद करके, और चारों तरफ हजारों तरह की बिजली जलाकर इतनी सूक्ष्मजीवों की हिंसा करके कोई पर्व नहीं मनाया जाता। इससे अच्छा तो वो पैसा घी-तेल में बर्बाद करने के बजाय किसी जरूरतमंद को दे देना। आज तो हम मन्दिर जी में पूजन-विधान करें, प्रवचन सुनें, स्वाध्याय करें, तत्व चिंतन करें, प्रेम व्यवहार से सभी के साथ समता का भाव रखे। व्रत, उपवास करें, कुछ ना कुछ प्रिय वस्तु का त्याग करें तो हम इस पर्व को उचित रूप से मना पाएंगे।

इसके अलावा इस दिन हम सभी को भविष्य में महावीर भगवान की दिव्यध्वनि की रक्षा करने का, उसका रसपान करने का तथा उसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रण लेना चाहिए। और जितना हो सके अपना मुक्तिमार्ग प्रशस्त करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। तभी हम वास्तव में इस पर्व को समझ पाएंगे।



Thursday, October 14, 2021

वास्तव में क्या है होली और दशहरा??

हम जैन है हमारे यहां होली और दशहरा दोनों ही त्योहारों को ना तो मनाया जाता है और ना ही इसकी अनुमोदना की जाती है।
क्योंकि इसमें एक त्यौहार में एक पुरुष को और एक त्यौहार में एक महिला को जिंदा जलाने की भावना होती है।
वर्तमान में जिसतरह से ये त्यौहार मनाए जाते है उससे होने वाले लाभ हानि पर विचार करे तो ....

1) दशहरे पर पटाखों के माध्यम से पैसा बर्बाद होता है और प्रदूषण फैलता है कई बीमारियां बढ़ती है और अनंत सूक्ष्म जीवों की हिंसा होती है।

2) होली पर भी जल की बर्बादी, जल प्रदूषण, नशा करते है लोग और नशे में स्त्रियों के साथ बहुत सी घटनाएं घट जाती है, अनेक केमिकल से निर्मित रंगो से त्वचा खराब होती है बीमारियां फैलती है, जानवरों पर जब ये रंग जाता है तो उनकी त्वचा में खुजली इत्यादि होना जिससे उन्हें कष्ट होता है, और साथ में अनेक एकेंन्द्रिय व त्रस (2-5 इन्द्रिय जीव) जीवों की हिंसा होती है, 

3) दोनों ही त्योहारों से जिस प्रकार से संसार में मनाए जाते है हानि ही हानि होती है चारों और लाभ नहीं होता।

वैदिक संस्कृति के अनुसार इन दोनों दिवस को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाने का उल्लेख मिलता है।
किन्तु जरा हम विचार करे कि क्या इसी तरह ये पर्व मनाते है।
यदि जलाना है तो अपने अंदर के विकारी भावों को जलाओ, अपने अंदर के क्रोध को जलाओ, अहंकार को जलाओ, मायाचार-छलकपट के भावों को जलाओ लालच को जलाओ, ये सब तो जलाते नहीं है, अग्नि जलाकर क्या सिद्ध करना चाहते है हम??
ये वॉट्सएप पर हैप्पी होली या हैप्पी दशहरा, हैप्पी दिवाली के मैसेज भेजने से कुछ नहीं होता है वास्तव ने इन दिनों के सही स्वरूप को व ग्रन्थों के लेखक की, लिखने वाले की भावना को समझने का प्रयास करो।
पटाखे फोड़कर, उधम मचाकर देश की संपत्ति व पशुओं को नुकसान पहुंचाकर, मेहनत से कमाए हुए माता-पिता के धन को व्यर्थ बर्बाद करके हम कौन सा त्यौहार मानना चाहते है??
ग्रन्थों में तो, शास्त्रों में तो त्योहारों का स्वरूप कुछ और ही लिखा है, किन्तु आज के समय में लोगो को शास्त्र पढ़ने का तो समय नहीं होता और अपनी मौज मस्ती के लिए धार्मिक त्योहारों का मजाक बना रखा है,।

कृपया त्यौहार का महत्व और उसे मनाने का सही स्वरूप समझे, स्वयं अपने अज्ञान के कारण से अपने ही धर्म का अपने ही धर्म के त्योहारों का मजाक ना बनाएं।🙏🏻