Tuesday, April 12, 2022

स्वयं का चिन्तन (मेरे विचार)

 

मेरे जीवन का आधार प्रेम है और उद्देश्य वीतरागता।

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में अपनी प्रशंसा खुद अपने सच्चे मन से करता हूं, कोई और मेरी प्रशंसा करे मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।

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झूठ बोलना सबको अच्छा लगता है, लेकिन सुनना कोई नहीं चाहता।

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मैने देखा है सबको दूसरों के ज्ञान की महिमा गाते हुए, पता नहीं अपने ज्ञान की महिमा क्यूं नहीं आती।

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मेरा सबसे अच्छा दोस्त मेरा अपना दिमाग है, सलाह में भले किसी की भी लेलूं, लेकिन अन्त में मानता अपने दिमाग की ही हूं।

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कितनी अजीब बात है न...वैराग्य के प्रसंग तो रोज आते है, पर वैराग्य नहीं आता!

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अगर मुझे लगता है कि में सही हूं, में जो कर रहा हूं वह सही है, तो मुझे किसी का डर नहीं है।

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कोई भी व्यक्ति सम्माननीय उसके उम्र या ज्ञान से नहीं होता, व्यक्ति सम्माननीय उसके व्यवहार और आचरण से होता है।

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कुछ लोग कहते है, जहां जैसा माहौल हो, चाहे सही हो या गलत वहां हमें माहौल के हिसाब से उसी में ढलना पड़ता है, ऐसे जीव उस नवजात शिशु के समान है, जिसके पास दिमाग तो है, पर वह उसका उपयोग नहीं कर पाता, सही गलत का निर्णय नहीं कर पाता।

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ज्ञानी जीव परिस्थितियों के हिसाब से खुद को नहीं बदलते बल्कि अपने हिसाब से परिस्थितियां बदल देते है।

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दूसरों कीमदद करने से जो खुशी मिलती है, वो खुशी मुझे सबसे ज्यादा पसंद है।

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कभी - कभी अपने आप को जानने के लिए हमें खुद को किसी दूसरे के नजरिए से देख लेना चाहिए।

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मुझे चाहे कितनी भी विपत्तियों का सामना क्यूं न करना पड़े, सच्चाई और अच्छाई का रास्ता कभी नहीं छोडूंगा।

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मुझसे मोहब्बत का दिखावा करने के बजाय दिल से नफ़रत करना , में सच्चे जज्बातों की बहुत कदर करता हूं।

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शरीर की खूबसूरती तो कर्म के आधीन है, में तो अपने परिणामों को खूबसूरत रखने की कोशिश करता हूं।

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जिन्दगी में बड़े से बड़ा कठिन से कठिन काम भी हमें आसान लगता है, अगर उसमें हमारी रुचि हो तो।

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मुझे नहीं लगता कि जैसे माहौल में जीव रहता है, वैसा ही बन जाता है, क्युकिं इसी संसार से एक मनुष्य गति से एक परिवार में रहकर भी जीव एक नरक और एक मोक्ष जाता है,,, जैसे ~ राम और लक्ष्मण

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में नहीं चाहता कि कोई मेरी प्रशंसा करे, में तो बस कोशिश करता हूं कि कोई मेरी बुराई न कर सके।

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अगर हम सच के साथ है, तो जितने तक हार नहीं मानेंगे।

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कभी-कभी एक पल में ही सारी जिन्दगी की खुशियां मिल जाती है, कभी-कभी सारी जिन्दगी में भी एक पल की खुशी नहीं मिलती।

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जरूरी नहीं कि हम कितना जियें,, जरूरी है, की हम जीवन के इन दिनों में कितना जिए।

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अंदाज कुछ अलग है, मेरे सोचने का , सबको मंजिल का शौक है, मुझे सही रास्तों का।

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ये दुनियां इसलिए बुरी नहीं कि यहां बुरे लोग ज्यादा है, बल्कि इसलिए बुरी है, क्यूंकि अच्छे लोग खामोश है।

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जो लोग दिखने में खूबसूरत होते है, या पैसे वाले होते है, उन्हें तो हर कोई सम्मान देता है, सब उन्हें प्यार देते है, मगर जो लोग गरीब और लाचार होते है, खूबसूरत नहीं होते, जिन्हें लोगो का प्यार नहीं मिल पाता, मुझे ऐसे लोगो को प्यार बांटना ऐसे लोगो का दिल से सम्मान करना बहुत पसंद है।

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क्षमा मांगना , sorry बोलना बहुत आसान है, लेकिन इसका प्रयोजन इसका अर्थ बहुत ही गहन है, अगर हम किसी से क्षमा मांगते है तो समझना कि हमने उस व्यक्ति से वादा (promise) किया है, कि मुझसे जो गलती हुई है, अब में जीवन में वह दोबारा नहीं दोहराऊंगा, में कोशिश करूंगा कि अब वह गलती मुझसे जीवन में फिर कभी नहीं होगी,,और ध्यान रहे,, अगर हमसे फिर वह गलती होती है, तो हम किसी से किया हुआ वादा तोड़ देते है।

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कोई भी हो जन्म दिवस को महोत्सव के रूप में मनाना गलत ही है, जिनवाणी मां ने जन्म मरण को संसार में सबसे बड़ा दुख का कारण बताया है, हम पूजन के अष्टक में सबसे पहले जन्म मरण के अंत की बात करते है। ऐसे में जन्म दिवस को उत्सव के रूप में बनाना खुद ही अपनी जिनवाणी मां की बातो का अनादर करना है,,, वास्तव जिनका भव अंतिम हो चरम शरीरी हो उनका ही मनाया जाता है। मेरा भी इस संसार में अंतिम भव आये इस भाव से मनाया जाता है।

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आज के समय में हर व्यक्ति दौलत के पीछे भागता है, पैसे की बात करता है,,, पर में आज भी अपने आदर्शों और अपने सिद्धांतों को ही ज्यादा महत्व देता हूं।

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में अमीर-गरीब, बड़े-छोटे कुछ नहीं समझता,, दुनियां में दो ही तरह के लोग होते है, एक सही करने वाले और दूसरे गलत करने वाले।।

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दूर से तो हर चीज अच्छी लगती है,, पास जाते ही हजार कमियां नजर आती है।

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अपना भविष्य जानने के लिए हमें किसी ज्योतिषि के पास जाने की जरूरत नहीं है,, बस अपने वर्तमान परिणामों को समझ लेना,,  क्यूंकि हमारे वर्तमान समय के परिणाम ही हमारा भविष्य निश्चित करते है।

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अमूल्य मनुष्य भव से ज्यादा लोगो को पढ़ाई-लिखाई की और सरकारी नोकरी की कीमत लगने लगी है। वो भी उस आने वाले कल के लिए जो किसी ने नहीं देखा।। पता नहीं कल हो ना हो।

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बड़े लोगो के लिए एक छोटी सी लाइन-

गुब्बारा जितना बड़ा होता है, उसमें उतनी ही ज्यादा हवा होती है।

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कुछ समय के लिए दिखावे की जिन्दगी से बाहर आकर देखो,,, जिन्दगी कितनी सरल है, पता चल जाएगा।

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अगर आप गलत को गलत नहीं देखते तो आप गलत है।

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सब कहते है, की जितना अच्छा बनोगे लोग उतना ही तुम्हारा इस्तेमाल करेंगे। पर मैं कहता हूं कि अच्छा बनना किसको है। हम तो पहले से ही अच्छे ही है। बस कोशिश करते है कि मुश्किलों के आगे घुटने टेककर बुरे न बन जाएं।

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पूरी दुनियां में अगर सबसे महत्वपूर्ण कोई चीज है, तो वो आपकी अपनी जिंदगी है। इसे अपने हिसाब से जिओ, अपनी खुशी के लिए जिओ। ना हमें किसी बात का ज्यादा सुख मनाना चाहिए ओर ना ज्यादा दुःख। क्यूंकि वह तो एक समय की उदय जनित पर्याय है और वह समय चला जाने वाला है।

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परीक्षा के सवालों के जवाब तो हर कोई देता है, बुद्धिमान वो है जो जिन्दगी के सवालों के जवाब दे।

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कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि लोगों की बात सुनकर ६ माह Reet, Ctet, या  कोई भी सरकारी नौकरी की तैयारी के बजाय अगर अमृतचंद्राचार्य देव की ओर पण्डित बनारसीदासजी की बात मानकर ६ माह शुद्धोपयोग की तैयारी करे, मोक्षमार्ग की तैयारी करें, तो हो सकता है, ६०८ की किसी श्रृंखला में मेरा भी नाम हो।

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आत्म कल्याण के लिए ध्रुव फण्ड नहीं ध्रुव दृष्टि चाहिए।

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सबको लगता है बच्चे मोबाइल के कारण माता-पिता से दूर हो रहे है,,, बल्कि सच तो ये है कि माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है, वो बच्चों से विद्यालय की किताब के अलावा कोई और बात करना पसंद है नहीं करते ,, अच्छे-बुरे के बारे में  सही-गलत के बारे में ना तो खुद समझना चाहते है ना बच्चों को समझाना चाहते है,,, और इस कारण से बच्चे फिर जब अकेला महसूस करते है तो मोबाइल का सहारा लेते है जो ज्ञान का और मनोरंजन का भंडार है,,,जब कोई घर में बच्चों से प्यार से बात नहीं करता तब वह बच्चा फिर फेसबुक पर प्यार खोजने लगता है,,, लेकिन हम जो दिखता है बस वही बोल देते है वहीं सच मान लेते है उसके पीछे के कारण पर विचार ही नहीं करते।

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अपने कुछ दोषों को याद करके रोता रहा में जिन्दगी भर ,, गुण कितने है मेरे अंदर इस पर ध्यान ही नहीं गया। 

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धन के पीछे नहीं, धर्म के पीछे दौड़ो, क्यूंकि धन तो पुण्योदय से धर्मी के पीछे-पीछे ही भागता है।

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जरूरत से ज्यादा पैसा कमाना पाप और जरूरत से कम पैसा कमाना पाप का उदय है।

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गुरु हो या स्वयं भगवान धर्म का केवल उपदेश दिया जा सकता है आदेश नहीं। निर्णय हमें स्वयं लेना होता है अपनी बुद्धि से।

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प्रतिसमय बहुत दु:ख देते आए है अनादिकाल से मुझे ये परद्रव्य ओर परभाव, फिर भी आज तक स्वद्रव्य और स्वभाव की महिमा नहीं आई।

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आज बहुत से शादी शुदा लोग कहते है, शादी मत करो उसमें दुःख ही दुःख है, किन्तु तब तक वह दुःख नहीं लगता, जब तक स्वयं शादी करते है तब स्वयं ही उस वैवाहिक जीवन के दु:ख को भोगते है। बहुत से प्रेमी समझाते है, कि प्रेम के चक्कर में कभी मत पड़ना उसमे दुःख ही दुःख है। किन्तु तब तक वह दुःख नहीं लगता, जब तक स्वयं प्रेम के चक्कर में पड़ते  है तब स्वयं ही उस उस प्रेम मय जीवन के दु:ख को भोगते है।

ऐसे ही वीतराग-सर्वज्ञ परमात्मा , दिगम्बर आचार्यदेव बार-बार समझाते है कि जिस सुख की तलाश में आप अनादिकाल से भटक रहे हो, वह तुम्हारे ही अंदर है, वह सुख स्वयं तुम ही हो। किन्तु हमे वह आत्मा का अतीन्द्रिय सुख समझ ही नहीं आता। किन्तु जो ज्ञानी जन स्वयं उस आत्मा के सुख का अनुभव करते है तब ही उन्हें आनन्द आता है। अर्थात् जब तक स्वयं उस कार्य को ना करे तब तक ना दुःख का अनुभव होता है ना सुख का। जब तक जीव अपनी भूल को स्वीकार नहीं करेगा तब तक वह उससे मुक्त कैसे हो सकता है।

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हमारे वर्तमान जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक अच्छी-बुरी घटना के पीछे हमारे ही भूतकाल के अच्छे-बुरे परिणाम है और हमारे भविष्य में घटने वाली प्रत्येक अच्छी-बुरी घटना के पीछे हमारे ही वर्तमान समय के अच्छे-बुरे परिणाम होंगे। 

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जब तक हम अपनी या किसी और कि नजर से अपने आप को, भगवान को या दुनियां को समझने का प्रयास करेंगे तब तक कभी ठीक से समझ नहीं पायेंगे, किन्तु हम अपनी या किसी और की सोच से परे जैसे वो है वैसा ही समझने का प्रयास करे सोच को छोड़ कर वास्तविकता को समझे तो हर प्रश्न का समाधान मिल जाएगा।

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हम अपने जीवन में सबको कभी प्रसन्न नहीं रख सकते चाहे कितना भी प्रयास कर लें, किन्तु जीवन में सदैव स्वयं को प्रसन्न रख सकते है अगर अपने मन की बात सुने समझे और अपने निर्णय पर अटल विश्वास रख सके।

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किसी से प्यार करना है तो बिल्कुल करो, लेकिन किसी को अपनी आदत या जरूरत मत बनाओ। क्यूंकि प्यार से खुशी मिलती है, और हमारी आदतें और और जरूरतें हमें हमेशा दुःख देते है।

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जब तक हम परिस्थितियों से लड़ने की कोशिश करेंगे, तब तक हमेशा दुःखी रहेंगे,, आप वर्तमान में जैसे हो जिस परिस्थिति में हो अगर आपने उस परिस्थिति को ही अपना मित्र बना लिया और उसके साथ जीना सीख गए तो आपको हर परिस्थिति में जीवन जीने का आनंद आने लगेगा। 

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बहुत स्वाध्याय करने के बाद भी यदि आपको दिन-रात सांसारिक जीवन की चिंता है ,,, तो समझना कि सिर्फ ग्रन्थों को किताबे समझकर पढ़ा है, उन्हें समझा नहीं है, स्वीकारा नहीं है।

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पढ़ाई , नौकरी, पैसा कमाना, नाम कमाना, इज्जत कमाना ये सब बकवास है जिन्दगी जीने के सिर्फ 2 ही तरीके है या तो अध्यात्म या प्रेम। इन 2 तरीकों के अलावा अगर कोई तरीका अपनाया तो आज नहीं तो कल आपको परिवार के ही द्वारा दुःखी होना पड़ेगा।

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मैदान छोड़कर भागना हमारे खून में नहीं, कोशिश करता रहूंगा जब तक मंजिल ना मिले।

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पुरुषार्थ करना निश्चित ही आवश्यक है, किन्तु सही दिशा में।

यदि दिशा गलत है तो आपकी मेहनत आपका पुरुषार्थ व्यर्थ है।। 

इसलिए पहले शांतचित्त होकर सही दिशा का चयन करो फिर नि:शंक होकर पुरुषार्थ करो।।

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वास्तव में देखा जाए तो जीवन में कुछ भी पाना असाध्य नहीं है, किन्तु जिस वस्तु को पाने से कोई लाभ ही ना हो उसे पाने में व्यर्थ परिश्रम ही क्यूं करना, मुझे तो परिश्रम उस वस्तु को पाने में करना है जिसे पाने के बाद किसी और वस्तु को पाने की चाह ही ना रहे।।

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सबको मंजिल का शोक है, मुझे सही रास्तो का, क्योंकि मंजिल सबकी एक है, सुखी होना, बस रास्ते सबसे अलग है! इसलिए शांति से सही~गलत का पहले खूब बार-बार परीक्षा करके विचार करें और जब निर्णय पक्का हो जाए कि यह सही हैं तब निशंक होकर उस मार्ग पर चलो!

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वो एक पल जो निर्विकल्प होगा। मेरे लिए सबसे अद्भुत होगा।।

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*दृढ़ निश्चय*

आज नहीं तो कल बनेंगे। भक्त नहीं भगवान बनेंगे।।

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किसी अन्य की अनन्त कमियां अनन्त गलतियां, अनन्त दोष, अनन्त अपराध हमारा थोड़ा भी नुकसान नहीं कर सकते किन्तु हमारी एक कमी, एक गलती, एक दोष, एक अपराध हमारा अनन्त नुकसान कर सकते है। 

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इस संसार में कदम कदम पर खतरे है, या तो उन खतरों से लड़ना सीख जाओ या बचना सीख जाओ।

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में किसी की झूठी प्रशंसा नहीं करता और ना ही किसी की अधिक इज्जत, काम वही करता हूँ जो आवश्यक होता है और उतना ही करता हूं जितना आवश्यक होता है।।

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बात ये नहीं है कि हम भगवान को कितना मानते है, कितना पूजते है, बात ये है कि हम भगवान की बात को कितना मानते है भगवान की कहीं बात के अनुसार हमारा कितना आचरण है।

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Respect खुद की जहां नहीं, उस जगह कभी रुकना नहीं।

 है रास्ते बहुत यहां चलना वहीं जो सही लगे। 

सीखा यही जीवन में मैने करना वही जो सही लगे।

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में अपनी जरूरतों की पूर्ति करने के लिए नहीं बल्कि सच्चे लोगो का सच्चा प्यार पाने के लिए मेहनत करता हूं।

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गलत वाक्य~ अगर इंसान में कुछ करने की इच्छा हो तो कुछ भी असंभव नहीं।

सही वाक्य~ अगर कोई कार्य सम्भव है, तो उसे कोई भी कर सकता है,,, किन्तु अगर कोई कार्य असंभव है,, तो इन्द्र नरेंद्र ओर जिनेन्द्र भी उसे सम्भव नहीं कर सकते।

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अपने कुछ दोषों को याद के रोता रहा में जिन्दगी भर ,, गुण कितने है मेरे अंदर इस पर ध्यान ही नहीं गया।

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जरूरत से ज्यादा पैसा कमाना पाप और जरूरत से कम पैसा कमाना पाप का उदय है।

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अगर स्वार्थ के लिए गलत चीजों को बढ़ावा दिया जाए तो पाप,पुण्य और धर्म में कोई अन्तर नहीं रह जाता।

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जब किसी कार्य के लिए अच्छे और सही रास्ते कठिन लगने लगते है। तो उन्हें पूरा करने की सोच से बुराइयों को बढ़ावा दिया जाता है। जो कदाचित सही भी लगता है , किन्तु सही लगना ओर सही होना उसमें अन्तर होता है।

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एक बात हमेशा ध्यान रखना चाहिए, किताबों से ज्ञान नहीं मिलता। ज्ञान हमारे अंदर है,, अपने अंदर झांक कर देखो और अपने ज्ञान से सही गलत का निर्णय करना सीखो।

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किसी बुराई को किसी भी कारण से अच्छा मानना मूर्खता ही है।

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चक्रवर्ती का  वैभव तथा मोक्ष सुख का आधार वास्तव में सच्चा धर्म है।

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जब व्यक्ति अहंकार, तृष्णा और ईर्ष्या से बुरी तरह घायल हो तब उसे ज्ञान और प्रेम की बातें समझ ही नहीं आती अपितु बकवास लगती है।।

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परिवार की सारी बातें एक दूसरे को पता होना आवश्यक है। बातें छुपाना, झूठ बोलना, और अत्यधिक क्रोध इन कारणों से ही हमारे अपने ही हमारे दुश्मन बन जाते है।

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व्यक्ति महान पैसे और नाम से नहीं बल्कि एक सच्चे ह्रदय से बनता है।

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अपने लिए कम और दूसरों के लिए ज्यादा सोचना यह सच्चा लोकव्यवहार है और दूसरों के लिए कम स्वयं के लिए अधिक सोचना यह सच्चा मोक्षमार्ग है और जो व्यक्ति अपने ज्ञान का सही प्रयोग करके दोनों मार्ग में खरा उतरता है वहीं अपना जीवन सफल बनाता है।

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इतना तो चलता है , यही एक भाव हमें मोक्षमार्ग से , सच्चे धर्म से दूर ले जाता है।

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सुख चाहने वाले को अथवा सुख के लिए अनेक तरह के प्रयत्न करने वालों को कभी सुख प्राप्त नहीं होता, सुख प्राप्त होता है सुख को जानने से, सुख के सही स्वरूप को जानने से, वास्तव में सच्चा सुख क्या है इसकी सही पहचान से और यही आवश्यक है।

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बहुत सारे लोगों का, मोटिवेशनल स्पीकर इत्यादि का चींटी का उदाहरण देकर कहना है कि आप मेहनत करो सफलता जरूर मिलेगी, कोशिश करने वाले की हार नहीं होती, 1 बार नहीं तो 100 बार और 100 बार नहीं तो 1000 बार प्रयास करो सफलता जरूर मिलेगी। किन्तु वास्तव में देखा जाए तो ये गलत सोच है, ये अज्ञानता है, गधे वाली सोच है, समझदार पुरुष कभी ऐसा नहीं सोचता। 

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जरा विचार करो कितनी बार दिल्ली के रास्ते पर जाओ की मुंबई पहुंच जाओ, 1 बार, 100 बार या हजार बार, तो समझदार व्यक्ति कहेगा की बेटा तेरा रास्ता गलत है मुंबई जाना है तो मुंबई के रास्ते पर चल एक ही प्रयास में पहुंच जाएगा, दिल्ली के रास्ते पर हजार बार जाएगा तो भी दिल्ली पहुंचेगा मुंबई नहीं। अर्थात् मंजिल के बारे में सोचने से पहले रास्ते कि पूरी जानकारी होना आवश्यक है,

यदि आप एक बार किसी कार्य में असफल होते है तो बार-बार वही कार्य करोगे तो असफल ही रहोगे, तो क्या करें??

कि शांति से बैठकर विचार करो, भागो मत, सोचो गलती कहा हो रही है, मार्ग सही होगा तो मंजिल एक बार में ही मिल जाएगी, मार्ग ही गलत होगा तो बार-बार प्रयास का कोई लाभ नहीं होगा।

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अरे पैसा कमाना तो हमारी जरुरते हमें सीखा ही देती है, सीखना है तो उसे खर्च करना सीखो कि कहां कितना और कैसे खर्च करना है।

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मेरी समस्या भी मैं हूं और समाधान भी मैं ही हूं।

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संसार में अज्ञानी जन जन्मदिवस को उत्सव के रूप में मनाते है उसे हर्ष का विषय समझते है तथा किसी की मृत्यु पर रोते-बिलखते है उसे शोक का विषय समझते है, किन्तु वास्तव में न तो जन्मदिवस हर्ष का विषय है और न ही मृत्युदिवस शोक का विषय अपितु ये दोनों दिवस तो समताभाव के विषय है। ज्ञानीजन जन्म और मृत्यु में हर्ष और शोक नहीं मानते अपितु समता भाव धारण करते है।

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जरूरत से ज्यादा ज्ञान व्यक्ति को मौन की और ले जाता है।

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समस्त संसार मुझे अपनी नजरों से गिरा दे मुझे फर्क नहीं पड़ता, बस कोई ऐसा काम नहीं करना कि स्वयं की नजरों में गिर जाऊं।

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महत्वपूर्ण ये नहीं की आप कितने मेहनती है, कितने घंटे काम करते है, महत्वपूर्ण यह की आपने काम कौन सा चुना है, आप कितना नेक काम करते है। आप कितना महान काम करते है।

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बात किसी के सम्मान अथवा अपमान की नहीं है, किन्तु कोई भी हो, यदि गलत कार्य करने को कहे तो हमें 'ना' कहना तो आना ही चाहिए।

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नाम के लिए काम करना कोई अच्छी बात नहीं है किन्तु आपका काम ऐसा हो कि जिससे स्वयमेव नाम हो वह एक विशेष बात है।

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नाम के लिए कि, दिखने में अच्छा लगेगा, ऐसा करने से लोगों को ज्यादा पसंद आयेगा, आकर्षक लगेगा ऐसा सोचकर मात्र नाम के लिए, मात्र दिखावे के लिए कभी कोई काम नहीं करना चाहिए, किन्तु हमारे निर्मल भाव से, नि:स्वार्थ भाव से किए गए काम के द्वारा यदि स्वयमेव नाम हो जाए तो वो एक विशेष बात है।

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काम वो करो जो सबसे अधिक आवश्यक है, और उतना ही करो जितना आवश्यक है।

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आज किसी ने कहा मुझसे कि अपने अज्ञान के कारण आज धर्म का स्वरूप बिगाड़ कर रख दिया है लोगों ने।

मैने कहा कि ये कोई नई बात नहीं है, बस ध्यान रहे की हमारी श्रद्धा नहीं बिगड़नी चाहिए।

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भूतकाल की यादें और भविष्य की चिंताएं ही हमारे वर्तमान दुःख का मूल कारण है, इन यादों और चिंताओं को यदि गौण करना सीखना गए तो वर्तमान का आनन्द ही कुछ और होगा।

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4 comments:

  1. Bahut hi sundar suvichar hai aapke 👌👏
    Mere jeevan ka aadhar prem hai or uddeshy veetragta 👌👏👏🙏
    Manju jain Mumbai 😊

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 मेरी मम्मा मैंने दुनिया की सबसे बड़ी हस्ती  देखी है। अपनी मां के रूप में एक अद्भुत शक्ति देखी है।। यूं तो कठिनाइयां बहुत थी उनके जीवन में। ...