Wednesday, November 30, 2022
No Arguments, मैं कुछ सुनना नहीं चाहता
Saturday, October 22, 2022
भगवान महावीर और उनकी आचार्य परम्परा: एक काव्य:-
(दोहा)
हुए हो रहे होएंगे , वीतराग मुनिराज।
नमूं सभी को मैं सदा, मन-वच-काय सम्हाल।।
(वीरछंद)
भरतक्षेत्र के आर्यखंड के, तीर्थंकर चौबीस नमन।
अन्तिम वर्धमान स्वामी के, चरणों में शत-शत वंदन।।
अनुबद्ध तीन केवली नमूं, गौतम, सुधर्म, जम्बूस्वामी।
इनके बाद हुए पांच, श्रुतकेवली द्वादशांग ज्ञानी।।
विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन, भद्रबाहु है नाम।
पांचों श्रुतकेवली मुनिवर के, चरणों में शत-शत प्रणाम।।
इनके बाद हुए ग्यारह, अंग दस पूर्वों के ज्ञानी।
विशाख, प्रौष्ठिल, क्षत्रिय, जयसेन, नागसेन स्वामी।।
सिद्धार्थ, धृतिषेण, विजयमुनि, बुद्धिल अरू गंगदेव स्वामी।
धर्मसेन सहित ग्यारह मुनि के चरणों में शिरनामि।।
ग्यारह अंगों के धारी फिर पांच हुए मुनिराज महान।
नक्षत्र मुनि, जयपाल, पांडु, ध्रुवसेन कंस को करूं प्रणाम।।
एक अंग के धारी चारों, मुनिराजों को करूं प्रणाम।
सुभद्र, यशोभद्र, भद्रबाहु, लोहाचार्य है उनके नाम।।
एक अंग के पूर्ण ज्ञानी, फिर नहीं हुए मुनिराज महान।
और अंग के एक देश ज्ञाता मुनि है, तिनके कछु नाम।।
अर्हद्बलि अरु माघनंदि, गुणधर अरु धरसेन महान।
पुष्पदंत और भूतबली ने, षट्खंडागम लिखा महान।।
प्रथमबार लिपिबद्ध हुई, जिनवाणी मां जयवन्त रहे।
परवर्ती आचार्यों द्वारा और शास्त्र लिपिबद्ध हुए।।
जिनचंद्र, कुन्दकुन्द, उमास्वामी, समंतभद्र, शिवकोटि मुनि।
आचार्य शिवायन, पुज्यपाद, अरू वीरसेन, जिनसेन मुनि।।
नेमिचंद्र आचार्य सहित, ये ही कछु मुनिवर के नाम।
एक देश अंगों के ज्ञाता, इन सबको मैं करूं प्रणाम।।
इनके बाद हुए भावलिंगी, मुनिवर तिनके कछु नाम।
जिनके कारण सतत् चला, जिनवाणी मां का अद्भुत ज्ञान।।
वज्रसूरि, यशोभद्र, योगीन्दु, पात्र स्वामी, ऋषिपुत्र महान।
सिद्धसेन अरु मानतुंग, मुनि प्रभाचंद्र, अकलंक प्रणाम।।
रविषेण, जटाचार्य मुनि, शान्तिषेण जिनसेन महान।
काणभिक्षु, वादिभसिंह मुनि, एलाचार्य को करूं प्रणाम।।
वीरसेन आचार्यदेव जयसेन, विद्यानंदि स्वामी।
अनंतकीर्ति, कुमारनंदि, महावीरसेन जग में नामी।।
जिनसेन स्वामी, दशरथ स्वामी, गुणभद्र स्वामी जग में प्रसिद्ध।
अमृतचंद्र आचार्य हुए जो करें आत्मा को प्रसिद्ध।।
अमितगति अरु अभयनंदि, फिर देवसेन आचार्य महान।
इंद्रनंदि और कनकनंदि सिद्धांत चक्रवर्ती प्रणाम।।
सोमदेव फिर वीरनंदि, सिद्धान्त चक्रवर्ती स्वामी।
जयसेन हुए फिर अमितगति, मानणिक्यनंदि को शिरनामी।।
शुभचंद्र तथा मुनि वादिराज, और रामसेन आचार्य महान।
पद्मनंदि फिर नेमिचन्द्र सिद्धान्तिदेव को करूं प्रणाम।।
वसुनंदि हुए फिर ब्रह्मदेव, जयसेन हुए जिनचंद्र महान।
लघुअनंतवीर्य तथा पद्म प्रभमलधारी मुनि को प्रणाम।।
अभिनव धर्म भूषण यति, मुनिवर के गुण हम गाते है।
श्री धराचार्य देव को सादर शीश झुकाते है।।
महावीर स्वामी के बाद हुए, जो वीतराग मुनिराज।
भक्ति-भाव से वंदन सबको कोटि-कोटि मैं करूं प्रणाम।।
तीन हुए कम नौ करोड़, मुनिवर को वंदन करता हूं।
मैं भी बनूं आपके जैसा यही भावना भाता हूं।।
(दोहा)
आगम से जो भी मिले, आचार्यों के नाम।
अनुक्रम से ही सब लिखे, सबको करूं प्रणाम।।
Friday, October 21, 2022
श्री जिनवाणी पूजन
जिनवाणी पूजन
स्थापना
(रोला)
देव धर्म गुरु दुर्लभ है इस काल में,
किन्तु शास्त्र सुलभ है पुण्य प्रभाव में।
जो समझे जिनवाणी मुक्ति पाते है,
वीतराग वाणी के गुण हम गाते है।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणी-मात:! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणी-मात:! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणी-मात:! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(वीरछंद)
जल से निर्मल वाणी है, जिनवाणी जिसको कहते है।
निर्मल जल से पूजन कर, उस वाणी को हम सुनते है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति...
जिनवाणी की शीतलता, संसारताप नशाती है।
भवताप विनाशक जिनवाणी, सच्चा मारग बतलाती है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति...
जिनवाणी को पढ़ने से अक्षयपद की महिमा आए।
निज शुद्धातम में रमने से अक्षय पद को हम पाएं।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति...
काम शत्रु के कारण अब तक, निज की महिमा न आयी।
जिनवाणी को जब से समझा, काम भावना पलायी।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
काम-बाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति...
भूख लगे फिर बार बार, भोजन से भी न मिटती है।
ये क्षुधामूल का नाश करो अब मां जिनवाणी कहती है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति...
स्व-पर भेद न समझा में, सब मेरे है ये माना था।
मां जिनवाणी ने फिर मुझ को, भेद विज्ञान सिखाया था।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति...
अष्टकर्म ने बांधा मुझको, कैसे में पुरुषार्थ करूं।
हूं स्वतंत्र में ज्ञानमयी, जिनवाणी की यह बात लखुं।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति...
जिनवाणी को खोलू जब भी, मोक्षमार्ग ही खुलता है।
निज वैभव का स्वाद चखे, तब ही मुक्ति पद मिलता है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति...
धूलादी कण नहीं पड़े, जिनवाणी जल्दी ध्वस्त न हो।
ये मंगल वस्त्र चढ़ाता हूं, जिनवाणी रक्षित रहो।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे वस्त्रं निर्वपामीति...
पंचमकाल महादु:ख दायी, देव-धर्म-गुरु दुर्लभ है।
शास्त्र पढ़े तो पद अनर्घ्य भी, सबको सहज सुलभ है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति...
जयमाला
(दोहा)
तीर्थंकर की दिव्यध्वनि, द्वादशांग का ज्ञान।
स्याद्वादमय जिनवाणी, मेरा शतत् प्रणाम।।
(वीरछंद)
तीर्थंकर की दिव्यध्वनि है द्वादशांगमयी जिनवाणी।
सच्चे सुख का मार्ग बताती, सब जीवों को सुखदानी।।
जैसे इक बालक को उसकी माता मार्ग दिखाती है।
बस इसीतरह जिनवाणी हमको मोक्षमार्ग बतलाती है।।
नहीं सुनी जिनवाणी मैने, किया वही था, जो मन में।
काल अनन्तो बीत चुके दुःख सहते-सहते भव वन में।
पूजा-भक्ति में भी मेरा, नाच-गान में समय गया।
पूजा का भी अर्थ न समझा, समय कीमती नष्ट किया।।।
आएं धार्मिक पर्व तथा अवसर जिनवाणी सुनने का।
प्रतियोगिताओं में उलझे, समय नहीं था सुनने का।।
जो भी सुखी होते भगवन, जिनवाणी सुन होते है।
सुनकर और समझकर, सब ही उसी रूप आचरते है।।
जिनवाणी को न समझे वह, भव-भव में दुःख पाता है।
जिनवाणी की बात जो माने सच्चे सुख को पाता है।।
वीतराग-सर्वज्ञ प्रभु की वाणी, मां जिनवाणी है।
सच्चे सुख का मार्ग बताती, एक मात्र जिनवाणी है।
जो भी रुचि से जिनवाणी को पढ़ता और समझता है।
अल्पकाल में मुक्त होय फिर सच्चे सुख को भजता है।।
तीन लोक में सर्व पूज्य है मुक्तिदाता जिनवाणी।
पढ़कर और समझकर रूचि से, सुख पावें जग के प्राणी।।
मां जिनवाणी के चरणों में शत शत वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालामहार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा)
एक मात्र जिनवाणी से, मिलता सुख का मार्ग।
जो समझे, भव दुःख नशे, पावे पद निर्वाण।।
।।पुष्पाजलिं क्षिपामि।।
मेरी मम्मा
मेरी मम्मा मैंने दुनिया की सबसे बड़ी हस्ती देखी है। अपनी मां के रूप में एक अद्भुत शक्ति देखी है।। यूं तो कठिनाइयां बहुत थी उनके जीवन में। ...

-
विवाह क्या है एवं विवाह करना क्यों आवश्यक है? विवाह एक संस्कृत का शब्द है जो कि 'वि' उपसर्ग 'वह्' धातु और घञ् प्रत्यय से बना...
-
पूज्य कौन, कैसे व क्यों ?? इस संसार में अनन्त जीव रहते है, सभी दुःखी है और सुख की चाह में या सुख की खोज में दिन-रात प्रयत्न करते है फिर भी...
-
वर्तमान में सभी जीव बहुत ही परेशान बहुत ही दुःखी दिखाई देते हैं, और उसका सबसे बड़ा कारण है कि वह जिंदगी तो अपनी जीते हैं मेहनत तो स्वयं करते...