Friday, November 12, 2021

हमारी संस्कृति




भारत देश संस्कृत और संस्कृति वाला देश है। इतिहास के पन्नों में भारत की संस्कृति की बहुत गाथाएं गायी गई है, पूरे विश्व में भारत देश ही ऐसा है जिसकी संस्कृति पर लोग गर्व करते है, किताबें लिखते है, कविताएं बनाते है।

किन्तु कालान्तर में धीरे-धीरे जैसे-जैसे समय निकलता गया है, वैसे-वैसे आधुनिकता की चकाचौंध और इस देशवासियों की अज्ञानता व लापरवाही की वजह से ये संस्कृति नष्ट होती जा रही है, हमारा बेवजह का समय बर्बाद करना,  सजना - संवरना, पैसा बर्बाद करना, अपने ही बच्चों का ख्याल न रखकर पैसा कमाने में ही उलझे रहना हमारी संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचा रहा है।

पहले के समय में भरा पूरा परिवार साथ में रहता था और सब लोग साथ में हंसते-खेलते थे,  पैसे की कमी नहीं पड़ती थी। पिता काम करते थे मां घर का ख्याल रखती थीं बच्चों का ख्याल रखती थीं, लेकिन अब जैसे समय बदला है, परिवार बिखर गए है, भाई-भाई के साथ रहना पसंद नहीं करता, घर में तीन सदस्यों में भी पैसे की कमी पड़ती है, कितना भी कमाओ कम पड़ता है। लेकिन अगर विचार करें कि ये पैसा कम क्यूं पड़ता है तो लोग विचार नहीं करते, महंगाई बढ़ रही है ये सोचकर टाल देते है लेकिन वास्तव में महंगाई नहीं हमारी जरूरत बड़ रही है, और सच कहें तो हम ही पैसा जानबूझ कर गलत जगह बर्बाद कर रहे है, 

वास्तव में हमें जरूरत पैसे की नहीं दिमाग की है,, दिमाग के सही उपयोग की है,, ताकि हम अपनी जरूरत के हिसाब से सही निर्णय ले सके।

पहले के समय में एक दादा जी के कपड़े को काट-पीट करके मां बच्चो के कपड़े बना दिया करती थी, और उसके बाद उनसे छोटे बच्चे उन्हें पहनते थे, फिर उन कपड़ों से नेकर बन जाया करती थी , और फिर वही कपड़ा पोछा लगाने के काम आता था और उसके बाद वह कपड़ा गाड़ी साफ करने के काम आता था। किन्तु अब हर चीज के लिए हमें अलग अलग कपड़ों कि जरूरत पड़ती है, इतने ज्यादा पैसे के तो पोछा और गाड़ी साफ करने के कपड़े खरीदकर लाये जाते है। पहले के समय में सबके पास एक ही तरह के कपड़े होते थे तो ज्यादा परेशानी की कोई बात ही नहीं थी, किन्तु अब वर्तमान में तीन तरह की पोशाक तो केवल विद्यालय के लिए खरीदनी पड़ती है बच्चों की, उसमे भी हर पोशाक की मैचिंग के टाई-बेल्ट, जूते-मौजे, और विद्यालय के नाम का बिल्ला , जो कि आपको विद्यालय से ही लेना होगा जिसके अच्छे खासे दाम होते है, और हम पढ़े-लिखे समझदार लोग वहां जाकर जेब खाली तो करते ही है, और साथ में मुस्कुराते हुए उस जगह की तारीफ भी करते है,  एक सब्जी वाला जो सुबह शाम मेहनत करके एक-एक रुपया कमाता है, वहां हम उसे अपनी समझदारी दिखाते है, पांच रुपए की चीज चार में खरीदना चाहते है, और वह सब्जी वाला बेबस होकर पेट पालने के लिए चार में भी दे दे, तो सोचते है हमने आज बहुत बड़ा काम किया, सब्जी वाले को बेवकूफ बनाया, और आप कहां-कहां बेवकूफ बनते है, उसके बारे में सोचते तक नहीं है।

ये तो अभी सिर्फ विद्यालय की पोशाक की बात है, और आप सोचिए सगाई के कपड़े अलग, शादी के अलग, महिला संगीत के अलग तो लग्न के अलग, बारात के अलग, तो भोजन के समय के अलग, और सोते समय के कपड़े अलग बाहर जाते समय के अलग, दिन में घर में रहते हुए पहनने के अलग, और उसमें कौन से कपड़े पहनना है, उसके लिए दस लोगों से सलाह लेंगे वह अलग, हजार तरह के सजावट के सामान, क्रीम, पावडर, परफ्यूम और भी बहुत कुछ जो अनन्त जीवो की हिंसा से बने हुए पदार्थ है उसे अपनी सजावट में उपयोग करते है।

और कभी सोचा है ऐसा क्यूं होता है क्यूंकि हमें लगता है, लोग हमें देखेंगे, और सच तो ये है कि सबको लगता है कि लोग हमें देखेंगे और खुदके अलावा कोई देखता ही भी है, अगर आपको गलत लगता है तो में उसके लिए भी उदाहरण दे सकता हूं-

आप जरा विचार कीजिए, जब आप तैयार होते है और आप किसी से पूछते है कि में कैसा लग रहा हूं तो सामने वाले व्यक्ति का क्या जवाब होता है, वो बिना देखे ही बोल देता है, की अरे तू तो हमेशा अच्छा लगता है यार एकदम बढ़िया, तू तो ये बता में कैसा लग रहा हूं, वह भी कह देता है कि तू तो अच्छा लग रहा है यार, और वास्तव में दोनों को मतलब नहीं होता कि सामने वाला कैसा लग रहा है, मतलब होता है कि में कैसा लग रहा हूं और हर व्यक्ति की एसी ही सोच होती है और हमें कोई नहीं देखता और हम अपना सारा पैसा और समय व्यर्थ गवां देते है।

इसलिए हमें इन सब बातों का ध्यान रखकर जरूरत के कपड़े ही घर में रखना चाहिए, नियम ले लेना चाहिए, कि इतने कपड़ों से ज्यादा हम नहीं रखेंगे, एक जोड़ी कपड़े खराब हो जाएंगे तभी नए खरीदेंगे। इस तरह ज्यादा से ज्यादा हम 10 जोड़ी कपड़ों का भी नियम ले, तो बहुत सारे परिग्रह के त्यागी हो सकते है। 

और भी घर की चीजों में हम ऐसा कर सकते है परिग्रह कम कर सकते है। जैसे-  वर्तमान समय में हमें परिग्रह एकत्रित करने की आदत हो गई है, जो वस्तु खराब हो जाती है , या पुरानी हो जाती है, हमारे उपयोग की नहीं होती उसे भी हम घर में एकत्रित करके रखते है, बल्कि हम चाहे तो उसे हम किसी जरूरतमंद को दे सकते है,, या किसी को बेच सकते है, पर नहीं घर में कबाड़ा भर कर रखते है , जिससे बेवजह के परिग्रह का पाप लगता है।

तो इस तरह से हम पैसे की बचत भी कर सकते है और त्याग करके व दान करके पुण्य भी कमा सकते है, और देश की संस्कृति को भी बचा सकते है।

इसके अलावा वर्तमान में बढ़ती बलात्कार की घटनाएं-

आज के समय की खबरे देखें तो हर अखबार में ऐसी खबरे दिखाई देती है। और ऐसे में हम सब बिना सोचे समझे किसी को भी भला और बुरा कहने लगते है, लेकिन उस घटना के पीछे किसका हाथ है, वास्तव में गलती कहां हुई है इस बारे में विचार तक नहीं करते, किसी को भी भला बुरा कहकर अपने-अपने काम में लग जाते है, और ऐसी घटनाएं रोज घटती रहती है, इसके बारे में हम सोचे तो सबसे बड़ी परेशानी कि बात तो ये है, कि हम किसी की भी कहीं हुई बातों पर भरोसा करते है, स्वयं का निर्णय लेते ही नहीं है, किसी बड़े व्यक्ति ने जो कह दिया बस वही सही है, फिर वो चाहे सही हो या नहीं। 

वास्तव में तो तेरह वर्ष की उम्र के बाद लड़के और लडकियों के हार्मोंस में परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है, ऐसे में लड़की लड़के को देखकर और लड़का लड़की को देखकर आकर्षित होने लगता है, साथ में जब इस उम्र में लड़के लड़की विद्यालय में पड़ते है, साथ में कहीं नोकरी करते है, तो समय पर शादी ना होने की वजह से वो आपस में दोस्ती कर लेते है,जिसे (गर्लफ्रेंड-ब्वॉयफ्रैंड) या जिसे अफेयर भी कहा जाता है, कुछ लोग ये अफेयर माता-पिता से छुपकर करते है, और कुछ लोग स्वयं आकर माता-पिता से अपने दोस्त का परिचय कराते है। और छुपकर अपनी काम भावना को शांत करते है। 

पहले के समय में समय से लडकियों की या लडको की शादी करदी जाती थीं, तब इन सबकी जरूरत ही नहीं होती थी, समय पर शादी हो जाने की वजह से किसी को बाहर लडकियों से या लडको से दोस्ती करने की जरूरत नहीं पड़ती थी,  इसलिए संस्कृति सुरक्षित थीं, पर आज ऐसा नहीं है, 

और इसी के साथ विदेशी संस्कृति वाले कपड़े, आजकल की वह लड़कियां जो छोटे-छोटे कपडे पहनकर पूरे बाजार में घूम आती है, वह भी बलात्कार कि घटना की बराबर की जिम्मेदार होती है, बहुत से लोग कहते है, कि लड़कियां कुछ भी पहने लड़के को क्या उसे तो खुद पर नियंत्रण होना चाहिए, तो में आपको बताना चाहूंगा ये शरीर की वह सामान्य क्रिया है, जिस पर हर कोई नियंत्रण नहीं कर पाता कुछ ही महापुरुष इस शरीर पर और इन्द्रियों पर नियंत्रण रख पाते है।

लड़कियां ही बलात्कार में जिम्मेदार इसके उदाहरण:-

जैसे - पेट में जब भूख लगती है तो सामान्य पुरुष चोरी भी करता है, खून भी करता है,, पर महापुरुष भूखा मर जाता है पर कोई पाप नहीं करता। जब किसी को बाथरूम जाना हो तो वह नियंत्रण नहीं कर पाता, लाखो का नुकसान हो जाए तो भी उसे बाथरूम जाना होता है। 

ऐसे ही काम भाव भी शरीर की एक क्रिया है, जैसे किसी को कम भूख लगती है किसी को ज्यादा ऐसे ही किसी को कम काम के परिणाम आते है किसी को ज्यादा लेकिन इस पर हमेशा लोग नियंत्रण करते है, लेकिन भोजन सामने हो और भूख तेज हो तो महापुरुष तो भोजन की तरफ ध्यान नहीं देते किन्तु सामान्य पुरुष खुद पर नियंत्रण नहीं कर पाते।

जैसे - भूखे शेर के सामने अगर खुद हिरण आकर नाचेगा या हम और आप आकर नाचेंगे और शेर ने मारकर खा लिया तो दोष शेर का नहीं बल्कि हिरण का या हमारा ही होगा।

जब गाय को रोटी दिखाकर ले - ले - ले करोगे, तो गाय आकर रोटी खाएगी ही।

ठीक वैसे ही हम सब जानते है कि युवा लड़के, लड़की को देखकर आकर्षित होते है, किन्तु अगर लड़की उनके सामने सज-संवरकर आधे कपड़ों में आ जाए, तो किसी महापुरुष के परिणाम भले विचलित न हो, किन्तु सामान्य तौर पर तो लडको के परिणाम विचलित होते ही है, तो ऐसे लड़के जिनकी कोई लड़की फ्रेंड नहीं होती, वो ऐसी लड़कियों को उनके खुले शरीर को देखकर कामुक हो जाते है, और फिर उन लडकियों के साथ बलात्कार कि घटना घटित होती है। 

अब कोई कहे की जो लड़की पूरे कपडे पहने होती है,, उनके साथ भी ऐसी घटना घटती है उसका क्या कारण है,,??

तो उसका कारण भी वही आधे कपड़ों वाली लड़कियां है, होता ये है, कि दोस्तों की शादी में आए लड़के आज कल शराब भी पीते है, और आधे कपड़ों वाली लड़कियों को देखकर कामुक हो जाते है, लेकिन शादी में सबके सामने माहौल खराब नहीं कर सकते, तो घर जाते समय रास्ते में कोई पूरे कपडे वाली लडकी भी हो तो अपनी कामभावना को जबरदस्ती सुनसान जगह पर शान्त करते है। छोटे-छोटे कपडे पहनने वाली आज कल की लडकियों के कारण जो लड़कियां पूरे कपडे पहनकर निकलती है जिनका कोई दोष नहीं होता वह भी सुरक्षित नहीं रह पाती। अरे अच्छे-अच्छे विद्वान काम भावना से नहीं बच पाते, ग्रंथों में इतिहास के पन्नों में इसके कई उदाहरण देखने को मिलते है। तो सामान्य तौर पर ऐसे लडको के परिणाम विचलित होते ही है, इसलिए लड़कियों की अपनी सुरक्षा की सलाह दी जाती है।

अब तक हमने ये समझा की इन घटनाओं में गलती लडकियों की है पर और गहराई से विचार करे तो पता चलेगा गलती लडकियों की नहीं बल्कि माता-पिता की है। 

क्यूंकि वास्तव में लडकियों को ऐसे कपड़े पहनने की इजाज़त वही देते है, उन्हें खुद अपनी बेटी को इतने कम कपड़ों में देखकर शर्म नहीं आती, अरे कोई सज्जन पुरुष आज रिश्तेदारों के घर जाने में भी शर्माता है, इतनी बड़ी-बड़ी लड़कियां इतने छोटे-छोटे कपडे पहनकर घूमती है कि आंखे बन्द करने का मन करता है, क्या करे कोई हमारी भतीजी होती है, तो कोई भांजी कोई छोटी बहन भी होती है, भले चाचा की लडकी है पर है तो बहन ना पर उनके माता-पिता को शर्म नहीं आती चाहे जैसे कपड़े पहनने कि इजाज़त देते है।

अब कुछ लोग कहते है कि क्या करें आज कल की बच्चियां मानती नहीं है, जबकि ऐसा भी नहीं है ये बिल्कुल सफेद झूठ है, हम जो बात बच्चो को मनवाना चाहते है तो किसी भी तरह से मनवा ही लेते है,, 

और फिर बच्चे मानेंगे कैसे बचपन से ही माता-पिता अगर बच्ची को छोटे-छोटे कपडे खुद पहनाएंगे तो बड़े होकर वह उसी की आदत रखने लगते है, आज शादियों में 3-3 वर्ष की बच्चियों को बिल्कुल ना के बराबर कपडे पहनाकर लाया जाता है तो निश्चित रूप से उनकी आदत वैसी ही हो जाती है और उसे हम आसानी से बदल नहीं सकते , इसलिए हमारी संस्कृति आज हमारे हाथ में नहीं रही ।

अभी भी समय है, हम चाहे तो ये बदल सकते है,, हर बात पर गहराई से विचार करने की जरूरत है, सही गलत का निर्णय स्वयं का निर्णय स्वयं लेने की जरूरत है , तब ही हम अपनी भारतीय संस्कृति को बचा सकते है ।

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 मेरी मम्मा मैंने दुनिया की सबसे बड़ी हस्ती  देखी है। अपनी मां के रूप में एक अद्भुत शक्ति देखी है।। यूं तो कठिनाइयां बहुत थी उनके जीवन में। ...