Thursday, September 9, 2021

*दशलक्षण धर्म का स्वरूप*


*छन्द:- (सवैया इकतीसा)*

इष्ट है न कोई न अनिष्ट इस जग में

ऐसा माने जो भी उसके क्षमा धर्म होता है।

कोई नहीं बड़ा कोई छोटा नहीं जग में

ऐसा मानने पर उत्तम मार्दव धर्म होता है।

छल नहीं करना है इस जीवन में कभी

सरल भाव रखना ही आर्जव धर्म होता है।

परवस्तु अपवित्र लोभ नहीं करना कभी

आत्मा की शुचिता ही शौच धर्म होता है। 11।


झूठ कभी नहीं बोलू सत्य वचन ही बोलूं तो,

सत् रूपी आत्मा ही सत्य धर्म होता है।

वश करो पंचेन्द्रिय अहिंसा का पालन करो,

आत्ममय संयम ही उत्तम संयम होता है।

प्रायश्चित अनशनादि तप कहे व्यवहार

आत्मा का ध्यान उत्तम तप कहलाता है।

पर वस्तु मोह छोड़ो शुद्धता का दान करो,

आत्मा की लीनता ही त्याग धर्म होता है ।।2।।


न मैं किसी का हूँ और न ही कोई मेरा है

ऐसा मानने पर उत्तम आकिंचन्य होता है।

स्त्री सेवन त्याग करो इंद्रियों के विषय छोड़ो

ब्रह्म में ही चर्या ब्रह्मचर्य धर्म होता है।

निश्चय से तो निज को ही ध्याना एक धर्म है

लेकिन इस धर्म को सबको समझाना है।

धर्म को करने के लक्षण गिनाये हैं दश

      इसलिए इनको दश लक्षण धर्म माना है ।।3।।



4 comments:

  1. Bahut hi short and sattya bataya 👌👏👏🙏❤️

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  2. Bahut hi saral shabdon me das dharmo ka saar samjha Diya, bahut bahut anumodna, aise hi saral bhasha me aapki yeh sundar rachanayen sabhi jeevon ke atmakalyaan me nimit bane yahi Mangal Bhavna hai.
    Jai Jinendra 🙏

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