Tuesday, November 30, 2021

दैनिक पाठ (नित्य भावना)

 


 (वीरछंद)

 तर्ज:- जब एक रतन अनमोल है तो..

 तीनकाल  और  तीनलोक  के,  जितने  वीतराग  महंत।

 हुए,  हो रहे,  और  होऐंगे,  सबको  मेरा  नमन  अनंत।।

 तीनलोक  के  क्रत्रिम-अक्रत्रिम,   चैत्यालय-चैत्य सभी।

 वंदन  उन्हें  अनन्त  हमारा,  सम्यक्दर्शन  होए  अभी।।

 ढाईद्वीप  में,  वर्तमान  में,    संघ  चतुर्विध  है  जितने।

 नमन हमारासदा सभी को, यथायोग्य  हम  करें विनय।।

  चतुर्संघ  की    चर्या    निर्मल,   वीतराग   परिणति   होवे।

   निरंतराय  प्रासुक आहार हो, सुलभ  मोक्षमार्ग होवें।। 

  तीनलोक  में  जिन जीवों  को, जो भी कष्ट हुआ जिनसे।

  क्षमाभाव सब  हृदय धरें  और नहीं बैर हो  फिर  उनसे।।

  आदर्श   हमारे  वीतराग,  हम    भी   हो जाए   वीतराग।

  भाव    यही  है  सदा  हृदय में,   पाए  सच्चा  मोक्षमार्ग।।

  तीनलोक   के   जीव   सभी  सच्चे   मारग  की  ओर बढ़े।

  छोड़  सभी  संसार  कार्य  और  मोक्षमार्ग  की ओर बढ़े।।


हिन्दी अर्थ :- समस्त तीनलोक में भूतकाल जितने भी सच्चे वीतरागी देव-शास्त्र-गुरु हुए है, वर्तमान में हो रहे है, तथा भविष्य में होएंगे उन सभी को मेरा अनन्त बार नमन है।।

तीनों लोकों में जितने भी कृत्रिम तथा अक्रत्रिम जिनालय और जी प्रतिमा है उनके दर्शन से मुझे भी आत्मदर्शन अर्थात् सम्यकदर्शन की प्राप्ति हो ऐसी भावना के साथ उन सभी को मेरा अनन्त बार नमन है।।

सम्पूर्ण ढा़ईद्वीप में वर्तमान में जितने भी चतुर्संघ (मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका) है उन सभी की वीतरागता को मेरा नमन करते हुए में उन सभी की यथायोग्य विनय करता हूं।।

चतुर्संघ (मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका) की चर्या निर्दोष रहे तथा निरंतराय, प्रासुक आहार उन्हें प्राप्त हो जिससे उनका मोक्षमार्ग सुलभ हो, ऐसी मैं भावना भाता हूं।।

समस्त तीनलोक में जिन जीवों को भी जिनसे भी जो भी कष्ट हुआ हो, वे सभी जीव अपना बैरभाव भूलकर एक दूसरे के प्रति हृदय में क्षमाभाव धारण करें।।

एकमात्र वीतरागी ही मेरे आदर्श है और मेरे ह्रदय में तो सदा यही भावना है कि मैं भी शीघ्र ही उनकी तरह ही वीतरागता को प्राप्त होऊं, और मुझे भी सच्चे मोक्षमार्ग की प्राप्ति हो।

मैं भावना भाता हूं कि समस्त तीनलोक में जितने भी जीव है सभी जीव समस्त सांसारिक कार्यों को व्यर्थ जानकर उन्हें छोड़कर मोक्षमार्ग की ओर बढ़े तथा सच्चे सुख को प्राप्त करें।।

 


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