हम सब जानते है कि संसार में जो भी अच्छी या बुरी घटना होती है, उसमें एक नहीं बल्कि अनेक कारण होते है, अनेक निमित्त-नैमेत्तिक कारण होते है जिसके कारण से कोई भी घटना घट जाती है, और भविष्य में घटने वाली किसी भी घटना को रोकना अत्यन्त मुश्किल है या हम कह सकते है असंभव भी है, क्यूंकि इस संसार में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता।
यदि आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति में किसी के साथ अन्याय होता ही नहीं है, संसार में जो भी व्यक्ति सुखी-दुःखी होता है वह अपने कर्मो से होता है, कोई व्यक्ति भूखा मर जाता है तो किसी के पास इतना अधिक होता है कि वह प्रतिदिन अनाज नाली में फेंकता है, ये सब पूर्व कर्मो के फल है, और वर्तमान में आपके जो भी कर्म होंगे, भविष्य में आपको उसका परिणाम भुगतना ही होगा। आज जिसके साथ जो घटना घट रही है, हमें नहीं पता कि उसके पूर्वभव में उसने ऐसा क्या बुरा कर्म किया कि आज उसकी इतनी बुरी दशा हुई है, किन्तु हम वर्तमान दशा को देखकर ही क्रोधित हो जाते है और जिसके साथ हमें अन्याय होता दिख रहा है उसके पूर्व में किए बुरे कर्मो पर हमारा ध्यान ही नहीं जाता और जिसने आज ये बुरा काम किया है उसके साथ भविष्य में क्या होने वाला है इसका विचार हम नहीं कर पाते, और इष्ट-अनिष्ट परिणामों में फंस जाते है। किन्तु फिर भी इतना निर्णय आज हमें कर ही लेना चाहिए कि प्रकृति में किसी के साथ अन्याय नहीं होता है।
ये बोलकर में ये नहीं कहना चाहता की हम अपना कर्म करना छोड़ दे, नहीं, वर्तमान परिस्थिति में हमारा जो कर्म है वह हमें करना ही चाहिए, जिसको सहायता की आवश्यकता है यदि हम कर सकते है तो अवश्य करना ही चाहिए।
ये तो बात है अध्यात्म की दृष्टि से अब सांसारिक दृष्टि से हमारे जो कर्तव्य है किसी भी घटना से संबंधित उस पर हम थोड़ा विचार करते है।
जैसा कि मैने कहा कि भविष्य में घटने वाली किसी भी घटना को रोकना अत्यन्त मुश्किल है या हम कह सकते है असंभव भी है, क्यूंकि इस संसार में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। किन्तु फिर भी किसी भी दुर्घटना से बचने के लिए हम सबसे पहले जो सोचते है वह है सावधानी।
जैसे बाढ़ कब आयेगी कोई नहीं जानता, सूखा कब पड़ जाए कोई नहीं जानता , किन्तु फिर भी हम बांध बनाते है , पेड़-पोधे लगाते है, हर तरह की सावधानी रखते है।
पहले के समय में जैसा की मैने पड़ा ओर सुना है तो लोग तब इतना समझते थे कि अगर हमें कहीं जाना हो तो रास्ते में चोर डाकू कोई भी मिल सकता है भले हम एक वर्ष से या दस वर्ष से प्रतिदिन उसी रास्ते से जा रहे है, आज तक कुछ नहीं हुआ किन्तु आज अचानक कोई चोर या डाकू मिलता है और सारा धन लूट लेता है। तो किसको दोष दिया जाएगा इसलिए वह लोग या तो किसी के साथ जाते थे या कोई चाकू, हसिया इत्यादि हथियार साथ में लेकर जाते थे सावधानी के लिए, आत्मरक्षा के लिए अर्थात् वह कोई ना कोई उपाय करके तैयार होकर जाते थे और यदि फिर भी कुछ हो जाए तो वह अलग बात है, किन्तु पहला कर्तव्य वह अपना ये समझते थे कि हमारी तरफ से सावधानी पूरी होना चाहिए।।
वैसे ही यहां हमें बात करनी है बलात्कार को घटना के विषय में-
आज जो लड़की हमारे साथ में हंसते-खेलते हुए खुशी-खुशी बात कर रही है कल उसके साथ क्या होने वाला है ये कोई नहीं जानता किन्तु उसकी सुरक्षा का हर तरह से ध्यान रखना आवश्यक है जो कि सर्वप्रथम तो उसके माता - पिता का कर्तव्य है और फिर स्वयं उस लड़की का कर्तव्य है कि अपनी सुरक्षा का ध्यान वह स्वयं रखे।
बलात्कार या कोई भी घटना जब घटती है तो उसके एक नहीं अनेक कारण होते है जिन पर हम विचार करे और पहले से आवश्यक सावधानियां रखे तो बहुत सी चीजों से हम बच सकते है।
बलात्कार जैसी घटना का सबसे बड़ा पहला कारण होता है नशा:-
नशा जो शराब का हो सकता है, भांग का हो सकता है, चरस-गांजा जैसे किसी भी पदार्थ का नशा हो सकता है , नशे में व्यक्ति को होश नहीं होता कि वह क्या कर रहा है, नशीले पदार्थो के सेवन से व्यक्ति के मन में काम वासना के भाव बढ़ जाते है और उस समय उसे कोई होश नहीं रहता सामने कौन है, नशे में कोई रिश्ता याद नहीं रहता, वह किसी निर्णय के लायक नहीं रहता ऐसे में उसे कहीं अकेली लड़की दिख जाती है तो उसकी वासना भड़क उठती है, लड़की के साथ में उसे बचाने वाला कोई नहीं होता, और इस तरह की वारदात घट जाती है, इसलिए सबसे पहले नशा बन्द होना चाहिए वैसे भी नशा करना हमारे भारत देश की संस्कृति के खिलाफ है। और इससे कोई शरीर को खास लाभ नहीं होता बल्कि नुकसान ही होता है, पैसे की बर्बादी, शरीर की बर्बादी, सड़क दुर्घटना, बलात्कार जैसी बहुत सी दुर्घटनाओं का सबसे बड़ा कारण नशा है ये बन्द होना चाहिए। और नशा टीवी पर विज्ञापन देने से बंद नहीं होगा देश में नशे के पदार्थ बेचना और खरीदना दंडनीय अपराध होना चाहिए। और देश में नशा बन्द हो ना हो किन्तु हमारे परिवार में कोई व्यक्ति नशा ना करें और नशा करने वालों से दूर रहे ऐसे लोगो की संगति ना करे इस बात का ध्यान तो हम सभी को रखना ही चाहिए।
इसके अलावा दूसरा सबसे बड़ा कारण है लड़कियों के छोटे-छोटे अश्लील कपड़े:-
लड़कियों का महिलाओं का शरीर कुछ इस तरह का होता है जिसे देखकर, उसके शरीर का रूप रंग देखकर लड़कों की वासना उफान मारने लगती है।
जैसे किसी भूखे व्यक्ति की अच्छे भोजन की सुगंध मात्र से भूख बड़ जाती है, और अच्छा भोजन सामने मिल जाए तो वह पूर्ण रूप से जिव्हा के आधीन हो जाता है, और भूख शांत करने के लिए कुछ भी करता है स्वादिष्ट भोजन देखकर भूखा व्यक्ति स्वयं पर नियंत्रण नहीं कर पाता, ठीक उसीप्रकार कामी पुरुष सामने जब अर्धनग्न लड़की या महिला को देखता है उसका आधा शरीर कपड़ों के बाहर से ही दिखाई देता है तो कामी पुरुष की वासना भड़क उठती है, वो अपने नियंत्रण में नहीं रहता, पूरी तरह वासना के अधीन हो जाता है, और वर्तमान समय में तो लड़कियां नशा भी करने लगी है, परिवार से छुपकर सड़क पर लडको के साथ अर्धनग्न घूमती है। तरह-तरह के मजाक करना लड़को के साथ आजकल ये सब आम बात है ऐसे में लड़के, लड़कियों से आकर्षित होने लगते है और ऐसी घटनाएं घट जाती है।
लड़कियों के छोटे कपडे ओर लड़को से खूब खुलकर बात करना और लड़को के साथ फोटो खींचना ये सब लड़की की पहली सहमति मानी जाती है, और संसार में ऐसा देखा जाता है कि जो लड़की पूरे कपडे पहनती है अपने काम से काम रखती है किसी से ज्यादा बात नहीं करती, ऐसी लड़की को लड़के अपनी girlfriend बनाने के बारे में सोचते ही नहीं क्यूंकि लड़के समझ जाते है कि थप्पड़ पड़ सकता है क्युकी ये लड़की इस तरह की नहीं है , किन्तु जो लड़की आधे-अधूरे कपडे पहनकर घूमती है, लड़को के साथ खूब मिलजुल कर बात करती है लड़की का लड़को से दोस्ती करना, घर में आना-जाना, साथ में फोटो खींचना इन सबमें लड़के को लड़की की सहमति फील होने लगती है, फिर क्या है एक दूसरे के प्रति आकर्षण और शारीरिक संबंध ऐसी लड़कियां ज्यादातर तो स्वयं तैयार रहती है शारीरिक संबंध के लिए और जो तैयार नहीं होती उन्हें लड़के अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल करते है। निजी फोटो लेकर ब्लैकमेल करते है ऐसी घटनाएं वर्तमान में बहुत देखने को मिलती है, हम लड़को को दोष दे सकते है, देना भी चाहिए, किन्तु क्या हम ये नहीं सोच सकते की कहीं ना कहीं हमारी भी गलती थी हमने किसी पर ज्यादा विश्वास किया अपने शरीर का फालतू में जगत प्रदर्शन किया ये सब बाते है जो विचारने योग्य है ।
यहां कोई प्रश्न कर सकता है, कि भैया जो लड़की पूरे कपड़े पहनती है किसी से ज्यादा बात नहीं करती उसका क्या उनके साथ भी तो ऐसा होता है उसका क्या ?
बिल्कुल ठीक बात है आपकी, ऐसा भी होता है किन्तु में एक परिस्थिति सामने रखता हूं आप विचार करना, मान लो कोई कामी पुरुष है, किसी बाजार में है, किसी पार्टी में है, शादी में है, कहीं भी है वहां छोटे कपडे में सजधज कर आयी लड़कियां वह देखता है, उनका आधे से ज्यादा नग्न शरीर, मेकअप वाला वो सुंदर चेहरा, ये सब देखकर लड़के की वासना भड़क जाती है , मतलब आग में घी वाला काम हो जाता है, अब होता ये है कि अभी वो बाजार में है या शादी में है या पार्टी में है तो बहुत सारे लोग है तो इस समय तो वह कुछ करेंगे नहीं, अब शादी पार्टी से रात को अब घर जाते है, और आजकल तो दोस्त की शादी हो तो शराब तो आवश्यक हो गई है, और शादियों में तो अश्लील गानों पर अश्लील नृत्य जिसमें मित्र की मां हो या बहन हो जब वो वहां स्टेज पर फिल्मी गानों पर नृत्य करती है कमरिया मटका-मटका कर लहरा-लहरा कर तब मित्र के दोस्त स्वयं बोल ही देते है मित्र के सामने की वाह यार तेरी मम्मी क्या गजब लग रही है तेरी बहन क्या शानदार डांस कर रही है यार गजब लग रही है, शराब के नशे में या सामने का नजारा देखकर वासना में अंधे हुए दोस्त ये भी भूल जाते है कि वह अपने दोस्त की मां या बहन या भाभी, चाची के विषय में बात कर रहे है। और वह दोस्त भी कुछ नहीं बोल पाता क्यूंकि शर्म तो उसे भी आती है अपनी मां या बहन या रिश्तेदारों को इस तरह स्टेज पर अपने अंग और अदाओं का प्रदर्शन करते देखकर जब उन्हें ये सब दिखाने में समस्या नहीं है तो देखने वालो को क्या समस्या। तो इस समय माहौल के कारण ऐसे युवा लड़के जिनकी वासना ये सब देखकर चरम सीमा पर पहुंच गई किन्तु वहां सबके सामने कुछ नहीं कर सकते थे, ऐसे में वह सुनसान रास्तों पर जाते है वहां अपना शिकार खोजते है कि कोई तो मिले, वह भले पूरे कपडे पहने लड़की हो, जिसका किसी से कोई लेना-देना ही ना हो, अच्छी लड़की अपने काम से काम रखने वाली, वो ऐसे लड़को का निशाना बन जाती है, और अगर किसी को ऐसे सुनसान रास्तों पर लड़की ना मिले तो कुछ लड़के फोन करके किसी बहाने से बुला लेते है क्यूंकि शादी-पार्टी में जो छोटे कपडे पहने लड़कियों को देखा उनका नृत्य देखा ये सब देखकर जो वासना भड़की वो कहीं ना कहीं तो निकलेगी तो इस तरह सुनसान जगह, सुनसान सड़के-खेत इत्यादि में जो मिल जाए जैसी मिल जाए वो शिकार बन जाती है, कहीं की वासना फिर कहीं निकलती है, और कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि किसी को पता हो की हमारे पड़ोस में लड़की आजकल घर में अकेली है उसके माता-पिता वहां नहीं है, लड़की को घर में अकेला छोड़कर गए है तो चूकि वो वासना के अधीन है अच्छे-बुरे का सही-गलत का कोई विवेक खो चुके है, ऐसे में जो नजर आता है वो करते है, जो लड़का ऐसा सोच नहीं भी सकता नशे में वो भी ऐसा कर बैठता है और बाद में पछताता भी है ।
तो ऐसी घटनाएं भी घटती है, में इस लेख में सबको बताना चाहता हूं कि ऐसी घटनाओं में कहीं ना कहीं हमारी कितनी बड़ी-बड़ी गलतियां होती है जो हमें दिखाई ही नहीं देती इस पर विचार करना जरूरी है ।
लोग फिल्मों को दोष देते है जबकि ये सच नहीं है, फिल्में तो छोटे कपडे का, नशे का, अश्लील बातो का विरोध ही करती है, समर्थन नहीं और में ऐसे बहुत से उदाहरण भी दे सकता हूं ।
अक्षयकुमार की जानवर नाम की फिल्म, उसमें करिश्मा कपूर का आधा शरीर और उसका डांस देखने के लोग उसे पैसे देते थे वो मजबूरी में कम कपड़ों में डांस करके पैसे कमाती थी, ऐसे में एक दिन अक्षयकुमार वहां गलती से पहुंच जाता है और उस लड़की के उपर कपडे डालकर चला जाता है दुपट्टा डालकर चला जाता है तब करिश्माकपूर कहती है कि आज तक सब कपडे उतारने वाले मिले आज पहली बार कोई पहनाने वाला मिला है। किन्तु आज के समय में किसी लड़की को आधे कपडे पहने हुए देखो ओर उसे बस इतना बोल दो बेटा आपके कपडे कुछ छोटे लग रहे है तो उसका सीधा जवाब मिलेगा कि छोटे हमारे कपडे नहीं, आपकी सोच है और दुनिया भर का भाषण दे जाएगी जैसे आपने उसकी भलाई के बारे में सोचकर उसकी इज्जत पर ही हाथ डाल दिया, आजकल लड़कियां खुद ही कपडे उतारकर घूमती है, थोड़े बहुत कपडे रह जाते है शरीर पर जितने कपडे में लड़के घर के अंदर नहीं रहते उतने कपड़ों में लड़कियां पार्टी में घूम आती है और एक फिल्म नहीं ऐसी ही एक जैक्कीश्रॉफ की अल्लाह रक्खा नाम की फिल्म और भी बहुत सी फिल्में है जो ऐसी चीजे हमारे सामने लेकर आती है।
अमिताभ बच्चन की लोकप्रिय फिल्म बागबान जिसमें हेमामालिनी की पोती पायल, छोटे कपड़ों में उस लड़की पायल को दोस्तों के साथ घूमता देखकर उसे रोकती थी किन्तु वह नहीं रुकती थी दादी को जवाब देती थी और खुद माता-पिता बेटी को सपोर्ट करते थे और कहते थे कि आजकल के जमाने में यही चलता है और आजकल बच्चो को रोका नहीं जा सकता, और फिर उसकी दादी उसकी सुरक्षा के बारे में सोचकर चुपचाप उसके पीछे जाती है तो देखती है कि कुछ दोस्तों के साथ वो क्लब जाती है डांस करती है, नशा करती है लड़के उसके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करते है, लड़की मना करती है तो लड़के कहते है कि पहले तो ऐसे छोटे-छोटे कपडे पहनकर हमें उकसाती हो और फिर सती-सावित्री होने का नाटक करती हो तब वहां उसकी दादी जो छुपकर उसकी सुरक्षा का ध्यान रख रही थी उन्होंने उसे बचाया वरना माता-पिता खुद की गलती नहीं देखते, लड़की की गलती नहीं देखते, बस लड़को को भेड़िया और वासना के भूखे और पता नहीं क्या-क्या बोलते। जैसा कि आज वर्तमान में होता है।
अब छोटे कपडे एक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है हमारे देश में जो कि हमारी भारतीय संस्कृति के विरूद्ध है, किन्तु आजकल पाश्चात्य संस्कृति के कारण इसका चलन हमारे देश में बहुत अधिक हो गया है, और सर्वप्रथम जो हीरोइन फिल्म में इन छोटे कपड़ों को गलत सिद्ध करती है बुरा बताती है, वही जब अवार्ड लेने आती है तो वैसे कपड़ों में आती है सोशियलमीडिया पर अपने आधे नंगे फोटोज डालती है और एडकम्पनी इनकी आधे शरीर का प्रदर्शन करती है अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए, चलो माना ये तो उनके काम है उन्हें पैसे मिलते है ये सब करने के वो करती है उन्हें ना समाज से समस्या है ना परिवार से और रही बात बलात्कार की तो उन्हें उसका भी भय नहीं है क्युकी आधा दर्जन गार्ड हर समय साथ में चलते है और उनका बलात्कार करने की आवश्यकता ही नहीं है किसी को अब वो क्यों आप सब स्वयं समझ जाए में नहीं लिख सकता यहां।
ऐसे ही, कुछ विदेशों में बलात्कार की घटना बहुत कम होती है, क्युकी वह सब खुले दिमाग के है वहां बलात्कार कि जरूरत ही नहीं पड़ती वह छोटे कपड़े पहनकर घूमते है तो उन्हें किसी के भी सामने पूरे कपड़े उतारने में भी समय नहीं लगता, और परिवार में भी किसी को कोई समस्या नहीं होती वहां की संस्कृति ही ऐसी है, अब क्या आपके यहां की संस्कृति भी यही है अगर ऐसा है तो ठीक है खूब पहनो छोटे कपडे फिर बलात्कार की समस्या ही ख़तम।
वैसे भी जिस लड़की को सबके सामने अर्धनग्न होने में समस्या नहीं है सबके सामने पुर्णननग्न भी हो सकती है । छोटे कपडे मेरी नजर में वैसे कोई बहुत बड़ा विषय नहीं है जिस पर इतना लिखा जाए मेरी नजर में तो एक बार समझाने से ये बात समझ आ जानी चाहिए कि ये हमारी संस्कृति नहीं है।
किन्तु कुछ लड़कियों से जब इस विषय में बात हुई मेरी तो कुछ अलग ही अनुभव मिला मुझे जो मैने कभी सोचा ही नहीं था। एक लड़की जिसे में जानता था स्वभाव से अच्छी लड़की लगती थी उसके कपडे बहुत छोटे थे आधा शरीर दिख रहा था, भरा बाजार था तो मुझे उसके साथ खड़े होने में भी कुछ संकोच सा लग रहा था, तो मैने बस इतना कहा कि आपके कपडे थोड़े छोटे नहीं लग रहे, बस इतना मेरा बोलना था कि उसका भाषण शुरू हो गया जो मैने कभी नहीं सोचा था। उसका सीधा जवाब था कि कपडे छोटे नहीं है लोगो की सोच छोटी है, में समझ नहीं पाया कि किसी लड़की को जिसके विषय में हम अच्छा सोचते है जिसकी हम इज्जत करते है जिसके लिए दिल में सम्मान है उसके लिए कुछ अच्छा सोचकर अगर मैने इतना कह दिया तो इसमें मेरी सोच छोटी कैसे हो गई? मैंने उसे बहुत समझाना चाहा कि हमारी संस्कृति नहीं है पर वो नहीं समझ सकी मेरे हर तर्क का एक ही जवाब की हमारा शरीर हमारे कपडे, हम जो चाहे करे।
फिर उस लड़की ने कहा आप जैसे लोग ही लड़की को आगे नहीं बढ़ने देते। अब मुझे हंसी भी आ रही थी पर में सोचने लगा कि कोई भी लड़की छोटे-छोटे कपडे पहनकर कहां आगे बढ़ना चाहती है, और पूरे कपड़े पहनने को बोलकर हमने उन्हें कौन सी चीज में आगे बढ़ने से रोक दिया ये मुझे समझ ही नहीं आया।
फिर मुझे एक घटना याद आयी उसी लड़की की जब में अपने घर में था, अपने कमरे में था वैसे में अंडरवियर बनियान पहने हुए था और टावल भी लगाई हुई थी। पर वो बाहर से मुझे वैसे देखकर अंदर कमरे में नहीं आई कुछ समय के लिए दूसरी तरफ घूमकर बाहर ही खड़ी हो गई। मुझे तो इतना समझ आ गया कि कोई लड़की है तो में कैफरी पहन लूं, एक शर्ट या टीशर्ट पहन लूं। किन्तु आज में देख रहा हूं जितने साईज के मेरे अंडरवियर बनियान है उतने ही साईज के कपडे इसके है शॉर्ट-स्कर्ट और स्लीवलेस टॉप, जबकि मैने तो टावल लगाई हुई थी फिर भी इसे शर्म आ रही थी। और यहां रोड पर इतने कम कपड़ों में घूम रही है तो इसे शर्म महसूस नहीं होती, पापा, भैया, दादा, चाचा, मामा, अड़ोसी-पड़ोसी, अनजान लोग, उसे किसी की शर्म नहीं है। उल्टा अगर हम लड़की की भलाई सोचते हुए इतना सोचते है कि लड़की पूरे कपडे पहने तो लड़की को लगता है कि हमारी सोच घटिया है।
और माता-पिता से बोलो तो वह कहते है कि आजकल के बच्चे मानते नहीं है और फिर ये तो आज कल का फैशन है। अब ऐसे में यदि लड़की का तन देखकर किसी कामी पुरुष का मन डोल जाए उसके आधे शरीर को देखकर तो हम सारी गलती लड़के की मानेंगे । हम उम्मीद करेंगे देश में ऐसे लड़के पैदा ही ना हो जो ऐसा काम करते है। और अपनी स्वयं की बच्ची से इतनी उम्मीद नहीं कर पाते कि वो अपना ध्यान रखे, सावधानी रखें पूरे कपडे पहने, ज्यादा लड़को के साथ नहीं घूमे, और कहीं दूर जाना है तो अकेले ना जाए, किसी बड़े के साथ जाए, उसमें लड़की को लगता है कि उसे बन्धन में रखा जा रहा है। लड़की को कमजोर किया जा रहा है जबकि ऐसा कुछ नही है। यहां बस उसे सावधानी रखने को कहा है।
अब कोई लड़की कहती है कि वासना तो मन में होती है उससे कपड़ों का कोई लेना देना नहीं:-
तो इसका उत्तर भी सुन लीजिए, देखो बाहर सड़क पर गाय घूमती है उसका आपसे कोई लेना देना नहीं होता वह चुपचाप घूमती है पर जैसे ही आप घर से बाहर रोटी लेकर निकले और गाय की नजर पड़ी तो वो तुरंत दौड़ी चली आती है, ये नियम है ऐसा होता ही है।
भूखे व्यक्ति को अच्छा भोजन दिखने पर उसकी भूख दुगनी हो जाती है, ऐसे ही कामी पुरुष को जब सुंदर लड़की दिखे, और उसका आधा सुंदर शरीर बिना कपड़ों के हो तो उसकी वासना में वो आग में घी या पेट्रोल वाला काम कर जाती है, लड़कियों को इतनी समझ होना चाहिए।
और चलो में ये भी मान लू की बलात्कार में छोटे-कपडे कारण नहीं है किन्तु फिर भी आपको पूरे कपड़े पहनने में समस्या क्या है?
लड़कियां शायद नहीं जानती कि उनके पिता को, चाचा को, मामा को, कितनी शर्म आती है आपको अर्धनग्न देखकर कोई और लड़की हो तो कोई बात नहीं अपनी ही बेटी, भांजी, भतीजी का आधा खुला शरीर सज्जन पुरुष से तो नहीं देखा जाएगा। पर वो कुछ कह ही नहीं पाते चाहकर भी कुछ कह नहीं पाते, वरना ये लड़कियां बड़े-छोटे का अच्छे-बुरे का ख्याल किए बिना बड़ा गन्दा जवाब दे देती है। अंत में कुछ सज्जन पुरुष तो यही करते है कि जितना हो सके, इन अपनी ही बच्चियों से मिलने के बजाय ना मिलने में ज्यादा रुचि रखते है। में एक लड़का हूं, लड़को के साथ उठता बैठता हूं सब क्या सोचते है बस वही बात बता रहा हूं और पुरुष मेरे लेख को समझेंगे कुछ लड़कियां जो सही राह पर होगी जिनकी मंजिल सही होगी उन्हें भी ये लेख पसंद आयेगा किन्तु कुछ लोगो को, कुछ लड़कियों को मेरा ये लेख बिल्कुल पसंद नहीं आयेगा। और उसका एक ही कारण की उन्हें पूरे कपड़े पहनना स्वीकार ही नहीं है। पता नहीं आजकल कुछ लड़कियों को और महिलाओं को अपने शरीर की खूबसूरती, अपने शरीर की बनावट लोगो को दिखाने में क्या आनन्द मिलता है, और पूरे कपडे पहनने में कोन सा बन्धन महसूस होता है, में तो नहीं समझ पाया पर अब इतना मान लेता हूं कि ये लड़कियों वाली बात है, हो सकता है कुछ खास बात हो शरीर दिखाने में। अब ये बात यही ख़तम करते है मुझे लगता है इस विषय पर समझने वालो के लिए इतना समझाना काफी होगा। अब हम अगले कारण पर भी थोड़ा विचार करते है:-
इस समस्या का अगला सबसे बड़ा कारण है सही उम्र में युवाओं का विवाह नहीं करना:-
जहां तक में समझता हूं और विज्ञान का भी मानना है कि 13 वर्ष की उम्र के पश्चात् मानव जीवन में हार्मोन्स में परिवर्तन शुरू हो जाते है, लड़के का लड़की को देखकर और लड़की का लड़के को देखकर आकर्षित होना एक सामान्य बात है। और आजकल के समय में विवाह होते है 27-28-30 वर्ष की आयु में जब तक आधी युवावस्था ख़तम हो जाती है तो ऐसे में विद्यालय में, महाविद्यालय में लड़के-लड़कियां आपस में मिलते-जुलते है, दोस्ती हो जाती है, और आपस में संबंध बनने लगते है, पता भी नहीं चलता है, आप छोटे गांव में खेतो में और बड़े शहरों में पार्क, समुद्र किनारे, किले इत्यादि पर जाकर उदाहरण देख सकते है वहां आपको बहुत से उदाहरण देखने मिलेंगे संदिग्ध अवस्था में, और कुछ लड़के ऐसे होते है जिनकी सारी जिंदगी लड़को का छात्रावास, और ऐसी जगह जहां सब लड़के ही हो वहां निकल जाती है, और वो पूरी तरह इस वासना के वश में होने लगते है। और फिर अगर बुरी संगत में जुड़ जाए तो नशा करना और नशे में ऐसी वारदात को अंजाम देना ये सब भी कारण हो सकते है। इसलिए युवाओं का विवाह समय पर होना चाहिए, इस पर भी हमें विचार करना चाहिए।
इस समस्या का अगला कारण है माता-पिता व परिवार जनों की लापरवाही:-
हम देख सकते है कि हम अपनी छोटी से छोटी वस्तु का कितना ध्यान रखते है, चोरी होने का डर होता है, घर में दुकान में चोरी ना हो, कोई हमें लूट ना ले, इस बात के लिए कितनी सावधानियां रखते है, क्यूंकि कब क्या हो जाए कुछ नहीं पता तो सावधानी रखना हमारा कर्तव्य है। फिर समझ नहीं आता घर की बेटी को, घर की इज्जत को सुनसान रास्तों पर अकेला कैसे छोड़ देते है। स्वीकृति कैसे देते है अपनी बच्ची को देर रात अकेले बाहर आने-जाने की।
क्या उन्हें पूर्ण विश्वास है कि हमारा देश अपराध रहित है, क्या उन्हें विश्वास है कि रात को बच्ची अकेली घर आयेगी, सुनसान रास्ते में तो कोई उसका अकेले में फायदा नहीं उठाएगा, चोर डाकू बलात्कारी कोई भी मिल सकता है, हम अकेला छोड़ कैसे सकते है परिवार जनों की जिम्मदारी है कि अगर बच्चे छोटे है तो घर के बाहर ज्यादा देर तक अकेले ना छोड़े जमाना खराब है, हमारे आस-पास कोन किस इरादे से बैठा है नहीं पता, तो सावधानी रखना आपका कर्तव्य है , जितना हो सके अपनी तरफ से सावधानी अवश्य रखो।
ज्यादातर बलात्कार कि घटना में यही सुनने मिलता है कि लड़की अकेली थी, ऐसा सुनने बहुत कम मिलता है कि लड़की अपने पिता, चाचा, मामा या भाई के साथ थी और फिर भी ऐसी घटना घट गई 100 में से 98 घटना में लड़की अकेली पाई जाती है रास्ते सुनसान होते है।
कोई कह सकता है कि भैया हर समय घर वाले साथ नहीं रह सकते, कोई जरूरी काम हो सकता है तो अकेले भी निकलना पड़ता है। तो भैया अड़ोसी-पड़ोसी, रिश्तेदार कोई तो होगा जो लड़की के साथ जा सके क्यूंकि हमारे यहां तो बाहर के काम ज्यादातर लड़को से ही कराए जाते है ओर लड़की को अपने किसी काम से जाना हो तो परिवार का कोई सदस्य साथ में जाता ही है। कुछ लड़कियां इसे बन्धन कह सकती है पर सच तो ये है कि ये बन्धन नहीं सुरक्षा है। और वर्तमान कि घटनाओं को देखकर उससे सीख लेना चाहिए। तो इस बात पर भी विचार किया जाना आवश्यक है। ये माता-पिता का परिवार जनों का कर्तव्य है।
और कुछ लोग तो ऐसे भी होते है जो पुरानी संस्कृति ओर बुजुर्गो की परम्परा निभाना अपना धर्म समझते है। फिर भी अपने घर की बच्चियों को घर में अर्धनग्न घूमता देखते है, ओर बाहर जाती है तो बच्ची से इतना नहीं कह पाते है कि बेटा कपडे पहन ले थोड़े से, क्युकि माता-पिता को ही जवाब मिल जाता है, और फिर बच्ची के तर्क सुनकर उन्हें भी लगने लगता है कि सही है जमाने के हिसाब से चलना चाहिए, ओर कुल परंपरा परिवार की संस्कृति सब भूला देते है। और इस तरह की परिवार जनों की लापरवाही भी ऐसी घटना में बच्चो के बिगड़ने में कारण होती है।
इसके अलावा बच्चो को समय ना देना, ये भी माता-पिता की लापरवाही है, बचपन से ही बच्चो को विद्यालय कोचिंग ओर किताबों में जकड़ दिया जाता है, पढ़ाई के अलावा बच्चो से दूसरी बाते ही नहीं होती, बच्चों के सामने अपने जीवन की बाते नहीं बताते, बच्चों से उनके जीवन की बाते, उनकी सोच कुछ नहीं पूछते है, पता कैसे चलेगा कि बच्चे किस दिशा में जा रहे है, माता-पिता को बच्चों के साथ बैठना चाहिए बच्चों से उनके विचार पूछना चाहिए, उनके विचार सुनकर उन पर क्रोध करने के बजाय उन्हें सही-गलत का निर्णय प्रेम से कराना चाहिए। तभी हमारे बच्चे हमें अपने जीवन की सारी बातें बताएंगे, और हमारी शिक्षा स्वीकार भी करेंगे। स्वयं भी बच्चों की बातो को समझे, और तर्क पूर्वक उन्हें सही गलत का निर्णय कराए ये माता-पिता का कर्तव्य है।
किन्तु आज के समय में वह भी नहीं होता, बच्चे माता-पिता के होते हुए भी अनाथ वाला जीवन जीते है। किताबों और विद्यालय के सहारे दोस्तों के सहारे ही जीवन जीते है। इसलिए इन बातो पर भी विचार करना आवश्यक है।
अब कोई लड़की कहती है कि चलो मान लिया ये सब सावधानी रखी जानी चाहिए और बहुत से लोग रखते है, किन्तु फिर भी बलात्कार होते है, छोटी बच्ची तक को नहीं छोड़ते कुछ लोग उसका क्या?
बिल्कुल सही बात है जिसका आधा उत्तर तो में वह प्रारम्भ में ही कर्मोदय वाली बात में प्रकृति में किसी के साथ अन्याय नहीं होता उसमें दे चुका हूं और आधा उत्तर वह शादी पार्टी नृत्य वाले उदाहरण में उपर दे चुका हूं, और इसके बाद भी अगर सारी सावधानी रखने पर भी बलात्कर होते है तो भी सावधानी रखना नहीं छोड़ना चाहिए।
हजार तालो से बंद दुकान में चोरी हो जाए, तो भी लोग दुकान में ताला डालना नहीं छोड़ते, सावधानियों के बाद भी नुकसान होता देखने के बाद भी समझदार व्यक्ति सावधानी रखना नहीं छोड़ते। इसलिए कल क्या होगा हम नहीं जानते किंतु हम अपनी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखे अपनी तरफ से कोई कमी ना रखे ये हमारा कर्तव्य है।
फिर कोई कहता है कि ऐसे वासना के पुजारी लड़को को बलात्कारियों को गोली मार देनी चाहिए, फांसी लगा देनी चाहिए इससे लोगो में डर बड़ेगा:-
तो इसके लिए भी फिर से विचार करना होगा, सजा तो खूब दो किन्तु कोई लाभ नहीं क्युकी ऐसे कार्य कोई व्यक्ति होश में नहीं करता वो या तो नशे में होता है या वासना में अंधा ओर जब व्यक्ति , क्रोध, अहंकार और वासना में अंधा हो तो वह ये नहीं देखता की मेरे कृत्य का क्या परिणाम होगा वह तो बस बुरा कृत्य करता है और ऐसे पागल आपको बहुत मिल सकते है इसलिए हमारे लिए सबसे महत्व पूर्ण कुछ है तो वह है स्वयं की सावधानी हर तरह से जितना हो सके।
ये सब बोलकर में ना तो लड़कियों को कुछ बोलना चाहता हूं ना लड़को को, में ये भी नहीं कह रहा कि ऐसे लोगो को सजा ना दी जाए, सबको अपना-अपना कर्म करना ही चाहिए, जनता को, पुलिस को, वकील को, जज को सबको अपना कर्म जो भी उचित है ईमानदारी से करना ही चाहिए।
में तो बस अपनी सुरक्षा के लिए सावधानी बताना चाहता हूं। जिससे ऐसी घटनाओं से हम स्वयं को शायद बचा सके, बाकि तो जो होना है वह होकर ही रहेगा।
अब कुछ लोग ये भी कहते है कि जिस दिन सब लड़के संसार की हर लड़की को अपनी बहन समझेंगे उस दिन बलात्कार ख़तम हो जाएंगे:-
में कहूंगा बिल्कुल सही बात है ऐसा हो सकता है पर इसमें समस्या लड़कियों को ही होगी।
क्यूंकि हम वह भाई है जो अपनी बहन को कॉलेज भी अकेले नहीं जाने देते कितना ही आवश्यक कार्य क्यों ना हो कितना ही नुकसान क्यों ना हो जाए, अगर हमारी बहन कॉलेज, कॉचिंग या कुछ सामान खरीदने जाना चाहती है, तो या तो पापा साथ जाते है या भाई , या मम्मी , या परिवार का कोई विश्वसनीय और जिम्मेदार सदस्य और हमारे घर की परम्परा में लड़की सड़क पर आधी नंगी नहीं घूमती, घर में खाने-पीने की कमी ना हो तो बेवजह किसी कि नौकरी नहीं करती, सड़क पर खड़े होकर लड़को से फालतू की बाते नहीं करती, लड़को से दोस्ती भी हमारे घर की लड़कियां नहीं करती तो अगर आप सोचती है कि लड़के आपको अपनी बहन समझे तो वह आधे कपड़ों में देखकर लड़को से आपकी ठिठोली देखकर, आपको नशा करते देखकर, देर रात तक अकेले घूमते देखकर बीच रोड पर आपको वही 2 थप्पड़ लगाएंगे और बोलेंगे बहन अब घर जा। तब आपको समझ आयेगा कि किसी जिम्मेदार भाई की बहन होना क्या होता है।
अब कोई कहे की लड़की भी लड़के से कदम से कदम मिलाकर चलना चाहती है वो भी सब कर सकती है तो उन्हें करने देना चाहिए हर समय सुरक्षा क्यों:-
देखो ऐसा है इसमें कोई संदेह नहीं है आप कुछ नहीं कर सकती या लड़को से कम हो किन्तु कोई भी कार्य आवश्यकता के अनुसार किया जाता है व्यर्थ में नहीं ।
जब आपके पिता आपके पति आपको सारी सुविधाएं दे रहे है तो व्यर्थ में दूसरों की नौकरी करके आप क्या सिद्ध करना चाहते है, अगर आपको आजीविका आपके पिता, पति या भाई से नहीं हो पाती है तो आप जो चाहे करे कोई दिक्कत नहीं है, आप स्वयं सोचो सीता जी हर कार्य में निपुण थी, द्रोपदी हर कार्य में निपुण थी ज्ञानी थी, हर तरह के युद्ध में निपुण थी। शास्त्र विद्या ओर शस्त्र विद्या दोनों जानती थी फ़िर भी जब तक महलों में थी तब तक उन्होंने ये नहीं सोचा हम तो सेल्फ डिपेंडेंड बनेंगे। और अन्य राजा के यहां नौकरी करेंगे, नहीं, जबकि युद्ध के समय भी जब तक पति युद्ध कर रहा है उसे लग रहा है कि मेरी आवश्यकता नहीं है तब तक रणक्षेत्र में नहीं आती। पर हिन्दू महाभारत के अनुसार जब सीताजी को समस्या आयी, जंगल में रहना पड़ा तब उन्होंने सब काम किए, लकड़ी काटना, खाना बनाना अन्य कार्य स्वयं किए, किसी के आगे हाथ नहीं फैलाए, किसी गलत रास्ते पर नहीं गई, अपना स्वाभिमान बचाया, इसे कहते है कुछ करके दिखाना। इसे कहते है स्त्री का सम्मान।
घर में पिता और पति की कमाई पर्याप्त होने पर भी जो स्त्री किसी अन्य की नौकरी करती है वह स्त्री का स्वाभिमान नहीं बल्कि व्यर्थ का अभिमान कहलाता है।
अब कोई कहता है ये सारी सावधानी लड़की के लिए बताई है लड़के के लिए क्यों नहीं, आधी रात को लड़के अगर अकेले घूमे तो उन्हें तो आजादी है आप लड़कियों को ही घर में बांधकर रखना चाहते है आगे नहीं बढ़ने देना चाहते:-
भैया लड़को के बलात्कार नहीं होते, या कहे तो होते भी है पर लड़को को उसे समस्या होती ही नहीं है , आज के समय सेठ सुदर्शन जैसे जीव देखने नहीं मिलते। जिसे समस्या है उसके लिए सावधानी की बात कही है । और लड़को को भी समस्या है उनको लूटा जा सकता है, उनके धन इत्यादि चुराए जा सकते है और ऐसा होता भी है पर फिर भी उन्हें इतनी दिक्कत नहीं है और एक बार उनके साथ कोई वारदात होती है तो वह अगली बार से पूरा ध्यान रखते है और दूसरे लोग सुनते है वो भी पूरी सावधानी रखते है पर लड़कियां सावधानी को बन्धन समझती है इसलिए इतनी बाते कही जा रही है।
अब कोई लड़की कहती है कि ये सब तो ठीक है किन्तु लड़को की वासना का क्या, वास्तव में लड़को में इतनी वासना क्यों है वह नहीं होना चाहिए उसी की वजह से सब होता है बलात्कार का मुख्य कारण नशा या छोटे कपडे इत्यादि नहीं बल्कि लड़को कि वासना है और इन सब कारणों का वासना से कोई लेना-देना नहीं वास्तव में लड़को की जो वासना है वहीं बलात्कार का मुख्य कारण है, वह ख़तम होना चाहिए, कोई भी व्यक्ति को वासना होनी ही नहीं चाहिए।
तो में इतना कहूंगा कि वासना एक भाव है जिसे कामभाव कहा जाता है, ओर वह सिर्फ लड़को में नहीं, लड़की में भी होती है, और विज्ञान की दृष्टि में तो लड़की में और ज्यादा बताई है।
और आप तो सिर्फ इतना सोचते है कि लड़को में वासना नहीं होनी चाहिए, में तो ये सोचता हूं कि दुनिया में क्रोध, अहंकार, छल- कपट, हिंसा , झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह, लालच, कुछ नहीं होना चाहिए, किन्तु हमारे और आपके सोचने से ऐसा नहीं होता, ये संसार है यहां कुछ जीव जो आत्मस्वरूप को जानने वाले महापुरुष है वह इन सब भावों पर विजय प्राप्त कर चुके है वीतराग भाव को प्रगट कर चुके है कुछ आंशिक रूप में तो कुछ पूर्ण रूप में।
किन्तु हम सब हमारे जैसे बहुत से ऐसे जीव है जो ऐसे बहुत से विकारी भावों से बुरी तरह पीड़ित है और इसे अच्छा मानकर उसके मद में चूर है। ऐसे में जब व्यक्ति किसी भी विकार के वश में होता है तो वह सही-गलत का निर्णय नहीं ले पाता, चाहे व्यक्ति क्रोध में हो, या अहंकार में, लालच में हो या फिर वासना में वह जीव इन विकारी भावों के प्रभाव में अंधा हो जाता है और सही-गलत का विवेक उसका उसी समय नष्ट हो जाता है, ऐसे में वह व्यक्ति जो भी कार्य करता है वह स्वयं नहीं करता उसके अंदर उदय रूप का वह कुछ समय का विकारी भाव उस विकारी भाव का प्रभाव उससे ऐसा कार्य करवाता है। जो कि अत्यन्त निंदनीय है जिसके कारण से वह इस भव में अपयश को प्राप्त होता है तथा अनेक भवों तक अपने किए का फल भोगता है।
और फिर जिसप्रकार किसी को कम भूख लगती है किसी को ज्यादा, कोई व्यक्ति 50 दिन के उपवास कर लेता है किसी से एक समय के भोजन का त्याग नहीं होता, कोई साधु पुरुष 6 माह या वर्ष भर भी भूख सह लेता है, कोई पुरुष पूरे परिवार का भोजन कर ले तो भी कम पड़ जाय, ऐसा देखा जाता है, वैसे ही काम की भावना किसी को काम के परिणाम कम होते है किसी को ज्यादा, कोई एकस्त्री व्रती होता है, स्वस्त्री संतोषी होता है, तो कोई परस्त्री रमण करता है और उसकी इच्छा से, कोई वासना में इतना अंधा हो जाता है वह किसी के साथ जबरदस्ती भी करता है, तो कुछ ऐसे महापुरुष भी होते है, ब्रहम्मचारी होते है जो स्त्री का विकल्प भी नहीं करते, तो कुछ ऐसे महा साधुपुरुष भी होते है ऐसे शीलवान भी होते है जिनके सामने स्वर्ग की अप्सरा नग्न होकर नृत्य करे तो भी उन्हें वासना का भाव नहीं आता। यहां संसार में सभी तरह के जीव है। और कहीं ना कहीं हम सभी संसारी जीव इन सब भावों से पीड़ित है। और मनुष्यभव की दुर्लभता और जीवन की सच्चाई को समझने के बजाय अन्य फालतू के काम, लोक में किसी ना किसी कारण से अपनी प्रशंसा और प्रसिद्धि पाने में उलझे हुए है। हमें सांसारिक कार्य में दूसरों से ज्यादा स्वयं की चिंता है और मोक्षमार्ग में स्वयं से ज्यादा दूसरे कि चिंता है, जबकि होना इसके विपरीत चाहिए, धर्म दृष्टि से देखो या लोक व्यवहार से, हमारा कार्य यही है कि सांसारिक कार्य में स्वयं से ज्यादा दूसरों को आगे बढ़ने दें और मोक्षमार्ग में अन्य की चिंता छोड़कर स्वयं अपना मार्ग प्रशस्त करें।
और अंत में इतना कहूंगा कि ये बस मेरे विचार है , क्युकि आज के समय में माता-पिता संतान से, हम अपने मित्र और रिश्तेदार से उम्मीद नहीं रख पाते जो हमारे सुख-दुःख के साथी है, तो फिर आप सोचो कि आप सरकार से न्याय की उम्मीद करो तो ये आपकी भूल है। तो अगर हमें अपनो की चिंता है और परिवार कि इज्जत और संस्कृति की चिंता है तो इन सब बातो पर अवश्य विचार कीजिए, अगर इन बातो पर विचार किया जाए तो निश्चित ही 95% ऐसी घटनाओं में कमी आयेगी।
Very nice 👌👌🙏
ReplyDeleteJi Dhanyvaad 🙏
Delete👍👍👍
ReplyDeleteThank you
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