Sunday, September 19, 2021

क्षमावाणी महापर्व:-


क्षमावाणी का महापर्व ये, कैसे इसे मनाऊं,

सोच रहा हूं कब से मैं ये, कैसे इसे मनाऊं।

मैंने जैसा देखा अब तक, वह मैं तुम्हें सुनाऊं,

क्षमावाणी का मतलब मैंने, जो समझा बतलाऊं।।

देखा सबको दशलक्षण में, पूजन-भक्ति करते,

क्रोध नाश कर, क्षमा भाव रख, प्रवचन में ये सुनते।

इक विद्वान कहे प्रवचन में, क्रोध छोड़कर क्षमा करें,

नौकर से क्या गलती हो गयी, क्रोधी बन खुद क्रोध करे।

स्वाध्यायी तो बहुत ही देखे, पूजन-प्रक्षाल करते है, 

पर क्रोध-मान इतना कि, ठीक से बात तक न करते है।

दो मिनट पहले ही तो, सबको क्षमा बोला था,

सबसे क्षमा मांग-मांग कर अपने मन को धोया था।।

दो मिनट के बाद ही देखो, कैसा प्रसंग आया,

जिससे मांगी थी क्षमा, उस पर ही क्रोध आया।।

सब लोग दिखावा करते है, पर मुझसे नहीं होता है, 

कितनी कोशिश की है मैंने, कषाय भाव न जाता है, 

माता-पिता की बात न मानी, गुरुजनों की नहीं सुनी, 

कैसे मांगू क्षमा में उनसे, ग्लानि मन में भरी हुई, 

हर वर्ष मैं क्षमा मांगता, पर अब भी मैं वैसा ही हूं।

नहीं बड़ो की बात मानता, अपने मन की करता हूं।

सबको क्षमा, सबसे क्षमा, यह कहने से नहीं होता है,

परिणामों को प्रति समय, निर्मल रखना होता है।।

भगवान की तो पूजा-अर्चना, खूब स्वाध्याय करते है,

लेकिन कभी किसी से, ठीक से, बात तक न करते है।

मन्दिर में देखा है, मैने करोड़ों रुपए आते है, 

मन्दिर के पुजारी देखो, सूखी रोटी खाते है।

जैनधर्म तो जीव मात्र पर, करुणा दया सिखाता है,

लेकिन देखो जैनी को भगवान पे पैसा लुटाता है।

स्वार्थ है, या मिथ्या मान्यता, समझ नहीं मुझको आता,

अथवा धन का सदुपयोग हमको को करना नहीं आता।

क्षमावाणी के पर्व को समझो शब्दों में न बयां करो।

स्व-पर के सुख हेतु, अब जो भी हो प्रयत्न करो।

जिस दिन सब जीवो प्रति, समान दृष्टि हो जाएगी।

उस दिन तेरे अंदर क्षमा, शक्ति प्रगट हो जाएगी।

अपने पुत्र के जैसा जब तू, सब पुत्रो को देखेगा, 

हर बच्चा विद्यालय में, उस दिन पढ़ता देखेगा।

थोड़ा कहा बहुत जानना, क्षमाधर्म समझना , 

वाणी से न कहकर कुछ, क्रिया से भी करना।

आज क्षमा बोलकर तू, कल क्रोधित हो जाएगा।

सुन ले भैया जैनधर्म की, जग में हंसी उड़वाएगा।

मनुष्य गति में दो जरूरी, काम है उनको समझो,

ये समझा तो जन्म सफल है, ऐसा निर्णय कर लो।

या तो चलो अध्यात्म मार्ग में राग - द्वेष का काम नहीं,

जो इतना न हो पाए तो, पाप-कषाय छोड़ अभी।

किसी की मदद नहीं कर सकता, तो दिल छोटा न करना,

बस भाषा मीठी करके अपनी, मानवता का परिचय देना।।

अध्यात्म और प्रेम है बस, मानवता के दो लक्षण ।

ये दोनों नहीं दिखते है, पशु समान तेरा जीवन।।

आज अभी निर्णय लेना कि, क्षमा सदा ही हृदय रहे, 

हर पल क्षमाभाव हो मन में, सब प्राणी खुशी-खुशी जिए।।

हर पल क्षमाभाव हो मन में सब प्राणी खुशी-खुशी जिए।।





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