विवाह क्या है एवं विवाह करना क्यों आवश्यक है?
विवाह एक संस्कृत का शब्द है जो कि 'वि' उपसर्ग 'वह्' धातु और घञ् प्रत्यय से बना है।
विवाह का अर्थ विशेष आनन्द और उत्साह पूर्वक अपनी सहधर्मिणी को अपनाना है।
विवाह को 'शादी' भी कहा जाता है 'शादी' एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ है- हर्ष या आनन्द।
किसी योग्य लड़के-लड़की (वर-वधु) का एक-दूसरे के प्रति जीवन समर्पित करना विवाह है।
नीतिवाक्यामृत में 'आचार्य सोमदेव सूरि' कहते हैं-
युक्तितो वरणविधानमग्नि देव-द्विज साक्षिकं च पाणिग्रहणं विवाहः।
अर्थात् अग्नि, देव और द्विज की साक्षीपूर्वक पाणिग्रहण क्रिया का सम्पन्न होना विवाह हैं।
आचार्य अकलंकदेव' ने 'तत्त्वार्थ राजवार्तिक' में कहा है-
सद्वेद्यस्य चारित्रमोहस्य चोदयात् विवहनं, कन्यावरणं विवाह इत्याख्यायते।
अर्थात् सातावेदनीय और चारित्रमोहनीयकर्म के उदय से कन्या के वरण करने को विवाह कहते हैं।
विवाह किससे करना अर्थात् विवाह के लिए किसप्रकार से वर और वधु का चयन करना चाहिए इसका वर्णन करते हुए 'शान्तिनाथ चरित' में कहा है-
वित्तं ययोरेव समं जगत्यां, कुलं ययोरेव समं प्रतीतम् ।
मैत्री तयोरेव तयोर्विवाहस्तयोर्विवादश्च निरूपितोऽस्ति ।
अर्थात् संसार में जिनके वैभव एवं कुल में समानता हो, उनके बीच ही विवाह और विवाद करना उचित माना गया है।
कन्या के पिता या उसके अभिभावक को चाहिए कि वह कुलीन, शीलवान, स्वस्थ, वयस्क, विद्वान्, धर्म-सम्पन्न, और भरे-पूरे कुटुम्ब से युक्त वर के साथ अपनी कन्या का विवाह करे।"
विवाह का उद्देश्य :-
वास्तव में तो मनुष्य जीवन का उद्देश्य मोह का परित्याग करके, दिगम्बर मुनिधर्म अंगीकार कर, आत्मकल्याण हेतु मोक्षपथ पर चलना है। किन्तु पूर्व कर्मोदय, वर्तमान इच्छाशक्ति तथा शारीरिक कमजोरी के कारण संसार में बहुत से जीव मुनिव्रत धारण नहीं कर पाते तथा शारीरिक सुख और काम की भावनाओं के कारण ऐसे जीव ब्रह्मचर्य व्रत भी धारण नहीं कर पाते।
इसलिए ऐसे जीवों को उनकी काम इच्छाओं को मर्यादित करने हेतु तथा घर में रहकर धर्माचरण पूर्वक ग्रहस्थ जीवन का पालन करने हेतु 'विवाह संस्कार' की मंगलविधि पूर्वक ग्रहस्थ धर्म में प्रवेश कराया जाता है।
विवाह की सही उम्र क्या है -
पहले के समय में तो युवा होने के पूर्व अर्थात् बालवस्था में भी विवाह करा दिए जाते थे किन्तु बालविवाह के पश्चात् उसमें अनेक प्रकार की समस्या वर और वधू के जीवन में होती थी, समय के साथ बालविवाह तो बंद हो गया किन्तु पढ़ाई और नौकरी की व्यवस्था के चलते युवावस्था भी पूरी निकल जाती है तब लगभग 27-30 वर्ष की आयु में लोगों के मन में विवाह का विचार आता है तत्पश्चात् उसमें भी वर और वधू के जीवन में अनेक प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती है।
इसके अलावा वर्तमान में जिस उम्र में विवाह किया जाता है उसमें विवाह का जो प्रयोजन होता है, विवाह का जो महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है उसका तो फिर कोई अर्थ ही नहीं रह जाता।
11 वर्ष की आयु में बालक को किशोर अर्थात् युवा कहा जाता है और लगभग 11 से 13 वर्ष की आयु में बालक के हार्मोंस में परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है जिसके कारण से एक लडकी और एक लड़का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने लगते है इसके बाद विद्यालयों में साथ में उठना-बैठना, साथ में हंसना-खेलना, वर्तमान में आधुनिकता की चकाचौंध के चलते को सामान्य सोच जनमानस की हो गई है की लड़के और लड़की में कोई अंतर नहीं है दोनों समान है, दोनों ही हर काम में समान है, ऐसे में बच्चे अच्छे कार्यों में तो एक दूसरे की बराबरी नहीं करते किंतु बुरे कार्यों में अवश्य करने लगते है, ऐसे में कॉलेज इत्यादि में बराबर से लडके और लड़की धूम्रपान इत्यादि करते है, नशा करते है, आपस में छुपकर संबंध बनाते है , कुछ लोग सबके सामने खुलकर ये सब करते है तो कुछ लोग छुपकर करते है किन्तु लगभग 95% प्रतिशत वर्तमान के युवा बालक इन चक्करों में फंसे है।
युवावस्था होने के कारण लड़के और लड़की का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होना सामान्य बात है किन्तु पढ़ाई और नौकरी की प्रतियोगिता के संघर्ष में, समय पर विवाह न होने कारण लड़के और लड़कियां ना चाहते हुए भी कामवश बहुत सी भूलें कर बैठते है,सोशियल मीडिया पर एक दूसरे से दोस्ती करते है, तरह-तरह की बातें करते है और संबंध बना बैठते है, जिसे कोई नहीं रोक सकता। इसे कई हद तक रोका जा सकता है समय पर विवाह करके यदि बालक-बालिका का विवाह युवावस्था में ही सही समय पर लगभग 18 से 22 वर्ष की आयु में अर्थात् भारतीय कानून का पालन करते हुए कन्या का विवाह 18 वर्ष की उम्र में तथा पुरुष का विवाह 22 वर्ष की आयु में कर दिया जाए तो विवाह की ये सर्वश्रेष्ठ आयु होगी।
एक बार विवाह निश्चित हो जाने पर उन्हें सोशियल मिडिया अथवा कॉलेज इत्यादि में फालतू चक्करों में पड़ने की जरूरत ही नहीं होगी उनके पास एक पार्टनर होगा, उन्हें छुपकर किसी से सम्बंध बनाने की भी आवश्यकता नहीं होगी और समय पर विवाह करने से विवाह का जो महत्वपूर्ण उद्देश्य है कि स्वदार संतोष व्रत का पालन हो, शील का पालन हो और धर्मांचरण पूर्वक ग्रहस्थ जीवन का पालन हो वह उद्देश्य भी इससे पूर्ण होगा।
विवाह के लिए अच्छे लड़के अथवा लड़की का चयन किसप्रकार करना चाहिए तथा जैन कुल में जन्म लेने के पश्चात् किसी अन्य कुल में विवाह करने में समस्या?
वर्तमान समय में अधिकतर लोग मात्र पैसे को ही महत्व देते है, चाहे कोई भी हो जब वह वर अथवा वधु का चयन करता है सर्वप्रथम पढ़ाई और पैसे ही देखता है फिर जीवनसाथी का स्वभाव कैसा है, उसकी सोच कैसी है इन बातों पर तो ध्यान ही नहीं देता, पैसे देखकर समझ लेते है की इनके पास तो सब कुछ है कोई कमी नहीं है यही वर्तमान समय की सबसे बड़ी भूल भी है और प्रतिदिन बढ़ते हुए तलाक की वजह भी है।
इसी गलत सोच के कारण वर्तमान में बालक के माता-पिता अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पाते उन्हें आवश्यकता ही महसूस नहीं होती क्योंकि प्रशंसा और समाज में उच्च स्थान अब संस्कारों से नहीं मात्र पैसे से मिलने वाली है इसलिए माता-पिता अपने बच्चों ना लौकिक संस्कार देते है ना ही धार्मिक मात्र किताबों तक उनका जीवन सीमित कर देते है और पढ़ाई और नौकरी में उनका जीवन सिमटकर रह जाता है ऐसे बालक जीवन में सही गलत का निर्णय करने में सक्षम नहीं होते, उनमें आत्मसम्मान भी नहीं होता, थोड़ी सी परेशानी में कोई गलत रास्ता दिखा दे तो आजकल तो ऐसा ही होता है ये सोचकर गलत रास्ते पर चलने लगते है। ऐसे में हमारे पुत्र या पुत्री का जीवन नरक बनना निश्चित हो जाता है।
तो क्या करना चाहिए वर अथवा वधु का चयन करते समय :-
1. सबसे महत्वपूर्ण बात कि जिनसे हम सम्बन्ध जोड़ रहे है वे जैन धर्म के दृढ़श्रद्धानी हो तथा वीतरागी देव-शास्त्र-गुरु के परम भक्त हो यदि वे रागी-द्वेषी, देवी-देवताओं के भक्त हुए और गृहीत मिथ्यात्व से ग्रसित हुए तो विवाह का जो उद्देश्य है काम इच्छाओं को मर्यादित करते हुए 'सम्यक् धर्माचरण पूर्वक गृहस्थ धर्म का पालन' वह उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा।
2. सर्वप्रथम तो स्वयं से अधिक कोई और रिश्तेदार समझदार है वो जैसा कहेंगे, हम कर देंगे ये सोच दिमाग से निकाल दो, बेटा या बेटी आपके है तो उनके लिए पूर्ण मनोयोग से, बिना आलस किए, पूर्ण परख के पश्चात् यदि सही-गलत का निर्णय कोई ले सकता है तो वो केवल आप स्वयं है अन्य कोई नहीं, तो सलाह किसी भी लो, किन्तु अन्तिम निर्णय आपको ही लेना है।
3. जब आप किसी परिवार से मिलते है तो उसके धन पर नहीं उसके धर्म पर द्रष्टि रखिए, उनकी जीवन शैली को देखिए, उनके व्यवहार को देखिए।
4. वर-वधु सहित दोनों परिवार आपस में खुलकर एक दूसरे बातें करे, किसको क्या अच्छा लगता है, किसकी क्या क्या रुचियां है, ताकि सभी को एक दूसरे की सोच व व्यवहार को समझने का अवसर प्राप्त हो सके। क्योंकि ये प्रसंग मात्र 2 व्यक्तियों के विवाह का नहीं अपितु 2 परिवारों के सम्बन्ध का भी है।
5. वर और वधु को आपस में खुलकर बात करने का मौका अवश्य दें ताकि वे एक-दूसरे को समझ सकें, उनके विचार आपस में मिलते है या नहीं या वे एक दूसरे के साथ जीवन बिता पाएंगे या नहीं ये निर्णय उन्हें करने दीजिए। अपना निर्णय स्वयं लेने का उन्हें पूर्ण अधिकार है।
6. यदि सब कुछ ठीक लगता है किन्तु फिर भी मन में कुछ शंका है तो छुपकर आप किसी भरोसेमंद व्यक्ति से चयन किए हुए जीवनसाथी की संगति के विषय में पता कर सकते है क्योंकि मनुष्य की संगति ही उसके चरित्र का सम्यक् बखान करती है।
विवाह के कौन से कार्यक्रम आवश्यक है और कौन से कार्यक्रम आवश्यक नहीं ?
वर्तमान समय में विवाह के अवसर पर आधुनिकता और दिखावे के नाम पर अनेक ऐसे अनावश्यक कार्य किए जाते है जिससे मात्र समय और धन व्यर्थ नष्ट होता है जिससे विवाह में कोई लाभ नहीं होता। तथा कुछ कार्यों से तो हमारी संस्कृति भी नष्ट होती है। हमें इन सभी से बचना चाहिए। तथा विवाह के अवसर पर किस प्रकार के आवश्यक कार्य हम कर सकते है इस विषय पर हमें विचार करना चाहिए।
विवाह में करने योग्य आवश्यक कार्य:-
सर्वप्रथम तो हमें ध्यान रखना चाहिए कि अधिक से अधिक 3 दिन में विवाह की समस्त रस्में पूर्ण हो जाती है। और हमारे सभी रिश्तेदार तथा परिवारजन इन रस्मों में उपस्थित रहकर विवाह का पूर्ण आनन्द भी लेते है।
तो सर्वप्रथम तो विवाह के लिए निश्चित किए गए इन दिनों की दिनचर्या कुछ इसप्रकार से होनी चाहिए जिसमें सभी रस्मों का आनन्द पूर्वक लाभ लिया जा सके।
प्रथम दिन:-
प्रात:- 07:00 बजे से 08:30 बजे तक.............................. प्रक्षाल-पूजन-विधान
प्रात:- 08:30 बजे से 09:30 बजे तक...............................नाश्ता
प्रात:- 10:00 बजे से 11:00............................................ लग्न
दोपहर :- 11:30 बजे से................................................ भोजन
दोपहर :- 02:00 बजे से................................................ मंगलगीत (परिवार की महिलाओं द्वारा)
सांयकाल:- 05:00 बजे से सूर्यास्त से पूर्व तक............... भोजन
सांयकाल:- 07:00 बजे से 08:00 बजे तक......................जिनमन्दिरजी में जिनेन्द्र भक्ति
सांयकाल:- 08:00 बजे से 09:00 बजे तक......................विवाह के सम्बन्ध में परिवार एवं रिश्तेदार जनों के अनुभवी बुजुर्गों के अनुभव:-
द्वितीय दिन:-
प्रात:- 07:00 बजे से 08:30 बजे तक.............................. प्रक्षाल-पूजन-विधान
प्रात:- 08:30 बजे से 09:30 बजे तक...............................नाश्ता
प्रात:- 10:00 बजे से 12:00 बजे तक.............................. महिला संगीत (मात्र महिलाओं के लिए)
दोपहर :- 11:30 बजे से................................................ भोजन
दोपहर :- 02:00 बजे से 03:00 बजे तक.........................मंगलगीत (परिवार की महिलाओं द्वारा)
दोपहर :- 03:00 बजे से 4:00 बजे तक.......................... भातई मिलाप
सांयकाल:- 05:00 बजे से सूर्यास्त से पूर्व तक.............. भोजन
सांयकाल:- 07:00 बजे से 08:00 बजे तक........................जिनमन्दिरजी में जिनेन्द्र भक्ति
सांयकाल:- 07:00 बजे से 08:00 बजे तक परिवार के साथ विवाह के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न एवं उत्तर स्वरूप चर्चाएं अथवा परिवार की उपस्थिति में हसीं-ठिठोली रूप खेल।
तृतीय दिन:-
प्रात:- 07:00 बजे से 08:30 बजे तक.............................. प्रक्षाल-पूजन एवं विधान समापन
प्रात:- 08:30 बजे से 09:30 बजे तक...............................नाश्ता
प्रात:- 12:00 बजे से..................................................... बारात स्वागत एवं प्रीतिभोज
दोपहर :- 01:00 बजे से 4:00 बजे तक........................... सम्पूर्ण विवाह विधि एवं पाणिग्रहण संस्कार...
सांयकाल:- 05:00 बजे से सूर्यास्त से पूर्व तक.............. .....भोजन
चतुर्थ दिन
प्रात:काल - विदाई अथवा गृह प्रवेश...
जैन विवाह विधि पुस्तक से संकलित:-
-:विवाह की विधि:-
1. वाग्दान, सगाई या टीका
2. वरण- विधि
3. प्रदान - विधि या कन्यादान - विधि
4. पाणि-पीडन, पाणि-ग्रहण या हथ-लेवा एवं गठजोड़ा
हारिद्रपंकमवलिप्य सुवासिनीभिः, दत्तं द्वयोर्जनकयोः खलु तौ गृहीत्वा ।
वामं करं निजसुताभवमग्रपाणिं, लिम्पेद्वरस्य च करद्वययोजनार्थम् ॥
5. सप्त पदी, सप्त वचन एवं सप्त फेरे
॥ प्रत्येक फेरे के बाद पढ़े जाने योग्य अर्घ्य ॥
वर के सप्त वचन
महत्वपूर्ण बातें :-
विषय से सम्बंधित किसी भी प्रश्न के लिए सम्पर्क करें :-
~ पं. सम्भव जैन शास्त्री, श्योपुर
मोबाईल नम्बर - 8302047216