फिर एक प्रश्न और खड़ा होता है कि हमारे इस जीवन का उद्देश्य क्या है जब हम चारों तरफ देखते हैं तो एक दौड़ लगी हुई है शास्त्रों में जब जीवन का वर्णन आए तो आता है कि पहले बचपन आता है बाल अवस्था फिर युवा अवस्था फिर बुढ़ापा किंतु अब अगर जीवन को देखें तो पहले पढ़ाई फिर सरकारी नौकरी फिर अगर पुण्य के उदय से नौकरी लग गई तो शादी और शादी के बाद जीवन की बर्बादी।
आज किसी का कोई लक्ष्य ही समझ में नहीं आता, जीवन के संबंध में कभी हम विचार ही नहीं करते कि हमारा जन्म क्यों हुआ है?
इस संसार में अनेक जीव है उनमें से कुछ हमें दिखाई देते हैं अलग-अलग तरह के जीव कोई गाय हैं कोई भैंस कोई तोता कोई कबूतर, चींटी, मच्छर इन सब जीवों में, मैं इतना समझदार मैं क्यों, मैं इतना संपन्न क्यों हूं इन्हें ऐसा जीवन क्यों मिला मुझे ऐसा जीवन क्यों मिला यह सब सोचने के बजाय एक ही बात सोचते हैं कि आखिर सरकारी नौकरी कैसे लगेगी उसके लिए जो करना है वह करेंगे।
जब मुझे यह विचार आता है तो संसार से डर लगने लगता है ऐसा लगने लगता है कि पता नहीं अब क्या होगा मेरे मरने के बाद क्या होगा यह जीवन जो मुझे मिला है इसका उद्देश्य क्या है क्या जन्म लेकर पढ़ना लिखना नौकरी करना शादी बच्चे फिर मर जाना क्या इसलिए यह मनुष्य भव मिला है।
इन सब बातों को लेकर मैंने एक कविता भी लिखी थी जब मुझे विचार आता है कि जो भी हमारे बुजुर्ग दादा-परदादा हुए, राष्ट्रीय संत हुए, नेता हुए वह सब जिनके फोटो पर माला चढ़ाकर बड़े-बड़े गीत गाए जाते हैं, कहां हैं वह सब, क्या किया उन्होंने दुनिया में आकर कौन सा महान काम किया इन सब बातों को लेकर मैंने एक छोटी सी कविता लिखी है चार लाइन की वह मैं यहां लिखता हूं -
जरा विचार तो करो कि सारे लोग कहां गए,इस संसार में आकर के क्या महानता दिखा गए।पैदा हुए, व्यापार सीखा, धन कमा बूढ़े हुए,बंधु जन को सौंप कर इस जगत से चल दिए।।
हम एक बार फिर विचार करें कि हम क्या कर रहे हैं जीवन का उद्देश्य क्या है परंपरागत जो कुछ चल रहा है वह सही है या गलत, यह सोचे बिना हम उसमें शामिल हो जाते हैं और जैसा सब लोग करते हैं वैसे ही हम अपनी जिंदगी बना लेते हैं और पूरी जिंदगी दुखी रहते हैं।
जब एक बालक का जन्म होता है तब वह छोटा सा बालक जो रोते-रोते दुनिया में आया है वह दुनिया से हर तरह की परंपरा हर तरह के धर्म सभी से अनजान होता है उसे जैसा सिखाया जाता है वह मानता चला जाता है जिस माहौल में वह रहता है बस उसी में ढल जाता है उसी को अपनी दुनिया समझ लेता है। उसके माता-पिता अपना पहला कर्तव्य बालक को अच्छे संस्कार देने के बजाय अच्छे विद्यालय में पढ़ाना समझते हैं वह छोटा सा बालक अ से अनार आ से आम और ए फॉर एप्पल सीखने लगता है।धीरे-धीरे उसका विद्यालय का समय सुबह 7:00 से लेकर दोपहर 3:00 बजे तक का हो जाता है एक-एक घंटा तो विद्यालय आने-जाने में लगता है क्योंकि विद्यालय शहर से बाहर होते हैं उसके बाद कोचिंग की पढ़ाई एक दो घंटा उसमें व्यतीत हो जाता है उसके बाद मम्मी डंडा लेकर पापा डांट कर विद्यालय व कोचिंग का होमवर्क करवाते हैं यह होता है वर्तमान समय के बालकों का जीवन और विद्यालय में इन्हें सिर्फ किताबें पढ़ाई जाती हैं, सही गलत का निर्णय करना नहीं सिखाया जाता कोई बच्चा अगर किसी को थप्पड़ मार दे तो वर्तमान के हमारे शिक्षक थप्पड़ मारने वाले को समझाने के बजाए थप्पड़ खाने वाले से कहते हैं बेटा तू भी इसे मारना अब यह हमारी वर्तमान विद्यालयों की शिक्षा है लेकिन माता-पिता अपने बालकों से कभी यह नहीं पूछते कि बेटा आज विद्यालय में दिन कैसा रहा क्या सीखने को मिला क्या खाया कैसे दोस्त बनाए यह सब पूछने के बजाय बालक के घर पर आने के बाद बालक से कहा जाता है कि जल्दी से खाना खाने आओ और खाना खा कर के होमवर्क करने बैठ जाओ कक्षा में प्रथम आना है पिछली बार गुप्ता जी का लड़का प्रथम आया था तो उसकी सब ने कितनी प्रशंसा की थी इस बार तुम्हें भी प्रथम आना है यह है हमारा जीवन।
उसके बाद जब दिन-रात की मेहनत और पुण्य के उदय से माता-पिता के साथ रहकर भी वह माता-पिता के स्नेह से वंचित रहते हुए अगर कक्षा में प्रथम स्थान लाता है या फिर अच्छे अंको से पास होता है तो फिर आगे की पढ़ाई के लिए किसी को अपने शहर में व्यवस्था होते हुए भी अपना शहर पसंद नहीं आता बाहर भेज दिया जाता है वहां उसके मांगने के अनुसार माता-पिता पैसे भेजते हैं कभी कुछ पूछते नहीं बालक से कि वहां कैसा चल रहा है दिनचर्या कैसी है क्या खाते हैं क्या पीते हैं कुछ नहीं। फोन करके पूछा जाता है तो एक ही प्रश्न है कि बेटा पढ़ाई कैसी चल रही है पैसे जितने चाहे मांग लेना बस पढ़ाई मन लगाकर करना तब एक बालक की जिंदगी एक किताब तक सीमित होकर रह जाती है उसकी अपनी कोई सोच नहीं रह जाती उसका अपना कोई निर्णय नहीं रह जाता किताब लिखने वाले लेखक की कलम के इशारे पर अब वह अपनी जिंदगी जीने लगता है।
जब मैं कक्षा तीन या कक्षा चार में पढ़ता था तब मैं सोचा करता था कि यह विज्ञान की किताब हम पढ़ रहे हैं इसे लिखने वाले ने क्या पढ़ कर इसे लिखा होगा। जब वह खोज कर सकता है अपने दिमाग से अपना निर्णय ले सकता है तो क्या हमारे पास दिमाग नहीं है अगर उसके पास ज्ञान है तो हमारे पास भी तो ज्ञान है अगर उसके पास समझदारी है तो हम भी तो समझदार हैं तब एक नई बात समझ में आने लगी ज्ञान होता सभी के पास है लेकिन उसका सही उपयोग सब लोग नहीं कर पाते।
आज के समय के हर व्यक्ति सोचते हैं कि हमारे माता-पिता हमारे गुरुजन उनसे अच्छा निर्णय दुनिया में कोई नहीं ले सकता वह बड़े हैं, बहुत ज्ञानी हैं अरे भैया विचार तो करो वह भी साधारण इंसान है केवलज्ञानी नहीं है उनकी कुछ बातें गलत भी हो सकती हैं और हो सकता है उनसे बहुत अच्छी हमारी सोच हो,
एक पिता अगर सिगरेट पीता है, जुआ खेलता है, एक गुरु अगर शराब पीते हैं, जुआ खेलते हैं, गुटखा खाते हैं तो आदर्श पिता और आदर्श गुरु नहीं माने जाते, बल्कि एक बेटा या एक शिष्य उनसे ज्यादा अच्छे काम कर सकता है, उनसे ज्यादा संस्कारी निकल सकता है।
दिगम्बर जैनाचार्य कुंदकुंददेव स्वयं जैन अध्यात्म ग्रंथ समयसारजी की पांचवी गाथा में लिखते हैं-
कि मैं जो अपने अनुभव से शुद्धात्मा दिखाने जा रहा हूं उसे मैंने कहा इसलिए स्वीकार नहीं करना पहले स्वयं प्रमाण करना तब स्वीकार करना उसी तरह दुनिया की हर बात चाहे लौकिक हो या धार्मिक किसी के भी द्वारा कही गई हो पहले खुद परीक्षा करो तभी स्वीकार करो अंतिम निर्णय स्वयं का ही होना चाहिए।
लेकिन हमारे वर्तमान जीवन में ऐसा होता दिखाई नहीं देता जब एक बालक की पढ़ाई उसकी दिन-रात की मेहनत से वह करता है तब बहुत से बालक तो इस प्रथम आने की प्रतियोगिता में हार कर आत्महत्या कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि अब वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहे। बहुत से बालक कॉलेज में गलत आदतें सीख कर गलत कामों को अंजाम देने लगते हैं जो माता-पिता जीवन भर की कमाई अपने बच्चों को प्रथम लाने में लगा देते हैं बाद में वह दुखी होकर रोते हैं, और उसके बाद दिन-रात की मेहनत तो बहुत बच्चे करते हैं किंतु वहां पुण्य के उदय से जो प्रथम आया उन्हें भी नौकरियां करना पड़ती है आज के समय में नौकरी के लिए आरक्षण एवं पैसे से बिकने वाली सीटों की समस्याओं से भी गुजरना पड़ता है बहुत से डिग्री धारी आज अपनी जिंदगी में रोते दिखाई देते हैं लेकिन अगर पुण्य के उदय से नौकरी भी मिल जाए तो 6 माह के अंदर शादी करा दी जाती है और उसके बाद बालक के होने से पहले उसके नाम से बैंक में पैसा जमा करना शुरू कर देते हैं और इस तरह पूरी जिंदगी में कभी खुश नहीं रह पाते आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए बिना कुछ सोचे समझे वर्तमान में कोई भी कुछ भी करने लगता है जबकि वह आने वाले कल में हम होंगे या नहीं इसका भी पता नहीं होता।
इन सबके बाद जब बुजुर्ग अवस्था आती है तो कोई ठीक से बात नहीं करता हर जगह अपमान सहन करना पड़ता है क्योंकि सभी लोग अपनी जिंदगी से परेशान आने वाले कल को बेहतर बनाने में लगे हैं और माता-पिता अपने बुजुर्ग अवस्था का दु:खी जीवन जीना शुरु कर देते हैं पुण्य के उदय से अच्छे से अच्छे सेवा भाव वाले बेटे बहू भी हो तो जीवन भर कभी स्वयं का निर्णय न ले पाने की वजह से भेद-विज्ञान की कला के अभाव में अंत में इस देश को छोड़ कर चले जाते हैं।
महा पुण्य से मिला यह मनुष्यभव जिनवाणी तो कहती है यह मनुष्यभव अनंत भव की कमाई है एक पिता जब 20 साल मेहनत करके अपनी बेटी की शादी के लिए पैसे जमा करता है और अचानक कोई वह रकम उससे छीन कर ले जाए तो उस पिता की हालत क्या होगी यह तो सिर्फ 20 वर्ष की कमाई थी। जिसके व्यर्थ जाने पर वह पिता आत्महत्या का भी मन बना लेता है और जो यह अनंतभवों के शुभ परिणाम, वीतरागता की भक्ति मुनि पने की तीव्र भावना ऐसे अनंत भव के अनंत शुभ परिणामों से मिले मनुष्य भव हम कैसे व्यर्थ गंवा सकते हैं हमें बचपन से ही बालक को तत्वज्ञान एवं दुनिया की सही-गलत की पहचान कराना सिखाना चाहिए। पेट भरना तो जीव अपने आप सीख लेता है उसे सीखाना नहीं पड़ता।
एक बच्चे का जब जन्म होता है तो उसे बताना नहीं पड़ता कि भूख केसे मिटानी है। पूर्व के पाप पुण्य हमारे साथ चलते हैं जब मैं कक्षा 10 में था तब मुझे पता भी नहीं था कि भारत में जैन विद्यालय भी खुले हैं जिनवाणी भी पढ़ाई जाती है लेकिन वहां पुण्य का उदय था। सब सहयोग अपने आप मिलते चले गए और आज हृदय में व मस्तक में जिनवाणी का वास रहता है।
जब तुझे महा पुण्य के उदय से भव भव के अनंत दुखों की नाशक जिनवाणी मां का साथ मिल सकता है बिना किसी पुरुषार्थ के,, तो मुझे नहीं लगता कि 2 समय के भोजन के लिए दिन रात मेहनत करके हमारा ये कीमती मनुष्य भव बर्बाद करना होगा।
यहां मैं पढ़ाई लिखाई या लौकिक परंपराओं का निषेध नहीं कर रहा,, यहां बस यह सिखाया जा रहा है कि आप कोई भी काम करें लेकिन वह सही है क्या गलत आपके लिए सबसे उत्कृष्ट कार्य क्या वही करें ऐसे कारण सहित निर्णय पूर्वक आगे बढ़े और अपना यह मनुष्य जीवन को सफल बनाएं।।
great
ReplyDeleteThank you
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