Sunday, November 21, 2021

स्त्री का सम्मान


स्त्री का सम्मान आज की दुनियां का एक बहुत बड़ा विषय है, हर जगह हमेशा ये सुनने को मिलता है कि इस देश में स्त्री को पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता, स्त्रियों की जिंदगी में तो दुःख ही दुःख है, स्त्रियों के साथ देश में कदम-कदम पर अन्याय होता है, अत्याचार होता है, स्त्रियों को आजादी नहीं मिलती, मन चाहे कपड़े पहनने की आजादी, मन चाहा काम करने की आजादी, उन्हें बस घर-गृहस्थी के काम वाला समझा जाता है, ये बातें आज हर जगह सुनने को मिलती है, हर स्त्री इस बात का रोना-धोना करती नजर आती है।

पर सच क्या है, इस बात पर एक बार विचार करने की जरूरत है, दुनियां में कहीं जाने वाली या दिखाई देने वाली हर बात सच नहीं होती। मैने इतिहास भी देखा है, और वर्तमान भी, पर मुझे लगता कि स्त्रियों के संबंध में जो बाते कही जाती है कि स्त्रियों को पुरुषों से कम समझा जाता है या उन पर अत्याचार होते है ये बात बिल्कुल गलत है।

बल्कि मैने तो बचपन से ही पुरुषों के साथ अन्याय देखा है, स्त्रियों को सम्मान की नजर से और पुरुषों को अपमान कि नजर से लोग देखते है ऐसा मैने जाना है।

जब में छोटा था विद्यालय में पढ़ने जाता था, तब विद्यार्थी के एक जैसे अपराध पर लड़की को कुछ नहीं कहा जाता था और लड़के को डंडे से मारा जाता था, मुर्गा बनाया जाता था, ऐसा भेदभाव मैने बचपन से ही देखना प्रारम्भ कर दिया था, इसके अलावा सरकारी सुविधाएं जो लड़कियों के लिए होती है वो लड़को के लिए नहीं।

लड़कियों को सरकार की तरफ से विद्यालय जाने के लिए साईकिल मिलती है। लड़कियों के लिए सरकारी हर क्षेत्र में फीस कम लगती है, जब लड़की का जन्म हो तो उसके पालन पोषण के लिए, उसकी शादी के लिए सरकार की तरफ से पैसे मिलते है और भी बहुत से योजनाएं को सिर्फ महिलाओं के लिए है, पर फिर भी कभी किसी पुरुष ने नहीं कहा कि हमारे साथ अन्याय हो रहा है।

अरे अगर लड़की घर का काम करती है, और पुरुष बाहर का काम करते है तो इसमें महिलाओं को ऐसा क्यों लगता है कि उन्हें पुरुषों से कम समझा रहा है  इस जीवन में हर प्राणी का अपना महत्व है, और हर प्राणी को सुख और दुःख अपने कर्मोदय के अनुसार मिलता है। उसी के अनुसार वे कार्य करते है, खेत में गाय नहीं बैल जोता जाता है, कोई ये क्यूं नहीं कहता कि ये तो बैल के साथ अन्याय है गाय को भी जोता जाना चाहिए। इससे पता चलता है सभी के अपने-अपने अलग-अलग कार्य है, और हमें अपने कार्य ही करना चाहिए। जो आवश्यक है, हमारे करने योग्य है, दुनियां में गड़बड़ तब होती है जब हम अपने कार्य छोड़कर एक दूसरे के काम करने लगते है।

आज लड़कियां बाहर काम करने के सपने देखती है उन्हें लगता है हम खूब पढ़ाई करे अपने पैरो पर खड़े हो ताकि पति कि सुनना ना पड़े। माता-पिता बचपन से ही लड़कियों को पढ़ाते हुए ये कहते है कि बेटा खूब पढ़ना ताकि कल को जब शादी हो तो ससुराल वालों की ज्यादा सुनना ना पड़े अपने पैरो पर खड़ी हो सको, ऐसा सिखाकर माता-पिता स्वयं ही जिम्मेदार होते है कि लड़कियां सांस-ससुर का सम्मान नहीं कर पाती, वो अपनी काबिलियत पर ससुराल को छोड़ने में बिल्कुल नहीं डरती, कुछ लड़कियां ससुराल छोड़ देती है तो कुछ सांस-ससुर को छोड़ देती है।

में यह नहीं कहूंगा कि स्त्रियां किसी चीज में कम है या ज्यादा, ना ही उनके किसी भी काम को लेकर कुछ कहना चाहता हूं। में तो बस ये दिखाना चाहता हूं, स्त्रियां जो हर बात में यह सोचती है कि संसार में हमेशा स्त्रियों का अपमान होता आया है और होता रहेगा और इस बात को लेकर वर्तमान में लड़कियां भयभीत रहती है।

मैं सिर्फ यह बताना चाहता हूं कि इस दुनियां में हर व्यक्ति अपने मन के सभी कार्य पूरे नहीं कर पाते , चाहे वो लड़की हो या लड़का , इसमें दुःखी होने की कोई बात नहीं है, और आप ये सोचकर कभी मत रोना कि हमारे साथ ही ऐसा क्यूं होता है, ये सब हम सभी के कर्मों का ही उदय है जिसके कारण से हम सभी को इतने दुःख होते है।

इस दुनियां में अनेक प्रकार के जीव है ,चार गति, चौरासी लाख योनियों के सभी अलग-अलग पर्याय के जीवों के अलग-अलग कार्य है और उन सभी के अलग-अलग प्रकार के दुःख है, वैसे ही पुरुष पर्याय के और स्त्री पर्याय के कार्य और दुःख भी अलग-अलग है, जो उन्हें भोगने ही पड़ते है।

स्त्रियों की ही जिन्दगी में दुःख है उन्हीं का कदम-कदम पर अपमान होता है ये बात सत्य नहीं है प्रकृति में हर जीव का सम्मान है और जब पाप का उदय हो तो कोई जीव अपमान से नहीं बच पाता।

अगर कुछ स्त्रियों के साथ परिवार में बुरा बर्ताव होता है, तो कुछ पुरुषों के साथ भी वैसा ही होता है, किसी परिवार में स्त्रियों को बोलने की इजाजत नहीं होती तो किसी परिवार में पुरुषों को बोलने की इजाजत नहीं होती। जबकि आज के समय में तो मैने ज्यादातर परिवार ऐसे ही देखे है जहां पत्नी ने एक बार आदेश दे दिया तो पुरुष की बोलने की हिम्मत ही नहीं होती।  किसी घर में अपनी इच्छा से लड़कियों को पढ़ने कि इजाजत नहीं होती तो किसी घर में पुरुषों को भी अपनी इच्छा से पढ़ने कि इजाजत नहीं होती। पर लड़कियों को लगता है को हम लड़की है इसलिए ऐसा है पर लड़के कभी ऐसा नहीं कहते। किसी घर में लड़कियों के पसंद का खाना बनता है तो किसी घर में लड़को के पसंद का। इसमें कारण स्त्री का अपमान या सम्मान नहीं बल्कि कर्म का उदय कारण होता है।

अब कोई यह कहता है कि आज के समय में लड़कियों को ही बाहर कार्य करने से क्यूं रोका जाता है, उन्हें घर के काम ही करना चाहिए कुछ लोगो की ऐसी मान्यता क्यूं है?

मान्यता तो दुनियां में कुछ भी हो सकती है, किन्तु हर मान्यता सत्य नहीं होती, एक विश्वास से भरी लड़की या महिला जरूरत पड़ने पर हर अवस्था में अपने करने योग्य कार्य कर ही लेती है। पाप का उदय आने पर सीता माता को वन में छुड़वा दिया था फिर भी वो स्वाभिमानी और स्वावलंबी थी, स्वावलंबी जीवन के साथ बच्चों का लालन-पालन करना, लव-कुश को अच्छे संस्कार देना ये सब उन्होंने किया। क्यूंकि वहां उनको अपना कार्य करना ही था। किन्तु राजमहल में रहते हुए अगर वो काम करने जाती तो अवश्य ही उन्हें गलत कहां जाता।

आज के समय में जरूरत के लिए अगर कोई लड़की बाहर कार्य करती है, तो कोई बात नहीं, किन्तु घर-परिवार में कोई कमी ना हो फिर भी वह बाहर दूसरों के यहां अपना शौक पूरा करने के लिए नौकरी करे तो उसे गलत माना जाता है, में ये नहीं कहूंगा कि क्या गलत है और क्या सही क्यूंकि इसका निर्णय आपको स्वयं ही करना होगा तभी आप सुखी रह सकते है, और फिर आप स्त्री हो अथवा पुरुष आप खुद पर विश्वास करो और स्वयं के निर्णय के अनुसार अपने जीवन में आगे बड़ो मार्ग में आने वाली मुश्किलों का सामना करो उन मुश्किलों से डर कर रोना नहीं, आप निश्चित ही अपना कार्य सफल करोगे।

4 comments:

  1. यह बहुत सब्जेक्टिव विषय है सुन ने पर हर किसी को राय सही लगती है चलो यहा हम स्यादवाद की भावना को अपना कर हर किसी की समस्या का हल ढूंढते हैं।

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  2. आज सवाल है प्रत्येक नारी बाहर income के जाती है ,इस कारण उसमे भी ego है कि मै भी तो बराबर का पैसा लाती हू ,इसके चलते बहुत समस्याए आती जा रही है

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    1. जी बिलकुल यदि पिता या पति की कमाई परिवार में पर्याप्त है तो स्त्री को बाहर जाकर कमाने की कोई आवश्यकता नहीं है।

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