(दोहा)
जिनप्रतिमा प्रक्षाल से, होते निर्मल भाव।
इसीलिए नित मैं करूं, जिनप्रतिमा प्रक्षाल।।
(वीरछंद)
प्रात: जल्दी उठकर के मैं णमोकार को ध्याता हूं।
जिनप्रतिमा प्रक्षालन के शुभ भाव हृदय में लाता हूं।।
शुद्ध अखंडित वस्त्र पहनकर, जिनमन्दिर में आया मैं।
प्रासुक जल पट शुद्ध साथ ले, सजा थाल में लाया मैं।।
जिनप्रतिमा को देख सहज ही, भाव हुए निर्मल मेरे।
जिनप्रतिमा प्रक्षाल भाव से, पाप गले सारे मेरे।।
सर्वप्रथम मैं शुद्ध सुपट ले, प्रतिमा परिमार्जन कर लूं।
सूक्ष्म जीव की रक्षा होवे, यही भाव हृदय धर लूं।।
प्रासुक जल से भीगा पट ले, प्रतिमा प्रक्षालन कर लूं।
स्वच्छ रहे जिनप्रतिमा मेरी, यही भावना उर भर लूं।।
शुष्क शुद्ध पट लेके हाथ में, प्रतिमा का प्रक्षाल करूं।
नमी जरा भी न रह जाए, पूर्ण सावधानी रक्खूं।।
जिनप्रतिमा प्रक्षाल समय, मैं जिनस्तुति का गान करूं।
जिनसम शुद्ध चिदातम मैं भी, अपना शुद्ध स्वभाव लखूं।।
इसीतरह जिनप्रतिमाओं का, नित प्रक्षालन किया करूं।
मैं भी जिनसम बन जाऊंगा, यही भावना हृदय धरूं।।
(दोहा)
जिनप्रतिमा प्रक्षाल कर, गंधोदक शिरधार।
वीतराग पद पाऊं मैं, यही भावना सार।।

यह अतिसुंदर जिन प्रतिमा प्रक्षाल पाठ, शुद्ध विधि के साथ भावपूर्ण उल्लेख और उद्देश्य का अत्यंत सुंदर एवं भावपूर्ण काव्यात्मक प्रस्तुतीकरण है।
ReplyDeleteधन्यवाद भाईसाहब जी 🙏
Delete👍
ReplyDelete🙏
Deleteશુદ્ધ વિધી નુ સરળ વર્ણન.
ReplyDeleteસરસ
જી ધન્યવાદ 🙏
DeleteBhaav aur arth bahot sundar hai
ReplyDeleteजी धन्यवाद 🙏
Deleteबहुत सुंदर भाव भरे हैं संभव जी
Deleteजी धन्यवाद 🙏
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