जिनवाणी पूजन
स्थापना
(रोला)
देव धर्म गुरु दुर्लभ है इस काल में,
किन्तु शास्त्र सुलभ है पुण्य प्रभाव में।
जो समझे जिनवाणी मुक्ति पाते है,
वीतराग वाणी के गुण हम गाते है।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणी-मात:! अत्र अवतर अवतर संवौषट् ।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणी-मात:! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:
।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणी-मात:! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् ।
(वीरछंद)
जल से निर्मल वाणी है, जिनवाणी जिसको कहते है।
निर्मल जल से पूजन कर, उस वाणी को हम सुनते है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति...
जिनवाणी की शीतलता, संसारताप नशाती है।
भवताप विनाशक जिनवाणी, सच्चा मारग बतलाती है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति...
जिनवाणी को पढ़ने से अक्षयपद की महिमा आए।
निज शुद्धातम में रमने से अक्षय पद को हम पाएं।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं निर्वपामीति...
काम शत्रु के कारण अब तक, निज की महिमा न आयी।
जिनवाणी को जब से समझा, काम भावना पलायी।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
काम-बाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति...
भूख लगे फिर बार बार, भोजन से भी न मिटती है।
ये क्षुधामूल का नाश करो अब मां जिनवाणी कहती है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति...
स्व-पर भेद न समझा में, सब मेरे है ये माना था।
मां जिनवाणी ने फिर मुझ को, भेद विज्ञान सिखाया था।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति...
अष्टकर्म ने बांधा मुझको, कैसे में पुरुषार्थ करूं।
हूं स्वतंत्र में ज्ञानमयी, जिनवाणी की यह बात लखुं।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति...
जिनवाणी को खोलू जब भी, मोक्षमार्ग ही खुलता है।
निज वैभव का स्वाद चखे, तब ही मुक्ति पद मिलता है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति...
धूलादी कण नहीं पड़े, जिनवाणी जल्दी ध्वस्त न हो।
ये मंगल वस्त्र चढ़ाता हूं, जिनवाणी रक्षित रहो।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे वस्त्रं निर्वपामीति...
पंचमकाल महादु:ख दायी, देव-धर्म-गुरु दुर्लभ है।
शास्त्र पढ़े तो पद अनर्घ्य भी, सबको सहज सुलभ है।।
मां जिनवाणी के चरणों में, शत्-शत् वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने, उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे
अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यम् निर्वपामीति...
जयमाला
(दोहा)
तीर्थंकर की दिव्यध्वनि, द्वादशांग का ज्ञान।
स्याद्वादमय जिनवाणी, मेरा शतत् प्रणाम।।
(वीरछंद)
तीर्थंकर की दिव्यध्वनि है द्वादशांगमयी जिनवाणी।
सच्चे सुख का मार्ग बताती, सब जीवों को सुखदानी।।
जैसे इक बालक को उसकी माता मार्ग दिखाती है।
बस इसीतरह जिनवाणी हमको मोक्षमार्ग बतलाती है।।
नहीं सुनी जिनवाणी मैने, किया वही था, जो मन में।
काल अनन्तो बीत चुके दुःख सहते-सहते भव वन में।
पूजा-भक्ति में भी मेरा, नाच-गान में समय गया।
पूजा का भी अर्थ न समझा, समय कीमती नष्ट किया।।।
आएं धार्मिक पर्व तथा अवसर जिनवाणी सुनने का।
प्रतियोगिताओं में उलझे, समय नहीं था सुनने का।।
जो भी सुखी होते भगवन, जिनवाणी सुन होते है।
सुनकर और समझकर, सब ही उसी रूप आचरते है।।
जिनवाणी को न समझे वह, भव-भव में दुःख पाता है।
जिनवाणी की बात जो माने सच्चे सुख को पाता है।।
वीतराग-सर्वज्ञ प्रभु की वाणी, मां जिनवाणी है।
सच्चे सुख का मार्ग बताती, एक मात्र जिनवाणी है।
जो भी रुचि से जिनवाणी को पढ़ता और समझता है।
अल्पकाल में मुक्त होय फिर सच्चे सुख को भजता है।।
तीन लोक में सर्व पूज्य है मुक्तिदाता जिनवाणी।
पढ़कर और समझकर रूचि से, सुख पावें जग के प्राणी।।
मां जिनवाणी के चरणों में शत शत वंदन करता हूं।
मार्ग बताया है जो आपने उस पर ही अब चलता हूं।।
ॐ ह्रीं श्री जिनवाणीमात्रे अनर्घ्यपदप्राप्तये जयमालामहार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
(दोहा)
एक मात्र जिनवाणी से, मिलता सुख का मार्ग।
जो समझे, भव दुःख नशे, पावे पद निर्वाण।।
।।पुष्पाजलिं क्षिपामि।।
सुन्दर रचना बधाई
ReplyDeleteजी धन्यवाद भाईसाहब जी
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