दीपावली का पर्व है महावीर निर्वाण का।
क्या करे इस पर्व पर क्या करे तैयारियां।।
याद करो भगवान को उनके परम उपदेश को।
उनकी तरह ही हम सभी निर्वाण सुख को प्राप्त हो।।
वर्षों पुरानी बात है घटना घटी इस देश में।
अहिंसा की बात आई महावीर संदेश में।।
तीस वर्षों से लगा था, समवशरण महावीर का।
दिव्यध्वनि में खिर रहा उपदेश आतम ध्यान का।।
आत्महित का ज्ञान का अहिंसा और ध्यान का।
तीस वर्षों तक खिरा उपदेश मोक्षमार्ग का।।
धन्य हुई कार्तिक तेरस जब अंतिम उपदेश हुआ।
भव्य जीवों के ह्रदय में नया परिवर्तन हुआ।।
चतुर्दशी को वीर का दर्शन मिला था अन्त में।
भाव निर्मल हो गए निज आत्म दिखा जिन रूप में।।
रूप चौदस कहाई वह कार्तिक चतुर्दशी।
अन्त में महावीर मूरत सभी के ह्रदय बसी।।
अमावस्या कार्तिक वह ब्रह्म मुहूर्त काल था।
वियोग था भगवान का या कहो कि निर्वाण था।।
देवगण आए तथा निर्वाण कल्याणक मना।
वियोग था भगवान का, वैराग्य ह्दय में जना।।
जैसे अंधेरे को मिटाने सूर्य जग में उदित हो।
अज्ञानता के नाश को भी ज्ञानसूर्य उदित हो।।
भगवान के जो मुख्य गणधर, महान गौतमस्वामी थे।
चार सम्यक्ज्ञान धारी वीरपथ पर वो चले।।
शुद्धात्मा के ध्यान में वे क्षपक श्रेणी चढ़ गए।
कर्मघाति नाश कर सर्वज्ञ भगवन बन गए।।
रुके नहीं भगवान का उपदेश हमें सिखा गए।
भगवान के वे शिष्य भी भगवान बनकर आ गए।।
महावीरनिर्वाण तथा गौतमस्वामी का केवलज्ञान।
हुई प्रसिद्ध अमावस कार्तिक, पर्व दीपावली महान।।
दीपक की आवलियां ही तो, दीपावली कहलाती है।
मिट्टी के नहीं ये ज्ञानरूप दीपक की बात सिखाती है।।
महावीर गौतम गणधर, सुधर्मा और जम्बूस्वामी।
क्रम-क्रम से जलता ज्ञानदीप हुई दीपावली सुखदानी।।
रुके ना उपदेश ये भगवान हमको सिखा गए।
धर्म का झंडा लेकर वे, धर्म का पथ दर्शा गए।
सुखी हुए वे स्वयं और हम सबको मार्ग दिखा गए।
केवली, श्रुतकेवली, मुनि दिगम्बर ज्ञानमार्ग दर्शा गए।।
भगवन्तों के उपदेशों को गांव-नगर में फैलाया।
धन्य हुए सब श्रावक जिनआगम जन-जन तक पहुंचाया।।
हम सब का भी फ़र्ज़ यही है कार्तिक मावस दिन आया।
मुझको भी अपना कर्तव्य स्मरण आज फिर से आया।।
जिनवाणी को सभी भव्यजन, सीखें और सिखलाएंगे ।
गांव-गांव में नगर-नगर में ज्ञानदीप जलाएंगे।।
खाने और खिलाने का पर्व ये होता नहीं।
मौज-मस्ती, खरीदारी का भी ये अवसर नहीं।।
ना खुशी का, ना ही गम का पर्व ये वैराग्य का।
वियोग है भगवान का पर मोक्ष भी कल्याण का।।
हम सभी को याद आती, आज उन महावीर की।
गौतमादी मुनि तथा, दिव्यध्वनि जिनवाणी की।।
नहीं रुके उपदेश अब हम भी इसे अपनाएंगे।
स्वयं पढ़ेगे जिनवाणी को, सभी तक पहुंचाएंगे।।
जिनप्रभू के दर्श और प्रक्षाल-पूजन से शुरू।
महावीर विधान कर निर्वाण हम मनाएंगे।
स्वाध्याय मन्दिर में यदि तीनों समय ही होवेगा।
जिनालय फिर समवशरण सा देखो कैसा शोभेगा।।
महावीर गौतम गणधर के जीवन पर चर्चा होगी।
हर आतम परमातम है, ये बात समझनी ही होगी।।
मारिची से महावीर का जीवन जो भी समझेगा।
अज्ञानी से ज्ञानी बन वह दीपावली मनाएगा।।
निबन्ध लेखन प्रतियगिता, नाटक इत्यादि होंगे।
तीन दिन ये दीपावली के उत्तम मंगलमय होंगे।।
छोटे-बड़े नियम, व्रत, उपवास की हो भावना।
अहिंसा का भाव और जिनधर्म की प्रभावना।।
दीपावली का पर्व इस तरह मनाना चाहिए।
हर तरफ ही ज्ञान दीपक जगमगाना चाहिए।।
दीपावली का पर्व इस तरह मनाना चाहिए।
हर तरफ ही ज्ञान दीपक जगमगाना चाहिए।।
Bahut hi shandar bataya hai aapne ki Dipavali kaise manaye .. Gyan rupi Deepak jagmagana chahiye ..👌👏👏🙏
ReplyDeleteManju Mumbai.
जी धन्यवाद 🙏
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