नोट:- 1. अधिकतर पूजन विधान में जिन छंदों का प्रयोग किया जाता है और उसमें सामान्यत: सभी साधर्मी जिन भजनों को गा सकते है वो इसमें लेने का प्रयास किया गया है, ताकि आपको बार-बार अपनी डायरी या भजन की किताब में भजन खोजना नहीं पड़ेगा। और छंद की लय के अनुसार भजन के साथ आप भक्ति पूर्वक पूजन-विधान सम्पन्न कर पायेंगे।
2. यदि किसी भजन को गाना नहीं आ रहा है, उस भजन की लय की जानकारी नहीं है तो यूट्यूब पर उस भजन का प्रारंभिक पद सर्च करें आपको भजन मिल जायेगा आप लय सुन सकते है।
3. इसके अलावा विधान कराते समय दिए गए छंदों के अलावा भी कोई नया छंद आपके सामने आ जाता है जिसकी लय आपको नहीं पता तो आप 8302047216 पर उस छंद का एक काव्य का विधान की पुस्तक से फोटो व्हाट्सएप करें आपको उचित लय वॉइस मैसेज में प्राप्त हो इसकी पूरी कोशिश मैं करूंगा।
छंद - दोहा
कितना प्यारा तेरा ये द्वारा, यही गुजाऊँ जीवन सारा।
तेरे दरश की लगन से, हमें आना पड़ेगा इस दर दुबारा- २॥ टेक॥
शान्त छवि मूरत तेरी महिमा अपरम्पार,
मैं अज्ञानी क्या गा सकें गाता है संसार।
भव-भव के बंधन कट जायें पापी भी यदि ध्यान लगायें ।
अंजन को भी तारा… ॥१॥
भूतकाल प्रभु आपका वह मेरा वर्तमान,
वर्तमान जो आपका वह भविष्य मम जान।
नित प्रतिदिन हम मन्दिर आयें, मोक्षमार्ग में हम लग जाएँ।
भव्यों को भी तारा…॥२॥
तुमको पूजें सुरपति, अहपति, नरपति देव,
धन्य भाग्य मेरो भयो, करन लग्यो तुम सेव।
प्रभु चरणों में ध्यान लगावें, आतमरंग में ही रंग जावें ॥
फिर तन मिले न दुवारा… ॥३॥
***
रोम-रोम से निकले प्रभुवर नाम तुम्हारा, हाँ! नाम तुम्हारा |
ऐसी भक्ति करूँ प्रभुजी, पाऊं न जनम दुबारा ||टेक||
जिनमंदिर में आया, जिनवर दर्शन पाया |
अन्तर्मुख मुद्रा को देखा, आतम दर्शन पाया |
जनम-जनम तक न भूलूँँगा, यह उपकार तुम्हारा ||(1)
अरहंतों को जाना, आतम को पहिचाना |
द्रव्य और गुण पर्यायों से, जिन सम निज को माना |
भेदज्ञान ही महामंत्र है, मोह तिमिर क्षयकारा ||(2)
***
मीठे रस से भरी जिनवाणी लागे, जिनवाणी लागे |
म्हने आत्मा की बात घणी प्यारी लागे |
आत्मा है उजरो उजरो, तन लागे म्हने कालो |
शुद्ध आत्म की बात, अपने मन में बसा लो |
म्हने चेतना की बात, घणी प्यारी लागे, मनहारी लागे |
म्हने आत्मा की बात घणी प्यारी लागे ||(1)
देह अचेतन, मैं हूँ चेतन, जिनवाणी बतलाये |
जिनवाणी है सच्ची माता, सच्चा मार्ग दिखाए |
अरे मान ले तू चेतन – २, भैया कई लागे, थारो काई लागे |
म्हने आत्मा की बात घणी प्यारी लागे ||(2)
***
म्हारा परम दिगम्बर मुनिवर आया, सब मिल दर्शन कर लो,
हाँ, सब मिल दर्शन कर लो।
बार-बार आना मुश्किल है, भाव भक्ति उर भर लो,
हाँ, भाव भक्ति उर भर लो ।।टेक।।
हाथ कमंडलु काठ को, पीछी पंख मयूर ।
विषय-वास आरम्भ सब, परिग्रह से हैं दूर ।।
श्री वीतराग-विज्ञानी का कोई, ज्ञान हिया विच धर लो, हाँ।।१।।
एक बार कर पात्र में, अन्तराय अघ टाल ।
अल्प-अशन लें हो खड़े, नीरस-सरस सम्हाल।।
ऐसे मुनि महाव्रत धारी, तिनके चरण पकड़ लो, हाँ ।।२।।
***
चेतन है तू, ध्रुव ज्ञायक है तू।
अनन्त शक्ति का धारक है तू ॥
सिद्धों का लघुनन्दन कहा, मुक्तिपुरी का नायक है तू।
चार कषायें, दुःख से भरी, तू इनसे दूर रहे,
पापों में, जावे न मन, दृष्टि निज में ही रहे।
चलो चलें अब मुक्ति की ओर,
पञ्चम गति के लायक है तू ॥ चेतन है तू…
श्री जिनवर से राह मिली, उस पर सदा चलना,
माँ जिनवाणी शरण सदा, बात हृदय रखना।
मुनिराजों संग केलि करे-2,
मुक्ति वधु का नायक है तू॥चेतन है तू…
***
छोटे-छोटे मुनिवर, हो गये निहाल।
निज परिणति का, देखो तो कमाल।।
आठ वर्ष में ही दीक्षा धार।
नवें वर्ष पाया ज्ञान तत्काल।। निज परिणति…।।१।।
पंच महाव्रत धारे अणुव्रत धार।
संयम के रथ पर हो गये सवार।।
सम्यक्त्वाचरण पाया आ गया स्वकाल। निज परिणति… ।।२।।
चार घातिया विनाश हुये सर्वज्ञ।
अपने में रहकर हुए आत्मज्ञ।।
अघातिया विनाश बने त्रिभुवन भाल। निज परिणति… ।।३।।
***
सिद्धों की श्रेणी में आने वाला जिनका नाम है।
जग के उन सब मुनिराजों को मेरा नम्र प्रणाम है ।।टेक।।
मोक्षमार्ग पर अंतिम क्षण तक, चलना जिनको इष्ट है।
जिन्हें न च्युत कर सकता पथ से, कोई विघ्न अनिष्ट है।।
दृढ़ता जिनकी है अगाध, और जिनका शौर्य अदम्य है।
साहस जिनका है अबाध, और जिनका धैर्य अगम्य है।।
जिनकी है निस्वार्थ साधना, जिनका तप निष्काम है ।।जग के उन सब…1।।
मन में किन्चित हर्ष न लाते, सुन अपना गुणगान जो।
और न अपनी निंदा सुनकर, करते हैं मुख म्लान जो।।
जिन्हें प्रतीत एक सी होती, स्तुतियाँ और गालियाँ।
सिर पर गिरती सुमनावलियाँ, चलती हुई दुनालियाँ।।
दोनों समय शांति में रहना, जिनका शुभ परिणाम है ।।जग के उन सब…।।2।।
***
जिनवर तू है चंदा तो मैं हूँ चकोर ।
दर्शन तेरे पाकर मेरा झूम उठा मन मोर ॥टेक॥
अष्ठ कर्म को तूने मार भगाया,
अज्ञानियों को तूने, ज्ञान सिखाया,
कर्मों का तेरे आगे, चले ना कोई जोर,
दर्शन तेरे पाकर मेरा झूम उठा मन मोर ॥१ जिन..॥
नैया खिवैया तू है, लाज बचैया,
किनारे लगादे मेरी भटकी है नैया,
मांझी तू है मेरा, सम्भालो मेरी डोर,
दर्शन तेरे पाकर, मेरा झूम उठा मन मोर ॥२ जिन..॥
***
छंद - सोरठा
लिया प्रभू अवतार जयजयकार जयजयकार जयजयकार,
त्रिशला नंद कुमार जयजयकार जयजयकार जयजयकार ॥
आज खुशी है आज खुशी है, तुम्हें खुशी है हमें खुशी है।
खुशियां अपरम्पार ॥ जयजयकार…॥
पुष्प और रत्नों की वर्षा,सुरपति करते हर्षा हर्षा |
बजा दुंदुभि सार ॥ जयजयकार… ॥
उमग उमग नरनारी आते,नृत्य भजन संगीत सुनाते।
इंद्र शची ले लार ॥ जयजयकार… ॥
***
चेतन है तू, ध्रुव ज्ञायक है तू।
अनन्त शक्ति का धारक है तू ॥
सिद्धों का लघुनन्दन कहा, मुक्तिपुरी का नायक है तू।
चार कषायें, दुःख से भरी, तू इनसे दूर रहे,
पापों में, जावे न मन, दृष्टि निज में ही रहे।
चलो चलें अब मुक्ति की ओर,
पञ्चम गति के लायक है तू ॥ चेतन है तू…
श्री जिनवर से राह मिली, उस पर सदा चलना,
माँ जिनवाणी शरण सदा, बात हृदय रखना।
मुनिराजों संग केलि करे-2,
मुक्ति वधु का नायक है तू॥चेतन है तू…
***
छंद - वीरछंद, ताटंक, बेसरी, चौपाई, मरहठा माधवी
जिनवर दरबार तुम्हारा, स्वर्गों से ज्यादा प्यारा।
जिन वीतराग मुद्रा से, परिणामों में उजियारा।।
ऐसा तो हमारा भगवन है, चरणों में समर्पित जीवन है ।।टेक।।
समवशरण के अंदर, स्वर्ण कमल पर आसन,
चार चतुष्टयधारी, बैठे हो पद्मासन;
परिणामों में निर्मलता, तुमको लखने से आये,
फिर वीतरागता बढ़ती, जो भी जिन दर्शन पायें,
ऐसे तो… ।।1।।
त्रैलोक्य झलकता भगवन, कैवल्य कला में ऐसे,
तीनों ही कालों में, कब क्या होगा और कैसे;
जग के सारे ज्ञेयों को, तुम एक समय में जानो,
निज में ही तन्मय रहते, उनको न अपना मानो,
ऐसे तो… ।।2।।
***
आया कहाँ से, कहाँ है जाना,
ढूंढ ले ठिकाना चेतन ढूंढ ले ठिकाना ।
इक दिन चेतन गोरा तन यह, मिट्टी में मिल जाएगा ।
कुटुम्ब कबीला पडा रहेगा, कोई बचा ना पायेगा ।
नहीं चलेगा कोई बहाना…॥ ढूंढ ले ठिकाना…।१।
बाहर सुख को खोज रहा है, बनता क्यों दीवाना रे ।
आतम ही सुख खान है प्यारे, इसको भूल ना जाना रे।
सारे सुखों का ये है खजाना…॥ ढूंढ ले ठिकाना… ।२।
***
शुद्धात्मा का श्रद्धान होगा, निज आतमा तब भगवान होगा।
निज में निज पर में पर भासक, सम्यग्ज्ञान होगा ।।
जिनदर्शन कर निजदर्शन पा, सम्यग्दर्शन होगा।।टेक।।
नव तत्वों में छिपी हुई जो, ज्योति उसे प्रगटाएँगे।
पर्यायों से पार त्रिकाली, ध्रुव को लक्ष्य बनाएंगे।
शुद्ध चिदानंद रसपान होगा, निज आत्मा तब भगवान होगा ।।(1)
निज चैतन्य महा हिमगिरि से, परिणति घन टकराएँगे,
शुद्ध अतीन्द्रिय आनंद रसमय, अमृत जल बरसायेंगे।
मोह महामल प्रक्षाल होगा, निज आत्मा तब भगवान होगा ।।(2)
***
प्रभु जी, अब न भटकेंगे संसार में।
अब अपनी… हो ऽऽऽ अब अपनी खबर हमें हो गई ।।टेक।।
भूल रहे थे निज वैभव को, पर को अपना माना ।
विष-सम पंचेंद्रिय विषयों में ही सुख हमने जाना ।
पर से भिन्न लखूँँ निज चेतन, मुक्ति निश्चित होगी ।।(1)
महा पुण्य से हे जिनवर अब तेरा दर्शन पाया ।
शुद्ध अतीन्द्रिय आनंदरस, पीने को चित ललचाया ।
निर्विकल्प निज अनुभूति से, मुक्ति निश्चित होगी ।।(2)
***
पंच परम परमेष्ठी भगवन्, हो… जिसके है रखवाले।
ऐसा धर्म है मेरा हो…
कुन्दकुन्द योगीन्दु देव हैं, जिसके पालन हारे।।ऐसा… ।।टेक।।
अणु-अणु की स्वतंत्रता, धर्म मेरा बतलाए।
पराधीन किञ्चित् भी, नहिं सर्वद्रव्य पर्यायें।।
जड़ और चेतन सारे, अपने में ही परिणमते।
अब तन की भी पराधीनता, न मेरे में आए।।
तो सुन लो! निर्विकल्प निर्भेद निराकुल, निज स्वरूप दर्शाए।।
ऐसा धर्म है मेरा।।१।।
अष्टापद चम्पापुर पावापुर और गिरनारी।
ऊँचे-ऊँचे शिखरों पर सम्मेद शिखर मनहारी।।
तीर्थंकरों की मुक्ति ने कण-कण पावन कर डाला।
सोनगढ़ से फैला जग में भेदज्ञान का उजाला।।
तो सुन लो! इन तीर्थों पर आकर मानो, सिद्धों से मिल जाए।।
ऐसा धर्म है मेरा।।२।।
***
तिहारे ध्यान की मूरत, अजब छवि को दिखाती है।
विषय की वासना तज कर, निजातम लौ लगाती है ॥
तेरे दर्शन से हे स्वामी! लखा है रूप मैं तेरा ।
तजूं कब राग तन-धन का, ये सब मेरे विजाती हैं ॥(1)
जगत के देव सब देखे, कोई रागी कोई द्वेषी ।
किसी के हाथ आयुध है, किसी को नार भाती है ॥(2)
***
जिनवाणी जग मैया, जनम दुख मेट दो |
जनम दुख मेट दो, मरण दुख मेट दो ॥
बहुत दिनों से भटक रहा हूं, ज्ञान बिना हे मैया
निर्मल ज्ञान प्रदान सु कर दो, तू ही सच्ची मैया ॥(1)
गुणस्थानों का अनुभव हमको, हो जावे जगमैय्या
चढ़ें उन्हीं पर क्रम से फ़िर, हम होवें कर्म खिपैया ॥(2)
***
रोम-रोम पुलकित हो जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय।
ज्ञानानन्द कलियाँ खिल जाँय, जब जिनवर के दर्शन पाय ।।टेक।।
जिनमन्दिर में श्री जिनराज, तनमन्दिर में चेतनराज।
तन-चेतन को भिन्न-पिछान, जीवन सफल हुआ है आज ॥
वीतराग सर्वज्ञ देव प्रभु, आये हम तेरे दरबार।
तेरे दर्शन से निज दर्शन, पाकर होवें भव से पार।
मोह-महातम तुरत विलाय, जब जिनवर के दर्शन पाय॥(1)
लोकोलोक झलकते जिसमें, ऐसा प्रभु का केवलज्ञान।
लीन रहें निज शुद्धातम में, प्रतिक्षण हो आनन्द महान ॥
ज्ञायक पर दृष्टी जम जाय, जब जिनवर के दर्शन पाय॥(2)
***
छंद - गीतिका, हरिगीतिका
साधना के रास्ते, आत्मा के वास्ते चल रे राही चल।
मुक्ति की मंजिल मिले, शान्ति की सरसिज खिले।।
चल रे राही चल।।टेक।।
कौन है अपना यहाँ, किसको पराया हम कहें।
एक की आखों में खुशियां, एक के आँसू बहैं।।।
आत्म के मंदिर चले, ज्योति से ज्योति जले।
चल रे राही चल।।१।।
ज्ञान ही अज्ञान था, तो भटकते ये हर जनम।
छल कपट माया दुराचार, कर रहे थे हर कदम।।
बात हो कल्याण की, हो शरण भगवान की
चल रे राही चल।।२।।
***
जिस देश में, जिस वेश में, जिस हाल में रहो।
ज्ञायक रहो, ज्ञायक रहो, बस ज्ञायक ही रहो।।
***
छंद - मानव
तू जाग रे चेतन प्राणी, कर आतम की अगवानी।
जो आतम को लखते हैं, उनकी है अमर कहानी ।।
है ज्ञान मात्र निज ज्ञायक, जिसमें हैं ज्ञेय झलकते,
यह झलकन भी ज्ञायक है, इसमें नहिं ज्ञेय महकते।
मैं दर्शन ज्ञान स्वरूपी, मेरी चैतन्य निशानी, जो आतम... ॥(1)
अब समकित सावन आया, चिन्मय आनन्द बरसता,
भीगा है कण-कण मेरा, हो गई अखण्ड सरसता।
समकित की मधु चितवन में, झलकी है मुक्ति निशानी॥(2)
ये शाश्वत भव्य जिनालय, है शान्ति बरसती इनमें,
मानो आया सिद्धालय, मेरी बस्ती हो इसमें ॥
मैं हूँ शिवपुर का वासी, भव-भव की खतम कहानी॥(3)
***
तुझे बेटा कहूँ कि वीरा, तू तो है जाननहारा।
मेरा वीर बनेगा बेटा, महावीर बनेगा बेटा।।टेक।।
तू गुणों के पलने में झूले, विषयों से दूर ही रहना,
नहीं गंध कषायों की भी, तेरे सहज स्वरूप में बेटा।
तू अरस अरूपी भगवन, भगवन् ही बनकर रहना।।
मेरा वीर बनेगा…।।१।।
ये पंच परम परमेष्ठी है सदा पिताजी तेरे,
हम तो झूठे स्वारथ के संयोगी साथी हैं सारे।
तु नितप्रति उनको ध्याना, ज्ञायक नित सांझ सवेरे।।
मेरा वीर बनेगा…।।२।।
***
ना कोई मोह का रंग, ना कोई द्वेष तरंग।
ना कोई है विकार, तुम तो मेरे जिनवर हो। तुम्ही तो मेरे जिनवर हो।
दर्शन के भाव जगे, पूजन के भाव जगे।
भक्ति के भाव जगे, तुम तो मेरे प्रभुवर हो।
दर्शन से प्रभुवर तेरे, मैं पाऊं आतम ज्ञान।
पाकर तुझसा रूप मैं, बस जाऊं निज के धाम।।
जाऊं ना, निज से दूर, फिर कही एकबार....ना कोई मोह का रंग...
ये शाश्वत भव्य जिनालय, है शान्ति बरसती इसमें।
मानो आया सिद्धालय, मेरी बस्ती हो उसमें।
पूजा से, प्रभु तेरी, हो जाऊं भव से पार...ना कोई मोह का रंग...
***
छंद - रोला
जिनमंदिर-जिनमंदिर आना सभी-२…
घर छोड़ कर, मोह छोड़कर।
जिनमंदिर मेरे भाई रोज है आना,
इसे याद रखना कहीं भूल ना जाना।। जिन…१।।
चार कषायें तुमने पालीं पाप किया,
नर भव अपना यूं ही तो बरबाद किया।
जैनी होकर जिनमंदिर को छोड़ दिया,
दुनियां के कामों में समय गुजार दिया।। जिन…२।।
जैनधर्म हम सबको ये सिखलाता है,
वस्तुस्वरूप स्वतंत्र है समझाता है।
जीव मात्र भगवान हमें सिखलाता है,
करो आत्मकल्याण समय अब जाता है।। जिन…३।।
***
जिनवाणी-जिनवाणी ध्याना सभी-२
जिनवाणी माँ - जिनवाणी माँ,
तुम ध्याओ जिनवाणी, वीरा की वाणी,
मुक्ति को देती है, महाकल्याणी ॥
गौतम गणधर ने इसका ध्यान किया - २ ।
सब जीवों को मोक्षमार्ग का ज्ञान दिया - २ ।।
बनकर जोगी आतम का कल्याण किया - २ ।
हम पर कर उपकार श्री मोक्ष प्रयाण किया - २ ।।
तुम ध्याओ भव्य प्राणी - वीरा की वाणी
मुक्ति को देती हैं, महाकल्याणी ॥१॥
***
छोड़ो पर की बातें, पर की बात पुरानी।
निज-आतम से शुरू करेंगे हम तो नई कहानी।
हम आतम ज्ञानी, हम भेद विज्ञानी ॥टेक।।
आओ आत्मा के आनंद की खान बतायें।
रत्नत्रय से सजा हुआ भगवान दिखायें ॥
निज आत्मा ही परमात्मा है, सुख की यही है रवानी।
मत कर हैरानी, तज देना दानी ।।1।।
कर्म और पापों की झंझट अब तो छोड़ो।
निज की दृष्टि में मुक्ति से नाता जोड़ो।।
समयसार है नियमसार है और है माँ जिनवाणी।
हम आतम ज्ञानी, हम भेद विज्ञानी ।।2।।
***
छंद - आडिल्ल, चान्द्रायण, पीयूष राशि, पीयूष वर्णी
हे प्रभो! चरणों में तेरे आ गये;
भावना अपनी का फल हम पा गये॥
वीतरागी हो तुम्ही सर्वज्ञ हो;
सप्त तत्त्वों के तुम्ही मर्मज्ञ हो ।
मुक्ति का मारग तुम्ही से पा गये;
हे प्रभु! चरणों में तेरे आ गये ॥१।।
विश्व सारा है झलकता ज्ञान में;
किन्तु प्रभुवर लीन हैं निज ध्यान में ।
ध्यान में निज - ज्ञान को हम पा गये;
हे प्रभु! चरणों में तेरे आ गये ॥२॥
***
मीठा-मीठा बोल तेरा क्या बिगड़े,
क्या बिगड़े, तेरा क्या बिगड़े
वीरा-वीरा बोल तेरा क्या बिगड़े,
क्या बिगड़े, तेरा क्या बिगड़े
या जीवन में दम नहीं कब निकले प्राण मालूम नहीं,
मीठा-मीठा बोल तेरा क्या बिगड़े
सोच समज ले स्वार्थ का संसार,
लाख यत्न कर छूटे न घर बार, -2
तू जान ले पहचान ले, -2
संसार किसी का घर नहीं कब निकले प्राण मालुम नहीं,
मीठा-मीठा बोल तेरा क्या बिगड़े
प्रभु वर तो कहते है बारम्बार,
तप-संयम ही जीवन का आधार,-2
तू जान ले पहचान ले, -2
संसार किसी का घर नहीं कब निकले प्राण मालुम नहीं,
मीठा-मीठा बोल तेरा क्या बिगड़े
जिनवर की महिमा है अपरंपार,
डूबती नैया करदो रे भव पार,-2
तू जान ले पहचान ले, -2
संसार किसी का घर नहीं कब निकले प्राण मालुम नहीं,
मीठा-मीठा बोल तेरा क्या बिगड़े
***
गुरुवर की चर्या सुहानी लगती है।
देखे तो मन में वैराग्य उमड़ता है।।
पल भर में कैसे तोड़ते है बंधन।
अब तो आतमध्यान, करना लगता है..... गुरुवर की चर्या...
अष्टकर्मों से बंधा है जीव का बंधन।
ज्ञान से जोड़ा है देखो आत्म का सम्बन्ध।।
पंचइन्द्रिय पर विजय जिन्होंने पायी है।
ज्ञान की देखो वही ज्योति जलाई है।।
मुश्किल... मुश्किल -2 ... मुश्किल अब तो पाप छुड़ाना लगता है।
देखे तो मन में वैराग्य उमड़ता है।...
ज्ञान के आँचल में देखो, बंध गए मुनिवर।
मोह माया को ही छोड़, हो गए गुरुवर।।
तेरे चरणों की गुरु, हम कर रहे भक्ति।
ज्ञान की तू राह बता, कैसे मिले मुक्ति।।
मुश्किल... मुश्किल -2 ... मुश्किल अब तो पाप छुड़ाना लगता है।
देखे तो मन में वैराग्य उमड़ता है।...
***
छंद - दिग्वधु, दिग्पाल
अशरीरी सिद्ध भगवान, आदर्श तुम ही मेरे|
अविरुद्ध शुद्ध चिद्घन, उत्कर्ष तुम्हीं मेरे ||
सम्यक्त्व सुदर्शन ज्ञान, अगुरुलघु अवगाहन |
सूक्ष्मत्व वीर्य गुण खान, निर्वादित सुख वेदन ||
हे गुण अनंत के धाम, वंदन अगणित मेरे||(1)
रागदि रहित निर्मल, जन्मादि रहित अविकल |
कुल गोत्र रहित निष्कुल, मायादि रहित निश्छल ||
रहते निज में निश्छल, निष्कर्म साध्य मेरे ||(2)
***
नरतन को पाकर के, जीवन को विमल कर लो।
शिवपुर के पथिक बनों, नरजन्म सफल कर लो।
न उम्र की सीमा है, न जन्म का है बंधन।
निज में निज अनुभव कर, बन जाओ स्वयं भगवन।।
निज के वैभव से तुम, निज को ही धनिक करलो।।१।।
चारों ही गतियों में, चारों ही कषायों ने।
मुझे खूब रुलाया है, मुझे खूब भ्रमाया है।।
अब मानुष तन पाकर, यह जन्म सफल करलो।।२।।
***
जिया कब तक उलझेगा संसार विजल्पों में।
कितने भव बीत चुके संकल्प-विकल्पों में।।टेक॥
उड़-उड़ कर यह चेतन गति-गति में जाता है।
रागों में लिप्त सदा भव-भव दुःख पाता है।।
पल भर को भी न कभी निज आतम ध्याता है।
निज तो न सुहाता है पर ही मन भाता है।।
यह जीवन बीत रहा झूठे संकल्पों में।
जिया कब तक उलझेगा संसार विजल्पों में ॥1जिया.॥
निज आत्मस्वरूप तो लख तत्त्वों का कर निर्णय ।
मिथ्यात्व छूट जाए समकित प्रगटे निजमय ।।
निज परिणति रमण करे हो निश्चय रत्नत्रय ।
निर्वाण मिले निश्चित छूटे यह भवदुःखमय ।।
सुख ज्ञान अनंत मिले चिन्मय की गल्पों में।
जिया कब तक उलझेगा संसार विजल्पों में ।।2जिया.॥
***
छंद - भुजंगप्रयात, भुजंगी
बड़े भाग्य से हमको मिला जिनधर्म।
हमारी कहानी है, तुम्हारी कहानी है बड़ी बेरहम ॥ टेक ॥।
अनादि से भटके चले आ रहे हैं।
प्रभु के वचन क्यों नहीं भा रहे हैं।
रुलते रहें जग में, सुने कौन जन ।।१।।
भगवान बनने की ताकत है मुझमें।
मैं मान बैठा पुजारी हूँ बस मैं।
मेरे घट में घट घट का, वासी है चेतन।।२॥
अणु-अणु स्वतंत्र प्रभु ने ज्ञान कराया।
विषयों का विष पी-पी, उन्माद आया।
क्षण भर को निज में तू, हो जा मगन ।।३||
***
धन्य धन्य वीतराग वाणी, अमर तेरी जग में कहानी।
चिदानंद की राजधानी, अमर तेरी जग में कहानी।।टेक।।
उत्पाद व्यय अरु ध्रौव्य स्वरूप, वस्तु बखानी सर्वज्ञ भूप।
स्याद्वाद तेरी निशानी, अमर तेरी जग में कहानी ।।1।।
नित्य अनित्य अरु एक अनेक, वस्तु कथंचित भेद अभेद।
अनेकान्त रूपा बखानी, अमर तेरी जग में कहानी ।।2।।
***
छंद - विधाता
अहो चैतन्य आनंदमय, सहज जीवन हमारा है।
अनादि अनंत पर निरपेक्ष, ध्रुव जीवन हमारा है।
हमारे में न कुछ पर का, हमारा भी नहीं पर में।
द्रव्य दृष्टि हुई सच्ची, आज प्रत्यक्ष निहारा है।
अनंतो शक्तियां उछले, सहज सुख ज्ञानमय बिलसे।
अहो प्रभुता ! परम पावन, वीर्य का भी न पारा है।
***
छंद - राधिका, लावनी
हे ! सीमंधर भगवान शरण ली तेरी,
बस ज्ञाता दृष्टा रहे परिणति मेरी || टेक ||
निज को बिन जाने नाथ फिरा भव वन में |
सुख की आशा से झपटा उन विषयन में ||
ज्यों कफ में मक्खी बैठ पंख लिपटावे,
तब तड़फ-तड़फ दुःख में ही प्राण गमावे ||
त्यों इन विषयन में मिली, दुखद भवफेरी || १ ||
मिथ्यात्व रागवश दुखित रहा प्रतिपल ही,
अरु कर्मबंध भी रुक न सका पल भर भी |
सौभाग्य आज हे प्रभो तुम्हें लख पाया,
दुःख से मुक्ति का मार्ग आज मैं पाया ||
हो गई प्रतीति न रही मुक्ति में देरी || २ ||
***
छंद - विजया
निज आतम को मैने जाना नहीं,
मात्र शास्त्रों को रटने से क्या फायदा।
निज आतम का अनुभव हुआ ही नहीं,
व्रत, संयम ही कर लूं, तो क्या फायदा।
मैं तो मन्दिर गया, पूजा-भक्ति भी की,
पूजा करते हुए ये ख्याल आ गया।
पूजन-विधान का अर्थ जाना नहीं,
मात्र अर्घ्य चढ़ाने से क्या फायदा।।१।।
मैने व्रत भी किए और जप-तप किए,
व्रत करते हुए ये ख्याल आ गया।
बढ़ती इच्छाओं में कोई कमी ही नहीं,
मात्र जप-तप ही करने से क्या फायदा।।२।।
मैने शास्त्र पढ़े स्वाध्याय किया,
शास्त्र पढ़ते हुए ये ख्याल आ गया।
आत्मकल्याण का भाव आया नहीं,
मात्र शास्त्रों को पढ़ने से क्या फायदा।।३।।
ध्यान केन्द्र गया, तत्वचिन्तन किया,
चिंतन करते ही मुझको ख्याल आ गया।
कर्तत्व की बुद्धि तो छूटी नहीं,
मात्र ज्ञायक ही रट लूं तो क्या फायदा।।४।।
***
छंद - जोगीरासा
तीन भुवन में सबसे सुंदर तू है चेतन राजा।
राग-द्वेष से मलिन न होता रहता सबका ज्ञाता।
बोलो जय हो जय...
पर नही तुझमें आता नाही आती पर की छाया,
अपने में रहकर सब जाने जाननहार जताया,
जान रहा जो अखिल विश्व को आज ज्ञान में आया,
राग-द्वेष से मलिन न होता रहता सबका ज्ञाता।।१।।
बोलो जय हो जय...
शक्ति अनन्तों सदा उछलती ज्ञान मात्र मे तेरे,
ज्ञान मात्र के द्वारा चेतन आत्म का रस पीलें,
ज्ञान बिना है नही कहीं कुछ निज सुख मैंने पाया,
राग-द्वेष से मलिन न होता रहता सबका ज्ञाता।।२।।
बोलो जय हो जय...
गुण अनन्त में सदा धनी तुम अद्भुत प्रभुता धारी।
एक-एक गुण सिद्धों जैसा तुम सिद्धों से भारी,
भार उतारू चार गति का पंचम गति अधिकारी ।
राग-द्वेष से मलिन न होता रहता सबका ज्ञाता।।३।।
बोलो जय हो जय...
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विधान कराने से पूर्व विधानाचार्य को ध्यान में रखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बातें:-
1. आध्यात्मिक भजनों से साथ विधान-पूजन कराते समय ध्यान रहे कि विधान के लेखक ने बहुत ही अध्ययन, चिंतन और भक्तिभाव से ये पूजन विधान लिखा है कहीं ऐसा न हो कि अधिक भजन गान करने से विधान की मुख्यता खत्म हो जाए और भजन ही मुख्य होकर रह जाए, इसलिए अधिक भजन न लें और विधान में लिखे शब्दों अर्थ विधान में बैठे साधर्मियों को समझाकर विधान के रचनाकार की भावना तथा सभी साधार्मियों के समय का सदुपयोग करें।
2. जिनमंदिर जी में महिलाओं का नृत्य न होने दें, इससे जिनेन्द्र भगवान का अवर्णवाद होता है, हमें ध्यान रखना चाहिए की राजा ऋषभदेव के सामने जिस नीलंजना का नृत्य वैराग्य का कारण बना, वही नृत्य यदि मुनि अवस्था में आदि मुनिराज के सामने होता तो शास्त्रों में इसे मुनिराज पर घोर उपसर्ग कहा जाता, प्रथमानुयोग में ऐसे बहुत उदाहरण है जहां दिगम्बर मुनिराज के सामने किसी महिला या देवी का भी नृत्य मुनिराज पर घोर उपसर्ग बताया है।
जो सौधर्मइन्द्र बाल तीर्थंकर के जन्म पर ताण्डव करता है वही इन्द्र मुनिराज को केवलज्ञान प्रगट होने पर कुबेर को समवशरण की रचना का आदेश देता है तथा ताण्डव करने के बजाय शांति से बैठकर भगवान की दिव्यध्वनि सुनता है। जिनमंदिर को शास्त्रों में समवशरण के समान कहा गया है और जिनप्रतिमा को साक्षात जिनेन्द्र भगवान के समान इसलिए जिनमंदिर की विशेष मर्यादा होती है जो व्यवहार समवशरण में जिनेन्द्र भगवान के सामने होता है वही व्यवहार हमारा जिनमंदिर में जिनप्रतिमा के सामने होना चाहिए वैसे भी हम कभी- कभी विधान करते है, उसमें भी नृत्य-गान में समय नष्ट कर दिया और विधान में लिखे शब्दों का अर्थ ही नहीं समझा तो हमारे द्वारा किए गए पूजन विधान का कोई अर्थ नहीं होता।
3. इसके अलावा आचार्य अमितगति मुनिराज ने धर्मपरीक्षा ग्रन्थ में लिखा है की महिलाओं को भगवान के सामने सदैव सिर ढ़ककर गौआसन में ढो़क देना चाहिए जिससे भगवान की विनय भी हो और पीछे खड़े व्यक्ति के परिणाम भी खराब न हो जब ढो़क देने के सम्बन्ध में आचार्य ने इतना लिखा है तो जिनमंदिर में नृत्य का तो प्रश्न ही नहीं होना चाहिए।
Nice
ReplyDeleteThanks...
DeleteVery nice.. Anumodana 🙏can u pls send audio clips of these stavans..
ReplyDeleteयहां ब्लॉगर में मुझे ऑडियो एड का ऑप्शन नहीं मिला इसलिए नही डाला है, यदि कोई भजन की लय नहीं पता है और ऑडियो में लय समझनी है तो मुझे 8302047216 इस व्हाट्सएप नम्बर पर मैसेज करें, में वॉइस मैसेज में जाकर सेंड करूंगा।🙏
Delete🔥🔥👍
ReplyDeleteThanks.
Deleteबहुत सुंदर संयोजन किया है,
ReplyDeleteजी धन्यवाद 🙏
Deleteसखी राग पर कोई भक्ति हो तो अवश्य बताएं
ReplyDeleteसखी चाल और मानव छंद एक ही ले में चलते हैं, इसमें इसके भजन दिए हुए है मानव छंद के भजन देखें 🙏🙏🙏
Deletesuperb collection !
ReplyDeleteThanks...
DeleteVERYYYY nice Anumodna
ReplyDeleteThank you 😊🙏
Deleteकुण्डलिया के लिए भजन सेंट करिए
ReplyDeleteकुंडलियां में 2 प्रकार के छंद होते है। दोहा और रोला, तो उसे बिना किसी भजन के ऐसे ही भक्ति भाव से गाएंगे तो वो अच्छा लगेगा। मैने पहले ही ऊपर लिखा है भजनों का प्रयोग कम से कम करना है विधान मुख्य होना चाहिए भजन नहीं।
DeleteBahot hi sundar sanyojan.
ReplyDeleteSuperb
Very nice 👌.
Thank you 😊🙏
DeleteVery nice collection. Amazing. Aapki bahut-bahut anumodna 🙏
ReplyDeleteजी धन्यवाद 🙏
DeleteInko audio de to ati uttam hoga
ReplyDeleteयहां पर ऑडियो का ऑप्शन नहीं है, किन्तु यहां जितने भी भजन है सबका ऑडियो यूट्यूब पर मिल जायेगा, और फिर भी न मिले तो मेरा नंबर इसमें दिया हुआ है आप व्हाट्सएप पर मैसेज कीजिए ऑडियो मिल जायेगा, और कोई नया छंद जिसका नाम इसमें नहीं है विधान की किताब से उसका फोटो मुझे व्हाट्सएप करें उसकी लय भी मैं आपको वॉयस मैसेज में सेंड कर दूंगा। 🙏
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