Sunday, September 12, 2021

उत्तम सत्यधर्म:-

सत् की पहचान ही वास्तव में उत्तम सत्यधर्म होता है।

वर्तमान में बहुत से संसारी जीवों जो लगता है की सच बोलना ही सत्यधर्म है, किन्तु वास्तव में देखा जाए तो सच बोलना ये तो लोकव्यवहार है, नैतिकता है, अच्छी बात है, किन्तु धर्म नहीं है। अच्छी बात है, नैतिकता है इसलिए लोकव्यवहार में उसे धर्म कह दिया जाता है।

किन्तु यहां जो सत्यधर्म का स्वरूप है, वह कुछ अलग ही है, सत्य अर्थात् सत् अर्थात् किसी भी वस्तु की सत्ता की स्वीकृति उसका नाम सत्य धर्म है।

वर्तमान में संसार में बहुत से लोगों को लगता है, आत्मा-परमात्मा इत्यादि कुछ नहीं होता, स्वर्ग-नरक इत्यादि कुछ नहीं होता, कुएं के मेंढ़क की भांति जो कुछ, जितना दिखाई देता है उसी को अज्ञानी जीव संसार समझते है इससे आगे भी कुछ हो सकता है इस पर विचार ही नहीं कर पाते।

और जो ज्ञानी जीव ये समझता है, कि में अनंतज्ञान-अनंतसुख जैसे अनन्त गुणों का पिंड हूं। मेरी सत्ता इस संसार में विद्यमान है, सुख दुःख रूप जीव की अवस्था पुण्य-पाप, गति-कुगती, ये संसार, ये सत् है इस संसार की सारी व्यवस्था स्व-संचालित व्यवस्था है, प्रत्येक द्रव्य यहां स्वतंत्र है, अपनी योग्यता से, अपने अनुसार, अपने समय पर स्वयमेव ही प्रत्येक द्रव्य परिणमित होता है। प्रत्येक जीव को प्रतिसमय शुभ-अशुभ भाव पूर्वक कर्म का बंध होता है, तथा निज आत्म तत्व की पहचान के पश्चात् शुद्धभाव पूर्वक कर्म की निर्जरा होती है और सम्पूर्ण कर्म झरने के बाद जीव कर्म से रहित होता है अर्थात् मुक्त होता है। यही सत्य है जो जीव इन सब बातों का बारम्बार विचार करके, इस अनन्त सत्य का निर्णय करता है, इस सत्य को स्वीकार करता है, इस सत् स्वरूप आत्मा का अनुभव कर लेता है वहीं वास्तव में उत्तम सत्य धर्म का धारी होता है।



No comments:

Post a Comment

मेरी मम्मा

 मेरी मम्मा मैंने दुनिया की सबसे बड़ी हस्ती  देखी है। अपनी मां के रूप में एक अद्भुत शक्ति देखी है।। यूं तो कठिनाइयां बहुत थी उनके जीवन में। ...