वर्तमान में अलग-अलग मत में अलग-अलग तरह से दीपावली और महावीर निर्वाणोत्सव पर्व मनाया जाता है।
कुछ लोग इसे खुशी का पर्व मानते हैं, तो कुछ लोग दुःख का पर्व भी मानते है, लेकिन वास्तव में जैनदर्शन के अनुसार देखा जाए तो महावीर निर्वाणोत्सव न तो खुशी का पर्व है, और ना ही दुःख का पर्व है। ना तो मिठाइयां बांटने का पर्व है, और ना ही आंसू बहाने का पर्व है, वास्तव में तो महावीर निर्वाणोत्सव वैराग्य का पर्व है।
30 वर्षों से मंगलकारी दिव्यध्वनि का रसपान करने वाले जीव जिनके ह्दय में जिनवाणी है, ऐसे जीव महावीरनिर्वाण के समय खुशियां और दुःख नहीं मनाते। बल्कि समताभाव धारण करते है।
यदि हम उस समय का विचार करे तो उस समय बहुत से जीवों ने वैराग्य धारण करके जिन दीक्षा अंगीकार की और भगवान महावीर के बताए मार्ग पर चल पड़े। कुछ जीवों ने सम्यक्दर्शन किया होगा, अणुव्रत धारण किए होंगे। तो कुछ जीवो ने अपनी-अपनी योग्यता के अनुसार त्याग और संयम धारण किया होगा।
वास्तव में तो हमें भी इस दिन अपनी नगरी में 4-5 दिन का कार्यक्रम मन्दिर में करना चाहिए। विधान-प्रवचन और पाठशाला चलानी चाहिए। क्यूंकि वह दिव्यदेशना आज भी हमारे पास उपलब्ध हैं,
यदि हम उस दिव्यध्वनि को समझ पाएं तो आज भी हम अपनी तेरस धन्य कर सकते है। आज भी मन्दिर में भगवान के रूप को देखकर अपना रूप देख पाएं, तो आज भी हम रूप चौदस मना सकते है। और आज भी हम मन्दिर जी में स्वाध्याय के बल से तत्वचिंतन पूर्वक स्वयं का निर्णय करके, भेदविज्ञान का पुरुषार्थ करके महावीर निर्वाणोत्सव मना सकते है।
दीपक जलाकर लाखों का घी-तेल बर्बाद करके, और चारों तरफ हजारों तरह की बिजली जलाकर इतनी सूक्ष्मजीवों की हिंसा करके कोई पर्व नहीं मनाया जाता। इससे अच्छा तो वो पैसा घी-तेल में बर्बाद करने के बजाय किसी जरूरतमंद को दे देना। आज तो हम मन्दिर जी में पूजन-विधान करें, प्रवचन सुनें, स्वाध्याय करें, तत्व चिंतन करें, प्रेम व्यवहार से सभी के साथ समता का भाव रखे। व्रत, उपवास करें, कुछ ना कुछ प्रिय वस्तु का त्याग करें तो हम इस पर्व को उचित रूप से मना पाएंगे।
इसके अलावा इस दिन हम सभी को भविष्य में महावीर भगवान की दिव्यध्वनि की रक्षा करने का, उसका रसपान करने का तथा उसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रण लेना चाहिए। और जितना हो सके अपना मुक्तिमार्ग प्रशस्त करने का पुरुषार्थ करना चाहिए। तभी हम वास्तव में इस पर्व को समझ पाएंगे।
बहुत सुंदर विचार व्यक्त किया पंडित जी। वास्तव में अनुकरणीय है। उन्नत विचार। भविष्य में भी ऐसे सुंदर लेख समाज के लिए उपलब्ध कराइएगा यही मंगल शुभकामनाएं।
ReplyDeleteजी धन्यवाद भाईसाहबजी 🙏
Deleteबहुत सही
ReplyDeleteDhanyvaad bhai🙏
DeleteVeri good sambhav
ReplyDeleteThanks.
DeleteAchcha h
ReplyDeleteJi Dhanyvaad 🙏
DeleteJai Jinendra Pandit Ji,
ReplyDeleteBahut hi sundar vichar,aajkal parvon ka mukhya uddesh hi goun ho gaya hai aur parvon ke dino ko matra dikhave aur moujmasti ki hi pradhanta se anya matiyon ki tarah Khao piyo mauj karo hi uddesh hota ja raha hai.
जी हम सब पर्वों का सही महत्व समझें यही भावना है।
DeleteVery nice sambhav ji
ReplyDeleteThank you ji🙏
DeleteBahut hi sahi bataya hai .👌👏👏🙏
ReplyDeleteManju jain Mumbai
जी धन्यवाद 🙏
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