दुनियां में एक पिता का नाम रोशन भी उनका बेटा करता है, और नाम बदनाम भी बेटा करता है, वैसे ही एक गुरु का नाम रोशन भी उनके शिष्य करते है, और बदनाम भी उनके शिष्य ही करते है।
गुरुदेव श्री कानजी स्वामी ने दिगम्बर शास्त्रों का गहराई से अध्ययन किया और उसे जीवन में भी अपनाया। गुरुदेवश्री की तो जैनसिद्धांतों में कोई भूल नहीं थी, लेकिन उनके कुछ अनुयायियों ने छोटी-छोटी बातों को इतना तो चलता है, के नाम पर चलाना शुरू कर दिया जिसके कारण देखने वालों को लगा कि गुरुदेव ने ऐसा सिखाया इसलिए गुरुदेव गलत हो गए।
गुरुदेव तो जिनवाणी के अनुसार शुभभाव को कथन्चित् हेय बताते थे, कथन्चित् उपादेय बताते थे। पूजन पाठ से धर्म नहीं होता कहते थे, किन्तु खुद स्वयं मन्दिर में शुद्ध वस्त्र पहनकर पूजन-पाठ, भक्ति किया करते थे, लेकिन उनके कुछ अनुयायियों ने अपनी सुविधा के लिए उसमें भी क्रिया में अशुद्धता फैलाना शुरू कर दी। कहने लगे कि क्रियाओं से धर्म नहीं होता, शुभभाव से धर्म नहीं होता। जिसके कारण देखने वालों को लगा कि गुरुदेव ने ऐसा सिखाया इसलिए गुरुदेव गलत हो गए।
गुरुदेव श्री कानजी स्वामी ने कभी किसी वर्तमान मुनि का विरोध नहीं किया, बस जिनवाणी के अनुसार सच्चे गुरु का स्वरूप समझाया, और सच्चे गुरु के गुणों की भक्ति किया करते थे, अरे गुरुदेवश्री तो जीव मात्र पर करुणा भाव रखते थे, एक फूल-पत्ती को भी भगवान आत्मा कहते थे, भाविना भगवान कहते थे, वो तो कभी किसी का विरोध नहीं करते थे, किसी को गलत नहीं बोलते थे, उल्टा विरोध सहते थे, लेकिन उनके अनुयायियों ने विरोध करना शुरू कर दिया, झगड़ा करना शुरू कर दिया, जिसके कारण देखने वालों को लगा कि गुरुदेव ने ऐसा सिखाया इसलिए गुरुदेव गलत हो गए।
गुरुदेव तो जैसा कहते थे वैसा करते भी थे, कभी झूठ नहीं बोलते थे, उनका जीवन अंदर-बाहर एक जैसा था, लेकिन उनके कुछ अनुयायियों ने धर्म की प्रभावना के लिए समाज में झूठ का सहारा लिया, सबसे कहते कुछ और करते कुछ है, कहते है हम रात्रि में नहीं खाते बाजार का नहीं खाते, हमारे बच्चे बाजार का कुछ नहीं खाते जमीकंद नहीं खाते, और जब समाज वाले उन्हें बाजार की वस्तुएं, जमीकंद इत्यादि खाते देखते है, तो देखने वालों को लगता है कि गुरुदेव ने ऐसा सिखाया इसलिए गुरुदेव गलत हो गए।
गुरुदेवश्री ने मिथ्यात्व का, मिथ्यात्व संबंधी लौकिक मान्यताओं का खुलासा किया और स्वयं उन मान्यताओं को त्यागा, किन्तु उनके कुछ अनुयायियों ने खुद लोकव्यवहार के नाम पर ऐसी मिथ्या मान्यताओं को बढ़ावा दिया, तो देखने वालों को लगा कि गुरुदेव ने ऐसा सिखाया इसलिए गुरुदेव गलत हो गाए।
गुरुदेवश्री के प्रवचन में एक पंखा तक नहीं चलता था, आज उनके निमित्त से बने जिनमन्दिर में एयरकंडीशनर लग रहे है, जिनमन्दिर जो कि अहिंसा का प्रतीक है वहां प्रभावना के नाम पर हिंसा से बनी अलग-अलग वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है, तो देखने वालों को लगता है कि गुरुदेव ने ऐसा सिखाया इसलिए गुरुदेव गलत हो गए।
दिगम्बर जैन समाज से अनुरोध है, वर्तमान में गुरुदेव के झूठे अनुयायियों को देखकर गुरुदेव को गलत मत समझो, एक बार उनका प्रवचन उनकी प्रवचन की कोई पुस्तक पढ़िए तब ही आप गुरुदेव के जीवन को समझ पायेंगे। उनकी भावनाओं की सच्चाई को समझ पायेंगे।
और गुरुदेव के अनुयायियों से निवेदन है, कि धर्म को दिखावे की वस्तु न बनाएं, जिनमन्दिर में आवश्यक कार्य ही करे, जिनमन्दिर समवशरण का प्रतीक है, यहां अपने पैसे या प्रतिष्ठा का दिखावा न करके शुद्ध अहिंसा रीति से धर्म के कार्य करें। ताकि देखने वाले अंदाजा लगा सके कि गुरुदेवश्री ने हमें क्या सिखाया है, यह मनुष्य भव बहुत कीमती है, एक-एक काम समझ-समझ कर करना है, कहीं कोई गलती न हो जाए। हम सच्चे जैन है, हमें मोक्ष मार्ग में बढ़ना है, दिखावा करके संसार का मार्ग नहीं बढ़ाना।
सभी लोग इन बातों को पढ़े और विचार करें और स्वयं के सही निर्णय पूर्वक मार्ग का चयन करें और आगे बढ़े।
बहुत अच्छा 🙏
ReplyDeleteधन्यवाद 🙏
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