वर्तमान में अधिकतर समाज में करियर को महत्वपूर्ण माना जाता है, अनेक स्थानों पर आपको लोग बच्चों से कहते मिलेंगे कि बेटा पहले करियर पर ध्यान दो बाकी सब बाद में करना।
बचपन से बच्चों को शिक्षा दी जाती है कि जीवन में प्यार नहीं करियर ही महत्वपूर्ण होता है। और युवा लोग जो वर्तमान में किसी से प्रेम करने लगते है उन्हें कहा जाता है कि प्रेम के चक्कर में मत पड़ो दुःख ही मिलेगा, करियर के पीछे जाओगे तो प्रेम या लड़की तुम्हारे पीछे आएगी। इसतरह की जो सोच समाज में आज बन चुकी है ये सोच कितनी सही है इस विषय में कोई विचार ही नहीं करता बस इस सोच को सही मानकर अपने बच्चों को और आसपास के सभी लोगों को इसी सोच के साथ उपदेश देते है।
किन्तु इस सबमें विचार करने की बात ये है कि लोग कहते है करियर के बाद ही प्रेम मिलता है उसके पहले नहीं। अर्थात् ऐसे जीवों को अपने जीवन में कभी प्रेम मिलता ही नहीं, क्योंकि करियर के बाद यदि कोई आपसे प्रेम करता है अथवा विवाह करना चाहता है तो इसका अर्थ है वो आपसे नहीं आपके करियर से, आपके पैसे से, आपके व्यापार से अथवा आपकी नौकरी से प्रेम करता है, उससे विवाह करना चाहता है आपसे नहीं, इसका अर्थ आपके संस्कार अच्छे है या नहीं, आपकी सोच कैसी है, आपका व्यवहार कैसा है, आपका आचरण कैसा है, आपके गुण कितने है, अवगुण कितने है ये सब ऐसे लोगों के लिए कोई मायने नहीं रखता वो तो मात्र आपके पैसे, नौकरी या व्यापार को देखकर प्रेम या विवाह करते है।
और ऐसे लोग आपके घर को तोड़ते है, पैसे के दिखावे के नशे में परिवार की संस्कृति को खत्म कर देते है, उनकी दृष्टि में माता-पिता का सास-ससुर का अथवा अन्य परिवारजनों का सम्मान नहीं होता, मात्र आपके पैसे की इज्जत होती है आपकी नहीं, क्योंकि उसे आपसे तो कभी प्रेम था नहीं, उसने विवाह किया था आपके करियर से, आपके पैसे से। और ऐसे परिवार में कभी किसी पाप के उदय से पैसा खत्म होने लगे तो विवाह टूटते हुए, घर-परिवार, रिश्ते खत्म होते हुए देर नहीं लगती और क्यों न हो, वो रिश्ते पैसे के बल पर बने थे, प्रेम के बल पर नहीं, इसलिए पैसे गए तो रिश्ते कहां से रह सकते है।
आज बचपन से ही बच्चों को बहुत गलत शिक्षा दी जाती है, उन्हें केवल पैसा कमाना सिखाया जाता है, दूसरी और कोई बात उन्हें सोचने-विचारने का अवसर तक नहीं दिया जाता।
बचपन से ही बच्चे माता-पिता के साथ समय व्यतीत ही नहीं कर पाते उनका सारा जीवन किताबों के साथ ही व्यतीत होता है, जिस उम्र में बच्चों को माता-पिता के संस्कारों की आवश्यकता होती है इस उम्र में माता-पिता तो स्वयं ही अपनी-अपनी नौकरी और अपने-अपने करियर में व्यस्त होते है और बच्चे किताबों में अपना जीवन खो देते है और करियर को ही लक्ष्य मानकर आगे की पढ़ाई के लिए एक दिन शहर छोड़कर दूसरे शहर में और उसके बाद आगे विशेष पढ़ाई और नौकरी के लिए देश छोड़कर दूसरे देश में पहुंच जाते है और जब माता-पिता को उनकी आवश्यकता होती है तो वे बच्चे तो आ नहीं पाते बस पैसे भेज देते है, वर्तमान समय में माता-पिता भी अधिक पैसे कमाने के कारण से बच्चों को समय नहीं दे पाते, जितने चाहिए कमा-कमाकर पैसे देते है और स्वयं को अच्छा माता-पिता समझते है और बड़े होकर बच्चे भी माता पिता को समय नहीं दे पाता जितना चाहिए पैसे भिजवा देते है किन्तु फिर भी समाज को माता पिता की गलती नहीं दिखाई देती केवल बच्चों की गलती दिखाई देती है जबकि संस्कारों के बजाय इस बकवास करियर की शिक्षा उन माता-पिता ने ही इन्हें दी थी तो बच्चों को कैसे गलत कहें ?
कोई यह समझना ही नहीं चाहता है की समय कैसा भी हो, कितनी ही आधुनिकता क्यों न हो, संस्कारों के बिना ये जीवन पतन का कारण है बच्चों को बचपन से ही घर में और विद्यालय में मात्र पैसे कमाना चाहिए, पैसे से ही तुम्हारी संसार में पहचान बनती है, पैसा नहीं होगा तो लोग समाज में इज्जत नहीं देंगे इत्यादि-इत्यादि बातें, बस यही सिखाया जाता है, इसके फल स्वरूप वह बच्चा पैसे कमाने के पीछे इतना पागल हो जाता है कि सही-गलत का विवेक भी खो देता है, परिवार की इज्जत, दूसरे का दुःख या पाप का डर उसके सामने फिर कुछ भी मायने नहीं रखता, वर्तमान में देश में बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, ऐसे बच्चे मेहनत करके पैसे कमाना तो सीख जाते है पर फिर साथ में रिश्वत लेना, जैसे हो सके दूसरे से पैसा निकालना, गरीबों पर अत्याचार करना, बड़ों को अपमानित करना, ये सब भी साथ भी सीख जाते है और ऐसा क्यों न हो, सही गलत का निर्णय करना न तो माता-पिता ने कभी सिखाया था और न ही विद्यालय और रिश्तेदारों ने, सभी ने केवल पैसे कमाना, और करियर बनाना यही तो शिक्षा दी थी तो वे सब पैसे कमाना तो सीख जाते है किन्तु संस्कार और सही-गलत का विवेक नहीं सीख पाते और ऐसे लोग सारा जीवन मात्र गदा मजदूरी करते है धर्म और मोक्षमार्ग तो छोड़ो वर्तमान में इस जीवन का भी उचित आनंद कभी ले ही नहीं पाते, ऐसे अगर धनवान बन भी गए तो क्या लाभ , ऐसे करियर का क्या लाभ जिसके कारण आप दूसरों से प्रेम से बात तक नही कर पाते, दूसरे का दुःख आप नहीं समझ पाते, पैसे के कारण से हृदय की भावनाएं ही खत्म कर देते है, इससे अच्छा तो प्रेम है।
बचपन से ही सबसे प्रेम करो, प्रत्येक पल को प्रेम से जियो, कुछ मिलें या न मिलें दोनों अवस्थाओं में प्रेम से खुशी से रहो। पैसे के लालची बड़े-बड़े गाड़ी बगलें के साथ भी दु:खी रहते है और प्रेमी जीव वन जंगल में भी एक दूसरे के प्रेम के सहारे प्रत्येक अवस्था में सुखी रहते है।
इसलिए सभी माता-पिता और गुरुजन को बचपन से बालकों में प्रेम व्यवहार के संस्कार डालना चाहिए बड़ों का आदर, छोटों को प्यार, निर्धन हो या धनवान, पशु हो या इन्सान हमें सभी से बराबर का प्रेम करना चाहिए ये सभी जीव है अभी अपने पूर्व कर्मों से दुःखी है और कोई अपने पुण्य के कारण सुखी है इनमें दोनों में हमें समता भाव धारण कर सभी से बराबर से प्रेम व्यवहार रखना चाहिए, जितना हो सके व्यवहारिक जीवन में दूसरों की समुचित रूप से मदद भी करना चाहिए सबको साथ में लेकर आगे बढ़ना चाहिए तथा मोक्षमार्ग में विवेक पूर्वक अकेले आगे बढ़ते रहना चाहिए।
Well done, your have mentioned the real present situation of every youth and everyone should be think about this.
ReplyDeleteThanks sir 🙏
DeleteYour thought's good👍🏻
ReplyDeleteThanks.
DeleteNice sambhav ji
ReplyDeleteJi Thanks...
DeleteEveryone desire love.....but in a practical approach both are required we can live with less money but not without love and affection .Moreover love helps to earn every happiness...( Tera saath hai toh mujhe kya kami hai andhoro se bhi mil rahi roshni hai.)
ReplyDeleteThanks...
Deleteजय जिनेन्द्र भाई साहब जी वर्तमान स्थिति को बड़ी खूबी से दर्शाया है लेकिन जहाँ मनोस्थिति को समझने वाले हैं वहां कोई कठिनाई नहीं|
ReplyDeleteजी सही बात है।
DeleteAapke bahut sahi vichar hai .sabhi ko pyar pasand hai lekin practical me nahi late hai .pyar ko value nahi dete hai Carrier ko jyada bhav dete hai . agar Carri or ego beach mein nahin aaye to Pyar Hota,
ReplyDeleteManju jain Mumbai 🙏😊
🙏
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