Saturday, November 13, 2021

माता-पिता का हमारे जीवन में सही महत्व

 

माता-पिता का हमारे जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। आज वर्तमान में देखा जाए तो माता-पिता के विषय में बहुत सारी अच्छी-अच्छी बाते कही जाती है, अच्छी-अच्छी कविताएं लिखी जाती है, उन पर लेख भी लिखे जाते है, फिल्में बनाई जाती है। साथ में ये भी कहा जाता है कि माता-पिता के बिना बच्चे का कोई भविष्य नहीं होता और फिर ये भी कहा जाता है कि माता-पिता के दिए संस्कारो के बाद भी माता-पिता का लाडला, वह कलेजे का टुकड़ा बाद में अपने ही माता-पिता का सम्मान नहीं कर पाता, उन्हें खुशियां नहीं दे पाता, उनके साथ समय नहीं बिताता, यहां तक कि कुछ बच्चे माता-पिता को पैसा तो देते है, वृद्धाश्रम में डालकर बहुत सारा पैसा उनकी सेवा के लिए दे जाते है पर समय नहीं दे पाते , ये सब बाते तो हमें हमेशा देखने- पढ़ने, और सुनने में आती है। पर क्या कभी किसी ने सोचा कि ऐसा क्यूं होता है, इसके पीछे कारण क्या है?

माता-पिता वर्तमान में बच्चों को क्या सिखाते है, हम सच्चाई को जानकर भी बहुत बार चुप रह जाते है, हमें लगता है कोई हमसे बड़ा है तो वह हमसे ज्यादा समझदार है, जबकि ऐसा नहीं होता। एक बालक ही वर्तमान में समझ सकता है कि उसे माता-पिता में क्या चाहिए।

जब एक बालक का जन्म होता है तो वह दुनियां से एकदम अनजान होता है, वह जैसा देखता है, या जो उसे सिखाया जाता है, उसे वहीं सही लगने लगता है और माता-पिता भी बच्चे को बचपन में सही-गलत नहीं समझाते माता-पिता को लगता है कि जब ये बड़ा होगा तो खुद समझ जाएगा लेकिन ऐसा नहीं होता बचपन में उसने जो समझा वह अपनी उस समझ को ही हमेशा सही समझता है।

वर्तमान समय में अधिकतर जब एक बालक बोलने लगता है, तो उसे अच्छी बाते कम और बुरी बाते ज्यादा सिखाई जाती है, उसे णमोकार मंत्र, माता-पिता का एवं बड़ों का सम्मान, सबसे अच्छे से मीठी भाषा में बात करना सिखाया जाना चाहिए था किन्तु उसे सिखाया जाता है, गलत शब्द बोलना जैसे अपने से बड़ों को पागल कहना, बड़ों का नाम लेना, बड़ों को मारना, ये सब चीजें बच्चे सीखते हैं,

कहते है जहां जैसा माहौल होता है वहां का हर व्यक्ति वैसे ही माहौल में ढ़ल जाता है, जब घर में माता-पिता या भाई-बहन, दादी इत्यादि कोई भी सदस्य जोर से चिल्लाकर बात करता है, तो बच्चा जोर से चिल्लाकर बात करना सीखता है।

एक सीरियल आता है टेलीविजन पर उसमे एक बच्चे का विद्यालय में झगड़ा होता है, तो उसके अध्यापक को लगता है इतनी छोटी उम्र में इतना गुस्सा तो बहुत गलत बात है, वह अध्यापक उसकी शिकायत लेकर उसके घर पहुंचते है, और वहां जाकर देखते है कि उसके पापा और मम्मी आपस में जोर-जोर से एक दूसरे पर चिल्लाकर झगड़ा कर रहे थे, वहां दादी जोर से चिल्लाकर मोबाइल फोन पर किसी को धमकी दे रही थीं और उधर बड़े भैया-बहन आपस में झगड़ा कर रहे थे, तो अध्यापक तुरन्त समझ गए कि बालक में इतना गुस्सा कहां से आया।

हमें समझ नहीं आता हम इतना गुस्सा क्यूं करते है, हमें लगता है कि एक छोटी सी घटना जो आज घटी है उससे हमारी दुनियां खतम हो गई, जबकि ऐसा नहीं होता, 

हम पता नहीं क्यूं प्यार करने के बजाय गुस्सा करना सीख जाते है, घर में आपस में किसी से प्यार से बात नहीं कर पाते, जहां हम नोकरी या व्यापार करते है, वहां आपस में हंसी मजाक नहीं करते, एक दूसरे से ठीक से बात नहीं करते सिर्फ काम-काम और पैसा कमाने कि बातें और गुस्सा, और बाहर की बातों का गुस्सा हम घर पर, पत्नी-बच्चो पर, माता-पिता पर निकालते है, तो वह बच्चा वही सीखता चला जाता है, गुस्सा करना, गलत शब्दों का प्रयोग करना, लड़ना झगड़ना

अगर बच्चा कोई प्रश्न पूछता है, तो पहले तो माता-पिता उसका जवाब देना जरूरी ही नहीं समझते है, और देते भी है, तो कुछ भी जवाब दे देते है, जिससे बच्चा उस गलत को ही सही समझ लेता है,

सबको लगता है बच्चे मोबाइल के कारण माता-पिता से दूर हो रहे है, और उस अजीव पदार्थ मोबाइल को दोष दिया जाता है बल्कि सच तो ये है कि माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय ही नहीं है, वो बच्चों से विद्यालय की किताब के अलावा कोई और बात करना पसंद ही नहीं करते, अच्छे-बुरे के बारे में सही-गलत के बारे में ना तो खुद समझना चाहते है ना बच्चों को समझाना चाहते है, और इस कारण से बच्चे फिर जब अकेला महसूस करते है तो मोबाइल का सहारा लेते है जो ज्ञान का और मनोरंजन का भंडार है, जब कोई घर में बच्चों से प्यार से बात नहीं करता तब वह बच्चा फिर फेसबुक पर प्यार खोजने लगता है, लेकिन हम ये बात समझ ही नहीं पाते, हमें जो दिखता है बस वही बोल देते है वहीं सच मान लेते है उसके पीछे के कारण पर विचार ही नहीं करते।

हम खुद अपने जीवन में इतने व्यस्थ होते है कि अपने घर में अपना समय नहीं दे पाते, पैसा कमाना जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य बनाया हुआ है, और ये इतना सारा पैसा अपनी जरुरते पूरी करने के लिए नहीं बल्कि कभी ना दिखने वाले उन चार लोगो के लिए कमाया जाता है, जिनकी नज़रों में हमें खुद को बड़ा आदमी ओर सफल आदमी दिखाना है, उसके लिए जितना काम करना पड़े करते है, बच्चो को पैसे तो दे देते है पर समय नहीं दे पाते , माता-पिता दोनों पैसे कमाते है, और बच्चा किताबों में व्यस्थ हो जाता है, जब माता-पिता बच्चों को समय नहीं देते तो कोई उन्हें गलत नहीं कहता उस पर कविताएं नहीं लिखता लेकिन जब बड़ा होने पर बच्चा माता-पिता को समय नहीं दे पाए तो सब उसे बुरा कहते है, उस पर कविताएं बनती है।

                         

माता-पिता बच्चो को बचपन में ये नहीं सिखाते कि इस जीवन का महत्व क्या है, हम इस जीवन में क्या-क्या कर सकते है, या फिर दूसरों की मदद करना, सबसे प्यार से बात करना , ये सब सीखाने के बजाय माता-पिता एक ही बात सिखाते है, कि बेटा जीवन में कोई कुछ भी कहे चिंता मत करना बस पढ़ाई में प्रथम आना है, और जिन्दगी में बहुत पैसा कमाना है। विद्यालयों में भी यही सिखाया जाता है कि खूब पडो बड़े आदमी बनो, पैसे कमाओ, तो बच्चों को जीवन में फिर एक ही लक्ष्य दिखाई देता है, की बड़ा आदमी बनना है, खूब सारा पैसा कमाना है, और जब ऐसे बच्चे संस्कार विहीन होते है, और पैसे के लिए अपराध करते दिखाई देते है, तो हम सोचते है कि ये बच्चे ऐसे कैसे हो गए।

हम चाहे तो बच्चो को बहुत कुछ अच्छी बातें सीखा सकते है , बचपन से बच्चो को हर सही-गलत का तर्कों के आधार पर ज्ञान कराना, क्या खाना चाहिए क्या नहीं, दूसरों के साथ किस तरह का व्यवहार करना चाहिए, पैसे का सही उपयोग करना, और भी बहुत सारी बाते हम बच्चों को सीखा सकते है।

जब बच्चा विद्यालय से घर आए तो माता-पिता उससे ये नहीं पूछते कि बेटा आज का दिन कैसा रहा, विद्यालय में आज क्या-क्या किया, क्या अच्छी बातें सीखी, कैसे दोस्त मिले दोस्तो ने क्या सिखायाकुछ नहीं पूछते, इन बातो से तो माता-पिता को कोई लेना-देना ही नहीं है, बस एक बात बोलते है बच्चो से कि जल्दी से खाना खाओ और होमवर्क करने बैठो, फिर कोचिंग का समय होने वाला है, पिछली बार शर्मा जी का बेटा प्रथम आया था और सब उनकी तारीफ कर रहे थे, इस बार तुम्हे प्रथम आना है, ताकि मोहल्ले में हमारा भी नाम हो कि हमारा बेटा प्रथम आया है, और इसके लिए बालक को रिश्वत के रूप में अच्छा सा लालच भी दिया जाता है, उम्र के हिसाब से वीडियो गेम, साईकिल मोटर साईकिल आदि  और इस कारण से बालक बचपन से ही सही-गलत का निर्णय नहीं कर पाता , और उसका दिमाग एक मशीन जैसा बन जाता है, जो किताबों के इशारों पर और परंपरा के इशारों पर चलने लगता है।

जब एक पिता अपने काम से घर वापस लौटते है तो बच्चे का पापा से मिलने का बातें करने का बहुत मन करता है, और वो दोड़कर पिता का स्वागत करने पापा-पापा बोलता हुआ दरवाजे तक जाता है और पापा बालक को गले लगाने के बजाय जोर से चिल्लाकर बोलते है, होमवर्क किया या नहीं, चलो पढ़ाई करो, और इस तरह हमेशा वह बालक अपने माता-पिता के स्नेह के लिए तरसता है, और जब उसकी उम्मीद खो देता है, किताबों में उलझकर अपने आप को भूल जाता है।

वास्तव में बच्चा माता-पिता से या माता-पिता बच्चो से बाद में अलग-अलग नहीं होते बल्कि बचपन में ही अलग-अलग हो जाते है, जिस बच्चे के माता-पिता दोनों नौकरी करते है और अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते वह बच्चा माता-पिता के होते हुए भी अनाथ जैसा जीवन जीता है।

एक बालक बचपन में माता-पिता को भगवान समझता है, वह अपने माता-पिता के साथ हंसना-खेलना चाहता है, उनसे बाते करना चाहता है, कुछ सीखना चाहता है, बालक खुद माता-पिता से प्रश्न पूछकर कुछ सीखना चाहता है, अपने माता-पिता को हंसते हुए देखने के लिए तरसता है, जिस दिन एक पिता अपने बच्चे को प्यार से गले लगाता है, तो वह दिन उस बालक का पूरे जीवन का एक यादगार लम्हा बन जाता है, लेकिन क्या करे पिताजी को तो एक ही बात नजर आती है, बेटा पढ़ाई करे और खूब पैसा कमाएं, वह भी ना अपनी खुशी के लिए ना ही बेटे की खुशी के लिए बस झूठी शान के लिए ताकि सोसायटी में हमारा नाम रोशन हो, चार लोग तारीफ करे बस इसलिए, सिर्फ इसलिए बच्चों कि भावनाओं को समझे बिना बच्चों से उनके ही माता-पिता गधे की तरह से मेहनत कराते है, और सच्चाई तो ये है कभी किसी को दूसरे के बच्चों को प्रथम आता देख खुशी नहीं होती, बल्कि जलन होती है और लगता है कि काश हमारा बच्चा ऐसे प्रथम आता, और बच्चा प्रथम नहीं आता तो बहुत दिनों तक उसे नीचा दिखाया जाता है। और माता-पिता का जो प्यार बच्चे को मिलना चाहिए था वह उसे मिल ही नहीं पाता और बाद में वह जैसा अलग-अलग तरह के दोस्तो और अलग अलग तरह के माहौल में सीखता है, वैसे ही आगे बड़ता जाता है, और पता ही  नहीं चलता कब वह गलत राह पर चलना प्रारंभ कर देता है। लेकिन यह सब बाते कभी कोई विचार भी नहीं कर पाता कि इन बातो का बालक के भविष्य पर कैसा असर होता है।

अगर हमें बच्चो का भविष्य सुधारना है, अपने बच्चे को एक आदर्श बनाना है। तो पहले हमें सुधरना होगा, हमारी सोच बदलनी पड़ेगी, परंपराओं के अलावा परीक्षा करके सही गलत का निर्णय करना सीखना होगा और बच्चो को भी सीखना होगा।

अपने बच्चो को पेट भरने की कला सीखने की जरूरत नहीं है, वह तो एक जानवर भी बिना सिखाए सीख लेता है, बल्कि अपने बच्चो को संस्कार सीखना जरूरी है, इस अमूल्य मनुष्य भव की कीमत समझना जरूरी है।

एक छोटे से बालक को बचपन में सबसे ज्यादा भरोसा अपने माता-पिता पर होता है, जैसा माता-पिता उसे सिखाते है, बस वो वही सीखता चला जाता है अगर माता पिता उसे किसी इंजिनियर को दिखाकर उसकी तारीफ करते है, कि बेटा देखो ये इंजिनियर है, बहुत पैसा अच्छी नौकरी है, हमें भी ऐसा ही बनना चाहिए, तो वह बालक इंजीनियर बनने की सोचता है,

अगर माता-पिता किसी डॉक्टर से मिलवाकर बच्चे को कहे कि देखो बेटा ये बहुत अच्छे डॉक्टर है, लोगो का इलाज करते है, अच्छा पैसा कमाते है, हमें भी इनके जैसा बनना चाहिए तो बालक वैसा बनने की सोचता है, और भी कलेक्टर या कोई और अधिकारी, माता-पिता जिसकी तारीफ करते है तो वह बालक भी वैसा बनने की सोचता है,

और वहीं माता-पिता नगरी में जैन धर्म की शिक्षा देने के लिए आए विद्वान से अपने बच्चे को परिचित कराते है, कि देखो बेटा ये बहुत अच्छे विद्वान है, सब अच्छी-अच्छी बाते सीखते और सीखाते है, किसी को दुःख नहीं देते , अभक्ष्य भक्षण नहीं करते है, रात्रि भोजन नहीं करते, सूक्ष्म जीवों की भी रक्षा का भाव रखते है, माता-पिता की आज्ञा का पालन करते है, घर-परिवार का ख्याल भी रखते है, और नगर-नगर जाकर सच्चे जैन धर्म की प्रभावना करते है, हमें भी ऐसा ही बनना चाहिए, तो ये सब सुनकर वह बालक भी विद्वान बनना चाहेगा।

और अगर माता-पिता किसी दिगम्बर मुनिराज के दर्शन कराने बच्चों को ले जाएं और उन्हें मुनिराज के गुण बताएं, कि ये परम दिगम्बर वीतराग मुनिराज इस जंगल में अपने आत्मा के अतीन्द्रिय सुख का वेदन करते है, स्वयं तो सच्चे सुख के मार्ग पर चलते ही है, हमें भी सुखी होने का सच्चा मार्ग बताते है, भगवान के सच्चे पुत्ररूप है, वीतरागता के मार्ग पर चलने वाले दिगम्बर मुनिराज है, यदि इस अमूल्य मनुष्य भव का सदुपयोग करना चाहते तो हर लड़के को बड़ा होकर दिगम्बर मुनि बनना चाहिए, और मोक्षमार्गी बनना चाहिए, ऐसा सिखाने पर वह बालक मुनिराज के प्रति भक्ति करते हुए, मुनि बनने की भावना भाएगा।

और अगर वहीं माता-पिता जिनमन्दिर में ले जाकर बच्चों को सिखाए कि देखो, वीतराग सर्वज्ञ भगवान राग-द्वेष से रहित, अनन्त सुख संपन्न, प्रतिसमय अनन्त सुख का वेदन करने वाले वीतरागी भगवान है यदि हमें भी सुखी होना है तो ऐसा ही बनना चाहिए। तो वह बालक भी भगवान बनने का लक्ष्य करेगा।

आप जैसा बचपन से अपने बालकों को सिखाएंगे  वह बड़ा होकर वही बनेगा, अब माता-पिता को विचार करना है, कि उन्हें अपने बच्चों को किस रूप में देखना है, संसारमार्गी या मोक्षमार्गी, दुःखी देखना है या सुखी देखना है, बालक का जीवन माता-पिता है हाथ में है, और सही राह दिखाना माता पिता का कर्तव्य है।।



4 comments:

  1. Bahut sundar vichar hai aapke .dhany hai aapke mata pita jo itne acche saskar diye or dhany ho aap jo ese mata pita mile 👌👌👌🙏🙏🙏

    ReplyDelete

 मेरी मम्मा मैंने दुनिया की सबसे बड़ी हस्ती  देखी है। अपनी मां के रूप में एक अद्भुत शक्ति देखी है।। यूं तो कठिनाइयां बहुत थी उनके जीवन में। ...