Wednesday, November 30, 2022

No Arguments, मैं कुछ सुनना नहीं चाहता


वर्तमान समय में हमारी सबसे बड़ी समस्या है कि मैं कुछ नहीं सुनना चाहता। 
हमारे जीवन में कोई भी बात हो जाती है, कोई भी घटना घट जाती है, या हमारे साथ काम करने वाले व्यक्ति से जैसा उसे कहा गया है वैसा ना करके वो गलती से कुछ और कर देता है तो हम उस पर विचार नहीं करते बस  उसको दोष दे देते है, हमारे घर-परिवार में, विद्यालय में, हमारे ऑफिस में, समाज में, सब जगह ऐसा होता है कि यदि हमारे सामने कोई व्यक्ति है वह हमसे कुछ कहना चाहता है तो हम उसकी बात सुनना ही नहीं चाहते। पता नहीं हम कौन सी जल्दी में होते है, कि शीघ्र ही बिना सोचे-समझे, उचित-अनुचित का विचार किए बिना ही निर्णय ले लेते है, सामने वाले को अपनी बात तक कहने का अवसर नहीं देते। इसी कारण से हमारे यहां बहुत सी गलतफहमियां जन्म ले लेती है, जिसके कारण से जीवन भर हम अपनों से ही बैरभाव रखते है, हम अपने इतने अच्छे जीवन में स्वयं ही अपने हाथो से जहर घोल लेते है।

वास्तव में बहुत बड़ी समस्या है ये कि में कुछ नहीं सुनना चाहता।

हमारे परिवार में जब कोई व्यक्ति ऑफिस का कार्य कर रहा होता है, या किसी विशेष चिंता में होता है तो हम अपने बच्चों की बात भी अनसुना कर देते है, हमें लगता है कि ये तो बच्चे है कुछ ना कुछ बोलते ही रहते है, हमें तो अपना काम करना है, और इसी वजह से बहुत बार ऐसा होता है कि वह बालक बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताने आया होता है जिसे ना सुनने के कारण धन या जीवन की भी हानि हो जाती है, 
बिल्कुल ऐसी ही एक घटना है, एक बार रेलवे स्टेशन पर एक महिला फोन पर किसी से बात कर रही थी उसका छोटा सा 5 वर्ष का बालक उसे वहां रेल की पटरियों के मध्य में चूहा दिखाई दिया वह अपनी मम्मी को बार-बार वह चूहा दिखाता है, उसे पकड़ना चाहता है, किन्तु मम्मी फोन पर बात करने में इतना व्यस्थ है कि वह बालक पर उसकी बात पर ध्यान ही नहीं देती और वह बालक वहां रेल की पटरियों के बीच पहुंच जाता है और इस व्यस्थ स्टेशन पर किसी का ध्यान वहां नहीं जाता और उधर से अचानक तेजी से रेल आती है और उस बालक का अंत हो जाता है।

ऐसे ही कुछ बालक अपने विद्यालय में किसी बात से बहुत परेशान होते है अपने घर पर अपनी परेशानी वाली बात को बताना चाहते है, परन्तु माता-पिता पहले ही बालकों को इतना डराकर रखते है कि बालक घर पर कुछ भी कहने से डरता है और यदि  हिम्मत करके कहना भी चाहे तो हम उसकी बात सुनते नहीं है। इसके बाद उसके बहुत से दुष्परिणाम देखने मिलते है, वह झगड़ा करना सीख जाता है, गन्दी आदतें सीख जाता है।
हमेशा ध्यान रखें कि यदि आप अपने बालक के दोस्त नहीं बनेंगे, आप उसे जीवन का अर्थ नही समझाएंगे तो वह बाहर दोस्त खोजेगा और जो समझ आयेगा, वही करने लगेगा।

इसीप्रकार युवावस्था में लड़के-लड़की एक दूसरे की छोटी-छोटी बातों से प्रभावित हो जाते है, आपस में दोस्ती करते है, एक दूसरे पर विश्वास भी करने लगते है किन्तु किसी एक से अनजाने में कोई छोटी सी गलती हो जाए, या किसी बात से वो परेशान हो और क्रोध में कुछ कह दे, या हो सकता है किसी मजबूरी के कारण कहीं व्यस्थ हो, आपसे बात न कर पाए, या कोई अन्य व्यक्ति आपके दोस्त के खिलाफ आपके कान भर दे, अथवा हो सकता है उसके मन में आपको कोई नुकसान पहुंचाने का कभी भाव ही न हो किन्तु फिर भी अनजाने में उसकी किसी बात से आपको बुरा लग जाए इसतरह की बहुत से चीजें है जो हमारे जीवन में प्रतिदिन होती रहती है किन्तु कुछ लोग  इसमें वर्तमान समय की एक बात को पकड़कर अपने दोस्त की अब तक की सारी अच्छाइयां भूल जाते है, उसके प्रति द्वेष भाव रखते है, जिससे आज तक सबसे अधिक प्रेम करते थे अकारण ही उससे सबसे अधिक द्वेष करने लगते है, अपने दोस्त को जिसपर दुनियां में सबसे अधिक भरोसा करते थे उसे अपनी बात तक कहने का अवसर नहीं देते, उसे उसकी गलती बताएं बिना उससे हमेशा के लिए बात करना बंद कर देते है, उससे अपनी सबसे अच्छी दोस्ती बिना कारण ही तोड़ देते है। अपने सबसे अच्छे दोस्त को अपनी बात कहने का अवसर दिए बिना जीवन भर उससे द्वेष करते है और स्वयं भी दु:खी होते है और सामने वाले को भी दु:खी रखते है।

आखिर ऐसा क्यों होता है, क्यों लोग ऐसा करते है किसी भी समस्या का समाधान प्रेम से बात करके निकालना चाहिए, क्रोध से बात खत्म करके नहीं, अच्छे पढ़े-लिखे समझदार लोगों को इतनी सी बात समझ नहीं आती ये महाआश्चर्य की बात है।

आज से हम सभी को ये प्रण लेना चाहिए, चाहे घर हो या ऑफिस, दोस्त हो या रिश्तेदार अथवा कोई भी हो पूरी बात जाने बिना कभी कोई निर्णय नहीं लेंगे, सामने वाले को अपनी बात कहने का पूरा अवसर देंगे और उसकी बात को समझेंगे तभी हम आपसी द्वेष से बच सकेंगे और हम सभी आपस में प्रेम व्यवहार पूर्ण जीवन व्यतीत करेंगे।