Tuesday, November 30, 2021

बारह भावना

 


       (तर्ज:- में अपूर्व कार्य करूंगा)


आतम है मेरा शुद्ध बुद्ध उस ही को ध्याऊंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।टेक।।


संसार में पर्याय अनंतों धारण कर ली है।

लेकिन दो.. समय भी कोई ना रुकी है।

आतम ही है नित्य बस उसी को ध्याऊंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।१।।


देह के रिश्तेदार बहुत ही बन रहे।

लेकिन दुख में कोई भी न काम आ रहे।

निज आतम है शरण निज शरणार्थी बनूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।२।।


संसार सारा देख है सुख नहीं कुछ भी।

अपने घर से ज्यादा सुख नहीं कहीं भी।

अब तो नित अपने निज घर में ही रहूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।३।।


मित्र शत्रु तात माता रिश्तेदार हैं।

मुझमें नहीं कोई यह सब तो व्यवहार है।

एकाकी हूं मैं सदा एकाकी रहूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।४।।


मोहोदय के कारण सबको अपना ही माने।

जब देह ही अपनी नहीं तो कौन कहां ठाने।

सबसे हूं मैं भिन्न अब तो भिन्न रहूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।५।।


सौ बार सफाई करें फिर भी मलिन ही रहे।

ऐसे अशुचि देह में अब कैसे हम रहे।

परम पवित्र है आत्मा अब उसमें रहूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।६।।


अंधेरे खाली घर हो तो चोर आते हैं।

आतम में ना रहे मूढ़ तो कर्म आते हैं।

बाहर कभी न जाकर अब निज घर में रहूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।७।।


घर में रहे कर द्वार बंद तो चोर ना आवें।

अंतर में रह निज ध्यावें तो कर्म न आवें।

कर्मागम के द्वार को अब बंद करूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।८।।


पानी भरा निज नांव दोनों हाथ उलीचतें।

बाहर करें सब कर्म निज आतम को सींचतें।

कर बंद आस्रव द्वार को निज कर्म खिरुंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।९।।


कोई ना कर्ता लोक का अनादि से है ये।

जीवादि षट् द्रव्य भी इसमें सदा रहे।

प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र में भी स्वतंत्र रहूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।१०।।


बोधि लक्षण जीव का यह सबसे है महान।

'सम्भव' है निज कार्य इसको दुर्लभ ना तू जान।

सच्चे सुख को पाने का पुरुषार्थ करूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।११।।


धर्म करता सब जगत पर न धर्म को जाने।

जाने बिना निज धर्म को वे धर्म को चाहें।

निज आतम को ध्याकर सच्चा धर्म करूंगा।

जान लिया संसार बारह भावन भाऊंगा।।१२।।





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